बरसों पहले कोकूकोट में कोकू रावत नाम का एक राजा हुआ करता था. राजा कोकू की सात रानियां थी लेकिन कोई पुत्र न था. इसलिए राजा ने एक और विवाह कुंजावती नाम की अद्वितीय सुंदर लड़की से किया. कोकू रावत ने उसे अपनी महारानी बनाया. कुंजावती के महारानी बनने से अन्य रानियों में इर्ष्या उत्पन्न हो गई. कुछ समय बाद महारानी कुंजावती गर्भवती हुई. महारानी को गर्भधारण किए हुए नौवां महीना हुआ तब उसे हिरन का मांस खाने की इच्छा प्रबल हुई.
महारानी ने राजा कोकू से हिरन का मांस उपलब्ध कराने का अनुरोध किया. राजा ने महारानी को बकरे का, मछली का और न जाने कितने पक्षियों का मांस उपलब्ध कराने की बात कही पर रानी न मानी. ढलती उम्र के बावजूद भी बूढ़ा राजा रानी की इस मांग को अस्वीकार न कर सके. राजा कोकू ने शिकार की तैयारियों का आदेश दे दिया. उसने बहुत से लोगों को इकट्ठा किया और अपनी बहन के पुत्र खीम सिंह को भी न्यौता भिजवाया. खीम सिंह खीमसरीकोट का रहने वाला था. वह इस शिकार यात्रा में राजा का साथ नहीं देना चाहता था. खीमसिंह ने राजा को भी मना किया कि जंगल में जाकर वह अपनी जान खतरे में न डाले. राजा ने उसकी सलाह मानने से इंकार कर दिया और शिकार के लिए निकल पड़ा.
शिकार-दल ने पहले रोज संगलाना में अपनी छावनी लगाई. दूसरा पड़ाव उल्ना और तीसरा सुयाना हुआ. उन्होंने पूरा जंगल छान मारा किन्तु वे हिरन का कोई निशान भी न पा सके. चौथे दिन राजा और उसके साथी बहुत थक चुके थे. शिकार दल समेत राजा एक पहाडी झरने के निकट विश्राम करने लगा. तभी राजा को नजदीक ही एक हिरन दिखाई पड़ा. राजा ने अपने लोगों को आदेशि दिया कि हिरन को चारों तरफ से घेर लो वह कहीं भाग कर न जाने पाए. लेकिन हिरन राजा के सिर के ऊपर से छलांग लगाता हुआ निकल गया. राजा बहुत तंग आ चुका था वह हिरन का पीछा करते करते गंगोलीहाट आ पहुँचा.
गंगोलीहाट में तब गौरिया नाम का एक वीर योद्धा रहता था. वह 80 वर्ष का था और उसके सात बेटे और चौदह पौते थे. उसकी तलवार का वजन नौ मन था. वह 100 हाथ लम्बी सनई (पटसन) की रस्सी अपनी कमर पर लपेटे रहता था. हिरन भागते हुए गौरिया गंगोला की गोद में आ गिरा.
इसी समय कोकू रावत और उसकी शिकारी दल हिरन का पीछा करते हुए वहां आ पहुंचा और हिरन को वापस देने की मांग करने लगे. गौरिया गंगोला ने हिरन के प्रति अपनी सहानुभूति के कारण हिरन वापस देने से मना कर दिया. वह बोला कि यदि इस हिरन के बदले अपना बेटा भी देना पड़े तब भी वह इस हिरन को वापस नहीं देगा. इस बात पर कोकू बहुत क्रोधित हुआ और उसने गौरिया गंगोला को युद्ध की चुनौती दे दी. एक भीषण लड़ाई हुई शुरू हो गयी.
युद्ध के अंत में गौरिया ने कोकू का सिर अपनी तलवार से काट दिया. खीम सिंह को छोड़कर राजा कोकू के सभी आदमी मारे गए. केवल खीम सिंह भागने में सफल हुआ. खीम सिंह वापस कोकू कोट लौटा और रानी को बताया कि उनके पति मारे गए. उसने रानी कुंजावती को झूठी सांत्वना दी और उनका ख़याल रखने का झूठा वादा किया. बाद में खीम सिंह ने रानी की सारी सम्पत्ति हड़प ली और उन्हें बहुत बुरे हालातों में ला छोड़ा.
