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इतिहास रावत कौम का तीसरा हिस्सा – पंडित नैनसिंह रावत की डायरी

तिब्बत का पहला भौगोलिक अन्वेषण करने वाले उन्नीसवीं शताब्दी के महानतम अन्वेषकों में से एक माने जाने वाले मुनस्यारी की जोहार घाटी के मिलम गाँव के निवासी पंडित नैनसिंह रावत के बारे में एक लंबा लेख काफल ट्री पर पहले प्रकाशित हो चुका है. लिख का लिंक यह रहा – पंडित नैनसिंह रावत : घुमन्तू चरवाहे से महापंडित तक

पढ़िए इन्हीं पंडित नैनसिंह रावत की डायरी का अगला भाग.

(पिछले भाग का लिंक: इतिहास रावत कौम का दूसरा हिस्सा – पंडित नैनसिंह रावत की डायरी)

भाग 3: इतिहास रावत कौम

मलारी में भूपचन्दे मरवाल के साथ बढ़ीं लड़ाई हुई. व्यासी कुटियाल बहुत मारे गये और भूपचन्द मरवाल भी गोली से इसी लड़ाई में मारा गया. मरवालों को जसपाल बुढ़ा का पक्षपाती समझ कर जगू ने इनको खूब लूटा जगू मरतोलिया पट्टी व्यास के मौजा गरव्याल के मुत्तलिस चैंगफा नाम जगह पर रहने लगा और अपने बाल बच्चों को वहीं मगाई लिया. चैकटिये मर्तोलियों से सिवाय सब मर्तोलिये जगू के साथ थे. मुसू बुढ़ा वगैरह मापा के बुढ़ा रादू जो कोन्द्यो बुढ़ा के जगू के सामिल व्यास ही में था. भूप चन्द मरवाल के मर जाने पर उसका मां धौली बूढ़ी ने जुमलीं लोग मदद में लाकर जगू के अपने लड़के का बदली लेना चाहा गुंजी और छीरा गांव के बीच मुकाम कवा में मर्तोलिया और जुमली में लड़ाई हुई कई आदमी जगू के खेत रहे बाद में जगू माल व्यास में रह कर देश की ओर पीलीभीत में मर गया.

इधर जसपाल बुढ़ा ने गढ़वाल में राजा नेपाल की ओर औहदा फौजदारी को लेकर गढ़वाल में हुकूमत करता रहा. चन्दसाल फौजदारी कार देकर मलारी के पास बुर्गेस मागा जामुन्नी अचानक देह छोड़ दिया दो शादी जो साथ थी सती हुई.

जसपाल बुढ़ा के परलोक सिधारने के बाद उहदा फौजदारी देबू बुढ़ा जसपाल का सौतेला भाई जो धरमी मारछी बुढ़ी से उत्पन्न हुआ सम्भाला. कई साल तक गढ़वाल पैनखण्डा में कार फौजदारी का देकर जुहार को आया.

जसपाल बुढ़ा के मरने के बाद नेपाल के दरबार से खिलत बुढ़ाचारी वतौर रजवारी १६००६० रु0 सोलह हजार रुपये साल परगना जुहार में राजा नेपाल से ठहर जाने से रयत बहुत तंग हो गयी यह जियाददी बिजै सिंह बुढ़ा को बुरा लगा. सन् १८१० ई0 मुताबक सम्वत 1867 में खुद नेपाल जाकर १६००० रु0 का ७८०० रुपये साल नेपाल के दरबार में करा लाया और जुहार दानपूर दोनों परगनों में बिल्कुल बिजै सिंह का इंखितियार था. परगनाह दानपुर में मौजे रमाड़ी लेटला फुंगरू और कुचली जागीर बिजै सिंह के नाम थे. सिर्फ विजे सिंह बुढ़ा से इतना ही चूक हुआ कि इन्तिजाम रिआया का कुल अपने भाई मंछू बुढ़ा को सौंप दिया था. इसी के सम्पति से अपने चाचाओं के घर पर कर लगाना रचा रखा जिससे आपस में फूट पड़ गया. कहते हैं कि मंछू बुढ़ा में बहुत सी आदत बुरी थी और कई तरह का जियादतियों के सबब रियाया जुहार से नाराज थे. निदान इसका
नतीजा यह हुआ कि गांव में दो धड़ा होकर हरपाल का लड़का मुसू दूसरा पधान मिलम का बन बैठा.

जसपाल बुढ़ा के तीन लड़के पैदा हुए सबसे बड़ा बिजै सिंह मझला मंछू सबसे छोटा गजू था. गजू के रजपाल और पनू दो लड़के पैदा हुए मंछू का बंछू उसका कुंवर सिंह उसका दौलत सिंह और बिजै सिंह के तीन लड़के उत्पनन हुए सबसे बड़ा संमजांग मजला धन सिंह लहुरा जवाहर सिंह समजांग बुढ़ा निःसन्तान मर गया. धन सिंह का जसमल सिंह उसका उत्तम सिंह. जवाहर सिंह का रतन सिंह पैदा हुआ.

धामा बुढ़ा के दूसरा लड़को दौलपा से चैतुवा नरसिंह दो लड़के पैदा हुए नर सिंह का लड़का धामा चैतुवा का पुरिया और कोनच्यों दो लड़के हैं.

