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तब खम्पा लोग रहा करते थे हल्द्वानी के आवास विकास में

हल्द्वानी शहर के निकट कई अन्य बस्तियां भी हुआ करती थीं. जो अब विकसित हो गई हैं. गोरा पड़ाव में गोरे अपना पड़ाव डाला करते थे. भोटिया पड़ाव में जाड़ों में जोहार शौका यानी भोटिया समुदाय अपनी भेड़ बकरियों के साथ झोपड़ियाँ बनाकर या छोलदारी तान कर अपना पड़ाव डालते थे. Forgotten Pages from the History of Haldwani-25

सन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद शौकाओं का वह व्यवसाय समाप्त हो गया और कोलकाता से लेकर तिब्बत तक चलने वाला व्यापार एक कल्पना मात्र रह गया. उस जमाने में भेड़ों की पीठ पर करबचों को लादकर शौका व्यापारी पहाड़ों तक नमक पहुंचाया करते थे. वस्तु-विनिमय ही अधिक हुआ करता था. अब भोटिया पड़ाव कई मोहल्लों के समूह में बदल गया है किंतु मुख्य भोटिया पड़ाव शब्द जोहार नगर कहा जाने लगा है. जोहार नगर में जोहारी शौकों के आलीशान मकान बन गए हैं. जोहार मिलन केंद्र की भी स्थापना हो गई है जहां वे लोग आपस में मिला करते हैं और कई सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजन किया करते हैं. Forgotten Pages from the History of Haldwani-25

सीमांत क्षेत्र के शौका व्यापारियों के पड़ाव के लिए यहां की सोसाइटी को 46 बीघा जमीन दी गई थी. उससे पहले इस क्षेत्र के व्यापारी महिमन सिंह पांगती ने लीज में जमीन लेकर अपना मकान बना लिया था. तब अधिकांश हल्द्वानी जंगल था. ऐसे में लोग होली के दिन ही दिखाई देते थे. उस समय लोग नौकरी करने में भी डरते थे.

मिलन निवास, लास्पा भवन, टोला सदन, मर्तोली निवास, डोटिल निवास, बुर्फू निवास, निखुर्पा निवास, के साथ-साथ जोहार निवास, भोटियाज जैसे नामों के साथ अपने मूल को नहीं भूले हैं सीमांतवासी. इसलिए प्रतीक रूप में उन्होंने अपने आवासों का नामकरण अपनी पहचान के साथ किया है. वर्तमान में भोटिया पड़ाव मिनी मुनस्यारी बन चुका है.

कभी 4-5 परिवारों के साथ व्यापार से पड़ाव रूप में शुरू हुए हल्द्वानी के भोटिया पड़ाव का नक्शा आज एकदम बदला हुआ है. मकानों की भीड़ में यहां रहने की जगह शेष नहीं है. और एक समूह में रह रहे सीमांतवासियों को थोड़ा हटकर आवास व्यवस्था करनी पड़ी है. इसी के चलते पड़ाव से अलग इलाकों में आज कई परिवार रहने लगे हैं और अपनी पहचान को भी बरकरार बनाए हुए हैं. दोनहरिया से लगे पुराने परिवारों में लक्ष्मण निवास से आगे लक्ष्मी नगर, फ्रेंड्स कॉलोनी, लक्ष्मी कॉलोनी तथा आगे तक शौका परिवार फैलते चले गए हैं. Forgotten Pages from the History of Haldwani-25

भोटिया पड़ाव के पूर्व की ओर हल्द्वानी का आवास विकास घनी आबादी वाला क्षेत्र है. 1975 में उत्तर प्रदेश शासन की पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत आवासीय कालोनी का काम शुरू किया गया. 1980 में लॉटरी पद्धति से जमीनों का वितरण हुआ. तब पूरा आवास विकास क्षेत्र जंगल और झाड़ियों से घिरा था. चीन युद्ध के समय रेलवे पटरी पार अस्थाई हवाई अड्डे के लिए जमीन तलाशी गयी जो अब आर्मी के पास है. आवास विकास की भूमि पर ही बीएसएनएल का टावर लगा. बाद में टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित कर दिया गया. आवास विकास योजना में ज्यादा पंजीकरण होने के कारण बाद में काठगोदाम क्षेत्र में एमआईटीआई के पास न्यू आवास विकास कालोनी बनायी गई.

आवास विकास के विकसित होने से काफी पहले इस क्षेत्र में खम्पा उपजाति रहा करती थी. इन व्यापारियों ने इस जंगल क्षेत्र को अपना पड़ाव बनाया था. 1960 एन यहाँ बौद्ध स्तूप बनाया गया. वर्तमान में इस क्षेत्र में 25 खम्पा परिवार रहते हैं. यहाँ बौद्ध स्तूप के अलावा अब बौद्ध मंदिर भी बन चुका है. Forgotten Pages from the History of Haldwani-25

यह भी पढ़ें : हल्द्वानी और उत्तराखंड की राजनीति के कुछ पुराने पन्ने

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर

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