जब रानी कुंजावती के पति की मृत्यु हुई तब वह गर्भवती थी. कुछ दिन बाद उसे एक सुंदर और स्वस्थ्य पुत्र पैदा हुआ. उसकी आंखें हीरे की तरह चमकती थीं. उसकी लम्बी सुडौल भुजायें और मजबूत पैर थे. मजबूती में वह जंगली नर भैंसे की तरह था, उसका नाम रणसुर भागदेव रखा गया.
जब वह बारह बरस का हुआ तो उसने अपने पिता के बारे में पूछा उसकी माँ ने आंसू भरी आँखों के साथ जवाब दिया कि मेरे बेटे तुम बिना पिता के ही पैदा हुये हो लेकिन इससे परेशान मत हो. भागदेव ने अपनी माँ से कहा कि यदि ऐसा है तो तुमने जरूर मुझे कहीं से चुराया होगा. भागदेव ने बार-बार अपनी मां पर दबाव बनाना शुरू किया. आखिर में उसकी मां ने पिता की मृत्यु की पूरी कहानी उसे सुना दी.
पूरा किस्सा सुनने और जानने के बाद वह आग-बबूला हो उठा उसने गुस्से में एक के बाद एक वहां रखे नौ मोढ़े (स्टूल) तोड़ दिए. पूरा घर हिलने लगा. उसने अपनी माँ से दुश्मन से लड़ाई लड़ने के आज्ञा मांगी. उसकी मां ने उसका विरोध किया कहा कि मेरे बेटे, जब तुम्हारे पिता अपनी बड़ी सेना के साथ दुश्मन को नहीं मार सके तो तुम अकेले उनहें कैसे मार दोगे.
भागदेव की एक चचेरी बहन थी जिसका नाम था रणसुला (रंसुला). वह भी बहुत वीर थी. एक दिन वह आठ मन गेहूं पिसाने के लिए गंगोलीहाट स्थित पनचक्की पर गयी. पनचक्की में आने वाला पानी नौनी पिंडी सेरा के खेतों की सिंचाई भी करता था नौनी पिंडी सेरा में गौरिया गंगोला के खेत थे. जब रंसुला ने पानी का रुख पनचक्की के लिए मोड़ दिया तो गौरिया गंगोला के इलाके की फसलें सूखने लगी. इसकी सूचना जब गौरिया गंगोला को दी गयी. वह पनचक्की पर देखने गया कि आखिर माजरा क्या है?
रंसोला को वहां देखकर गौरिया गंगोला उसके साथ दुर्व्यवहार करने लगा जिसका रंसुला ने विरोध किया. गौरिया गंगोला और क्रुद्ध हो गया. रंसुला ने उसे पकड़कर पनचक्की के पहिए में उसके हाथ-पैर रस्सी से बाँध दिए.
अगली सुबह जब गौरिया के सात पुत्रों ने गौरिया को घर में नहीं पाया तो वह उसे खोजने निकल पड़े. उन्हें वह पनचक्की के पहिए में बेहोशी की हालत में बंधा हुआ मिला. उन्होंने उसकी रस्सियां खोली और उसके पेट में भरे हुए पानी को निकाल कर होश में लाये. फिर उन सातों ने रंसुला के सारे गहने छीन लिए और उसे अपने साथ घर ले आये.
जब भागदेव को इस बात की जानकारी हुई तो उसने इसका बदला लेने का प्रण लिया. भागदेव गंगोलीहाट की ओर चल पड़ा. वह गंगोलाओं के नौनी पिंडी सेरा पहुंचा और वहां तबाही मचाने लगा. यह देखकर गौरिया गंगोला ने अपने चंफू हुड़किया को आदेशित किया कि वह जाए और पता लगाए की यह आदमी कौन है?
