सालों पहले आज ही का दिन था जब देश और प्रदेश के नक्शे में पहली बार जिला पिथौरागढ़ का नाम दर्ज हुआ. 24 फरवरी 1960 से पहले पिथौरागढ़ जिला अल्मोड़ा की एक तहसील के रूप में एक मौजूद था. ऐतिहासिक दस्तावेजों में इसका पुराना नाम सोर घाटी के रूप में दर्ज है जबकि ब्रटिश दस्तावेजों में इस क्षेत्र को सोर एंड जोहार परगना कहा गया.
(District Pitharagarh Happy Birthday)
ध्वज, थलकेदार, मोस्टामानो, कासनी, दिंगास, मरसौली, अर्जुनेश्वर, घुनस्यारी देवी, असुरचुला, नकुलेश्वर आदि पिथौरागढ़ बाज़ार के आस-पास बिखरी विरासत एवं संस्कृति को इंगित करते हैं. सीरा, सोर, गंगोली व अस्कोट परगनों के साथ मुनस्यारी, धारचूला, डीडीहाट और पिथौरागढ़ को मिलाकर बनाये गये इस जिले में पर्यटन की अद्भुत संभावनायें हैं.
कहते हैं कि कभी इस शहर में लगभग सात झीलें हुआ करती थी जो समय के साथ पठारी भूमि में तब्दील हो गयी. पिथौरागढ़ जिले को लेकर अनेक मान्यतायें हैं. मसलन एटकिन्स कहते हैं- चंद वंश के एक सामंत पीरू गोसाई ने पिथौरागढ़ की स्थापना की. ऐसा लगता है कि चंद वंश के राजा भारती चंद के शासनकाल वर्ष1437 से 1450) में उसके पुत्र रत्न चंद ने नेपाल के राजा दोती को परास्त कर सोर घाटी पर कब्जा कर लिया और वर्ष 1449 में इसे कुमाऊँ या कुर्मांचल में मिला लिया. उसी के शासनकाल में पीरू (या पृथ्वी गोसांई) ने पिथौरागढ़ नाम से यहाँ एक किला बनाया. किले के नाम पर ही बाद में इस नगर का नाम पिथौरागढ़ हुआ.
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शहर के वरिष्ठ लेखक पद्मा दत्त पन्त मानते हैं कि राजा के नाम पर शहर होने की बातें केवल गप्प हैं. असल में शहर का नाम गोरखा किले से लगे पितरौटा नामक स्थान से बना. सर्वप्रथम गोरखाओं ने इसे पितरौटागढ़ कहा. अंग्रेजों के समय यह उच्चारण पिठौरागढ़ होते हुये अब यह पिथौरागढ़ हुआ.
जिला बनने के बावजूद स्वास्थ्य सुविधा जैसी आधारभूत सुविधाओं से वंचित यह जिला आज भी लगभग मनी आर्डर व्यवस्था पर ही चलता है. जिले के अधिकाँश शिक्षित युवा आज भी एक अच्केछे जीवन स्तर के लिये पलायन करने को मजबूर हैं.
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