समाज

चीन-भारत युद्ध के पराक्रमी उत्तराखण्डी सैनिक की शहादत के 58 साल बाद उनका खाना बनता है और जूते पॉलिश किये जाते हैं

यह कहानी राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की है. 19 अगस्त, 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में गुमान सिंह रावत के घर जन्मे जसवंत सिंह गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में तैनात थे. Brave Hero Rifleman Jaswant Singh Rawat

जब 1962 में भारत और चीन के बीज जंग छिड़ी जसवंत सिंह राइफलमैन के पद पर थे और गढ़वाल राइफल्स की उनकी टुकड़ी अरुणाचल प्रदेश के तवांग के नूरारंग में पोस्टेड थी. Brave Hero Rifleman Jaswant Singh Rawat

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत

युद्ध का आख़िरी चरण चल रहा था और कोई चौदह हजार फीट की भयंकर सर्दी वाली मुश्किल ऊंचाई पर अरुणांचल की भारत-चीन सीमा पर चीनी सेना तवांग से आगे तक पहुँच चुकी थी.

जसवंत सिंह रावत का फाइल फोटो

युद्ध के बीच में भारतीय सेना के उच्चाधिकारियों को अहसास हुआ कि उसके पास सिपाहियों और हथियारों की कमी पड़ रही है. इस कारण सेना को वापस लौटने को कहा गया. जसवंत सिंह रावत ने अपनी पोस्ट पर खड़े रह कर अकेले ही चीनियों से निबटने का फैसला किया. Brave Hero Rifleman Jaswant Singh Rawat

जसवंत सिंह रावत की मशीनगन

अरुणांचल के स्थानीय इलाकों में माना जाता है कि जसवंत ने उस इलाके में रहने वाली दो मोनपा जनजाति की युवतियों – नूरा और सेला – की मदद से बाकायदा एक रणनीति बनाई और तीन अलग अलग स्थानों से मशीनगनों और टैंकों की सहायता से अकेले लड़ाई जारी रखी. चीनी सैनिकों को भ्रम हुआ कि भारतीय सैनिकों की संख्या बहुत बड़ी है.

सेला पास

अगले बहत्तर घंटों तक जसवंत सिंह ने अकेले कितने ही दुश्मन सैनिकों को मौत के घाट पहुंचा दिया. बदकिस्मती से उस इलाके से गुजर रहे, बटालियन को रसद पहुंचाने वाले स्थानीय व्यक्ति को चीनियों ने अपने कब्जे में ले लिया जिसने जसवंत और उसकी साथियों की लोकेशन बतला दी. 17 नवम्बर 1962 के दिन चीनियों ने चारों तरफ से घेर कर जसवंत पर हमला किया. इस हमले में सेला की मृत्यु हो गयी जबकि नूरा को जीवित बंदी बना लिया गया. जब जसवंत सिंह रावत को लगने लगा कि उनके बचने की संभावना नहीं बची है तो उन्होंने खुद को गोली से उड़ा लिया.

यह और बात है कि जसवंत सिंह की शहादत को लेकर अनेक किंवदन्तियां प्रचलित हैं. एक संस्करण के अनुसार चीनी उनका सर काट कर अपने साथ ले गए जिसे उन्होंने युद्ध की समाप्ति पर वापस कर दिया था. एक और संस्करण कहता है कि जसवंत सिंह रावत को चीनी सैनिक अपने साथ पकड़ कर ले गए थे और उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया था. Brave Hero Rifleman Jaswant Singh Rawat

जो भी हुआ हो, जसवंत सिंह रावत की वीरता की मिसाल भारतीय सैन्य इतिहास में विरले ही मिलाती है. यहाँ तक कि उनके साथ मारी गयी सेला के नाम पर एक दर्रे का नाम भी सेला टॉप रख दिया गया था. अरुणांचल प्रदेश के अलावा गढ़वाल के लैंसडाउन और देश के अन्य स्थानों पर जसवंत सिंह की स्मृति के अनेक स्मारक और स्मृति चिन्ह प्रदर्शित किये गए हैं.

जसवंत सिंह रावत को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.

इस वीरगाथा का सबसे दिलचस्प और अद्वितीय पहलू यह है कि जिस स्थान पर जसवंत सिंह की शाहादत मानी जाती है, वहां उनकी याद में एक झोपड़ी का निर्माण किया गया. बाद में इसे एक मंदिर का रूप दे दिया गया और उसका नाम जसवंतगढ़ रखा गया.

इस स्थान पर जसवंत सिंह की सभी वस्तुएं रखी गयी हैं. सेना मानती है कि जसवंत सिंह अभी मरे नहीं हैं इसलिए उनके नाम के आगे शहीद शब्द नहीं लगाया जाता. उनका लगातार प्रमोशन होता रहता है. उनकी सेवा के लिए पांच जवान हर समय तैनात रहते हैं. जसवंत सिंह को सुबह की चाय से लेकर रात तक का खाना पहुंचाया जाता है. उनकी पोशाक पर हर रोज इस्तरी की जाती है और उनके जूते भी हर रोज चमका कर पॉलिश किये जाते हैं. Brave Hero Rifleman Jaswant Singh Rawat

जसवंत सिंह स्मारक – वे अब भी यहीं ‘रहते’ हैं

सैनिक विश्वास करते हैं कि जसवंत सिंह की रूह उनकी सुरक्षा करती है और उन्हें रास्ता दिखाती है.

लगातार प्रमोशन पाने के बाद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत अब मेजर जनरल जसवंत सिंह रावत हैं. उनकी तरफ से उनके परिजनों द्वारा एनुअल लीव ली एप्लीकेशन दी जाती है और छुट्टी मंजूर होने पर जवान उनकी तस्वीर को इज्जत के साथ उनके पैतृक गाँव ले कर जाते हैं. छुट्टी पूरी होने पर उनका चित्र वापस जसवंतगढ़ ले जाया जाता है.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

यह भी पढ़ें: कुमाऊँ रेजीमेंट के सैनिक थे आजाद भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

Recent Posts

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

3 days ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

3 days ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

5 days ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

1 week ago

उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने

-हरीश जोशी (नई लोक सभा गठन हेतु गतिमान देशव्यापी सामान्य निर्वाचन के प्रथम चरण में…

1 week ago

नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार

आम चुनाव आते ही नैनीताल के दो चुनावजीवी अक्सर याद आ जाया करते हैं. चुनाव…

1 week ago