चम्फु उस चौनरी (चबूतरा) पर पहुंचा जहाँ भागदेव बैठा था और पूछा कि वह कौन है? भागदेव ने पूरी कहानी बताई. यह सुनने के बाद चम्फू भागदेव के पैरों पर गिर पड़ा और कहा – मैं आप का खानदानी चारण हूँ. मैं आपके पिता कोकू रावत के साथ यहाँ आया था, उनकी मृत्यु के बाद मुझे शत्रु द्वारा युद्ध बंदी बना लिया गया. गौरिया गंगोला ने आपके पिता के घोड़ों और शिकारी कुत्तों को भी कैदी बनाया है. अब मैं आपकी सेवा में हूँ. आपको अब सबसे पहले अपने घोड़ों और कुत्तों को आजाद कराना चाहिए. उसके बाद ही आप अपने शत्रु को हरा सकने में सफ़ल हो सकते हैं.
चम्फू भागदेव को गौरिया के अस्तबल में ले गया जहां घोड़े बंधे हुए थे. घोड़ों ने अपने पुराने मालिक के रक्त को पहचान लिया और तुरंत ही उसके साथ अपनों सा व्यवहार करने लगे. भागगदेव ने शिकारी कुत्तों को भी आज़ाद कर दिया. कुत्तों ने भी भागदेव को पहचान लिया और उसके हाथ चाटने लगे. तब चम्फू हुड़किया ने भागदेव को उसके पिता की तलवार व अन्य हथियार दिए जिन्हें गौरिया गंगोला ने अपने अधिकार में ले लिया था.
साँझ होने से पहले ही भागदेव अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर गौरिया के महल में उसके दरबार में जा पहुंचा. भागादेव ने अपने घोड़े की टाप से दरबार की फर्श तोड़ डाली. फिर वह घुड़सवारी करते हुए नौनी पिंडी सेरा पहुंचा जहां उसने गौरिया गंगोला की सारी फसल नष्ट कर दी.
गौरिया ने घोड़ों को पहचान लिया और वह भयभीत हुआ कि कोई दुश्मन उस पर आक्रमण करने आया है. उसने अपने सातों बेटों को बुलाया और इस खतरे से आगाह किया. गौरिया गंगोला के सातों बेटों ने आक्रोशित होकर अपने हथियार सम्भाले और नौनी पिंडी सेरा की तरफ कूच कर दिया. वहां पहुँच कर उन्होंने भागदेव को युद्ध के लिए ललकारा. अगले कई दिनों तक वे युद्ध लड़ते रहे. अंत में भागदेव ने एक-एक को पकड़ कर हवा में उछाल दिया. जब वे जमीन पर गिरे तो वहां मौजूद शिकारी कुत्तों ने उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये.
इसके बाद भागदेव ने गौरिया गंगोला के महल की ओर घोड़ा दौडाया. चफ्फू हुड़किया महल में गाते हुये आगे चला. भागदेव ने गौरिया गंगोला को उसके महल के एक खम्भे से बाँध दिया. इसके बाद उसने सभी रानियों व गौरिया गंगोला के परपोतों को मार डाला और अपनी चचेरी बहन रंसुला को आज़ाद करा लिया.
इसके उपरान्त भागदेव ने अपने पिता के सिर को जमीन से खोद कर निकाला और उसे अंतिम संस्कार करने के लिए वापस अपने घर ले आया. घर वापसी पर भागदेव ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया और शान्ति तथा खुशहाली के साथ अपने राज्य पर राज करने लगा.
(पादरी ई एस ऑकले एवं बैरिस्टर तारा दत्त गैरोला की पुस्तक ‘Himalayan FolkLore : Kumaon and West Nepal’ के एक इस हिस्से का अनुवाद कृष्ण कुमार मिश्र ऑफ मैनहन द्वारा किया गया है.)
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लखीमपुर खीरी के मैनहन गांव के निवासी कृष्ण कुमार मिश्र लेखक, फोटोग्राफर और पर्यावरणविद हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहने वाले कृष्ण कुमार दुधवालाइव पत्रिका के संपादक भी हैं. लेखन और सामाजिक कार्यों के लिए पुरस्कृत होते रहे हैं.
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