आपका उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में घर हो और इक्कीस सालों में पहाड़ की यात्रा में आपने कितने बार यह कहा है कि इस बार की सड़क यात्रा शानदार रही. पहाड़ की जीवनरेखा बताकर 1960 से हमारी जमीनें सरकारों ने लूटना शुरु किया और आड़े तिरछे सड़कों के जाल बिछाना शुरु किया.
(Election Uttarakhand 2022)
साल 2005 में उत्तराखंड में कुल सड़क हादसों की संख्या 1332 थी. इन 1332 सड़क हादसों में 868 लोगों की मौत हो गयी और 1841 घायल हो गये. 2018 में सड़क हादसों की संख्या 1468 थी और इनमें मरने वालों की संख्या 1047 वहीं घायलों की संख्या 1571 थी. 2019 में 1352 सड़क हादसों में 867 लोगों की मृत्यु हुई तो 2020 में हुये 1041 सड़क हादसों में 674 लोगों की मृत्यु हुई.
इसके बावजूद उत्तराखंड की राजनीति में सड़क सुरक्षा कभी मुद्दा ही नहीं बन पाया है. उत्तराखंड में 2022 का चुनाव बिना किसी मुद्दे के लड़ा जा रहा है. प्रदेश की भाजपा सरकार के प्रत्याशी अब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा लेकर लोगों के बीच जा रहे हैं. उत्तराखंड में वर्तमान भाजपा पिछला चुनाव प्रचंड बहुमत से जीती है फिर क्यों प्रधानमंत्री के चेहरे पर वोट मांगे जा रहे हैं. इधर नेतृत्व को लेकर कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी किसी से छुपी नहीं है. वर्तमान विधायक क्यों जनता के बीच जाकर नहीं बता रह कि विधायक निधि से उन्होंने लोगों के लिए कितने काम किए?
प्रत्येक साल होली, दिवाली, गर्मियों या सर्दियों की छुट्टी के बाद पहाड़ी अपने घरों को जाते हैं या वहां से लौटते हैं तो उनके साथ जो अमानवीय व्यवहार किया जाता है उससे कौन परिचित नहीं है? पहाड़ में आज भी हर हफ्ते किसी न किसी की मौत की वजह खराब स्वास्थ्य सुविधा होती है? जंगल के रास्तों या सड़क किनारे प्रसव राज्य में आज भी आम बात है.
(Election Uttarakhand 2022)
पहाड़ी राज्य की संकल्पना के साथ 21 साल पहले बना उत्तराखंड आज भी उन्हीं समस्याओं से घिरा है जिससे 21 साल पहले घिरा था. स्कूली शिक्षा के लिए देश भर से लोग उत्तराखंड के स्कूलों में पढ़ने आते हैं लेकिन इनकी फीस इतनी होती है कि राज्य के आम आदमी के लिए इन स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना सपने जैसा ही है.
उच्च शिक्षा के लिए आज भी उत्तराखंड का युवा बाहर ही जाता है. शिक्षित युवा के लिए राज्य में कोई रोजगार नहीं है. रही सही खेती जो यहां थी वहां या तो बांध प्रस्तावित हैं या बंदर, भालू और सूअर के प्रकोप में हैं. गनीमत है कि नीति आयोग ने बीमारू राज्य जैसा शब्द ही अपनी डिक्शनरी से हटा दिया वरना उत्तराखंड हमेशा ही बीमारु रहता. विशेष राज्य कहना अच्छा लगता है इसलिए हम विशेष ही हैं. क्या यह हास्यास्पद नहीं है कि इस राज्य में हुआ पहला चुनाव पलायन को मुद्दा बनाकर लड़ा गया और आज 21 साल बाद भी हम पलायन के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ रहे हैं.
(Election Uttarakhand 2022)
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…
अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…
हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…
आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…
बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…
आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…
View Comments
लोहनी जी प्रणाम । जनता को अचार चटनी मुरब्बा (धर्म, जाति, ग्लैमरस उम्मीदवार ) खाने में बेहद स्वादिष्ट लगता है, तो फिर आवश्यक नीरस खिचड़ी, रोटी, दाल (शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार ) की बात कौन करेगा ?
हम लोग भारतीय ना रहकर अपने अपने समर्थित राजनीतिक दलों के मोहरे बनकर रह गए हैं ।