1937 में साल के अंत-अंत तक कुमाऊनी में एक पत्रिका का विचार जीवन चन्द्र जोशी के दिमाग में जगह बना चुका था. अपनी बोली में एक पत्रिका निकालने के लिये इस बानगी ‘शक्ति’ और ‘कुमाऊं कुमुद’ अखबारों में इसका विज्ञापन छपा और साल 1938 के फरवरी में निकला कुमाऊनी पत्रिका का पहला अंक.
(First Kumaoni Language Magazine Achal)
पत्रिका का नाम था अचल. पहली कुमाऊनी पत्रिका अचल का सम्पादन जीवन चन्द्र जोशी ने किया था और तारादत्त पाण्डे इसके सहकारी सम्पादक थे. अचल पत्रिका केप्रवेशांक का आमुख गोविंदबल्लभ पंत ने तैयार किया था जिसमें पर्वत श्रंखलाएं, ध्रुव तारा, आदि बनाए गये थे.
‘अचल’ को पहाड़ मान कर वर्ष के लिए ‘श्रेणी’ और अंक के लिए ‘शृंग’ लिखा गया. यानी ‘वर्ष एक, अंक एक’ की बजाय ‘श्रेणी एक, शृंग एक’. अचल के पहले दो ‘शृंग’ प्रकाशित होने के बाद अल्मोड़ा के इंदिरा प्रेस से छपे इसके बाद के अंक नैनीताल के ‘किंग्स प्रेस’ से छपे.
(First Kumaoni Language Magazine Achal)
धीरे-धीरे लेखक बिरादरी अचल के साथ जुटती गयी. श्यामाचरणदत्त पंत, जयंती पंत, रामदत्त पंत, भोलादत्त पंत ‘भोला’, बचीराम पंत, दुर्गादत्त पाण्डे, त्रिभुवनकुमार पाण्डे, आदि–आदि की बड़ी टीम बन गयी. ‘अचल’ में पहाड़ के उस समय के अखबारों की समीक्षाएं भी प्रकाशित होती. उस समय के बहुचर्चित हैड़ाखान बाबा और सोमवारी बाबा पर सबसे पहले ‘अचल’ ने विस्तार से सामग्री छापी थी., जो बाद में उन पर पुस्तक लिखे जाने में सहायक हुई. प्रख्यात रूसी चित्रकार निकोलाई रोरिख के हिमालय सम्बंधी लेखों का कुमाऊंनी अनुवाद भी उसमें प्रकाशित किया गया.
ठीक दो साल बाद जनवरी,1940 का अंक अंतिम साबित हुआ, क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ जाने से कागज मिलना मुश्किल हो गया था. समाज का सहयोग भी निराशाजनक था. फरवरी 1938 से जनवरी 1940 तक दो वर्षों में, श्रेणी-एक के तहत बारह एवं श्रेणी-दो के तहत बारह, कुल में 24 शृंग (अंक) प्रकाशित हुए. इनमें सम्भवत: दो शृंग संयुक्तांक के रूप में निकालने पड़े थे.
(First Kumaoni Language Magazine Achal)
नोट– वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी के लेख ‘कुमाऊनी भाषा की पहली पत्रिका ‘अचल’ के संपादक जीवन बड़बाज्यू‘ के आधार पर.
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…
सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…
View Comments
पत्रिका online कैसे मिलेगी 🙏कृपया बताएं