धामा बुढ़ा के तीसरा लड़का सुरजू के भादो सिंह सेरजांग और नहातू ये तीन लड़के हुए. भादो सिंह का नैन सिंह उसका रजू हैं सेरजांग से गुमानू, गुमानू का उदवा है.

धामा बुढ़ा का चैथा लड़का कुककरिया बुढ़ा के हगरूं और पिरमू दो लड़के पैदा हुए हगरू का ज्ञान सिंह और हरी पैदा हुए ज्ञान सिंह का मौजा हैं पिरमू के धने रतनू और रजू तीन लड़के हैं.

धामा बुढ़ा के पांचवा लड़का बिर सिंह बुढ़ा के नथूं गुमान सिंह नथू का रतनू और भादू गुमान सिंह निःसन्तान मर गंया.

धामा बुढ़ा के छठे लड़के फते सिंह से भवान सिंह और माणी दो लड़के उत्पन्न हुए भवान सिंह के परबलू भादू धनुवा तीन लड़के हुए और माणी बुढ़ा के बछू लछम सिंह परमा रामू दोलपा पांच लड़के हैं.

धामा बुढ़ा के सातवां लड़का देबू बुढ़ा के माणी गुलाब सिंह नैन सिंह कृष्ण सिंह चार लड़के पैदा हुए माणी का मान सिंह गुलाब सिंह के बिजै सिंह और खड़क सिंह दो लड़के हैं इस देबू बुढ़ा ने 19त्र892 ई के अगसत महीने में मोर किराफत साहब बहादुर को मदद दी जबकि मौसूफ इलाके तिब्बत के मुकाम दावा में पकड़ा गया था दस हजार रुपये की जामनी अपनी और अपने भाई बिर सिंह की देकर साहब को हाकिम तिब्बत दावा के छुटाया.

धामा बुढ़ा के आठवां लड़का जेतू से नथू जैसिंह गुजू तीन लड़के जने उसमें अब सिर्फ गुजू मौजूद है गुजू के लड़के धन सिंह खड़क सिंह हैं.

धामा बुढ़ा के नवां लड़का अमर सिंह जिसका उपनाम लाटा प्रसिद्ध था उनसे हम पांच लड़के उत्पन्न हुए सबसे बड़ा समजांग उसके पीछे मैं नैन सिंह हूं मुझसे मागा मागा से छोटा गजराज सिंह उससे छोटा कल्याण सिंह है हम पांच भाइयों में से मागा तो फकीर बन गया समजांग बुढ़ा के खड़कू रामलाल नन्दलाल ये तीन लड़के हैं नैन सिंह का बाला सिंह गजराज सिंह का महेन्द्र सिंह दो लड़के हैं.

धामा बुढ़ा के दसवां लड़का नागू के सिर्फ मोहन सिंह लड़का पैदा हुआ मोहन सिंह का जोगा है.

कोन्च्यो बुढ़ा के दूसरा लड़का राजू जो घामा से छोटा था उससे यामी भादू बुदू तीन लड़के जन्मे यामी से समेरू देव सिंह भादू से हरपाल उत्पन्न हुए. बुदू से जीतू आशा बचू भवान सिंह लड़के पैदा हुए भवान सिंह निःसंतान मरा जीतू के धर्मू बुदू नैनू तीन लड़के जने आशा के माणा तेजू कुनू तीन लड़के पैदा हुए बचू से लछमू दोलपा दो लड़के उत्पन्न हुए.

कोनच्यो बुढ़ा के तीसरा लड़का बम्पाल से अमर सिंह खीमू देबू तीन लड़के उत्पन्न हुए और अमर सिंह का लड़का राम सिंह और खीमू के पदू भजराज दो लड़के हैं देबू से लाल सिंह सेरजांग खड़क सिंह तीन लड़के पैदा हुए.

बड़ा बमशाह चैतरिया जो महाराज नैपाल की ओर से जिले कुमाउं गढ़वाल का सूबेदार था उसके एक सनद से मालूम हुआ कि सन् 1788 ईस्वी तक बारह मायाजात यानी कि पाछू नाका बुंई पांतू धापा गोल्मा खेती नगरीगांव सैमती कुइटी तल्ला भैंसकोट राजे हास जमाने कदीमा के हमारे बुजुर्ग के जागीर में थे. सन् 1788 इ्रस्वी बावत सनद मेरा दादा धामा बुढ़ा व ताऊ जसपाल बुढ़ा के नाम साफ लिखा है कि ये गांव पेश्तर से तुम्हारे जागीर में थे अब हमने थाम लिया.

जब सन् १८१४ ईस्वी में यह. देश सरकार अंग्रेज बहादुर के कब्जे में आया पहिला कमिश्नर गार्डनर साहब ने बारह गांव जागीरात के छोड़ कर २८ गांवों के महसूल जमीन का ठेका ५00१ रुपया माल सर्कारी खजाने में दाखल करने बाबात सनद बिजै सिंह के नाम अता करके तल्वा मल्वा बिचला सारा जोहार का इन्तिजाम कार सर्कारी में कुल इख्तियार बिजै सिंह के ही सुपर्द किया गया चंद साल बाद कमिश्नर कर्नल गार्डनर साहब के विलायत जाने बाद जनबा जार्ज विलियम ब्रियल साहब बहादुर जिले कुमाऊ गढ़वाल का कमिश्नर हुआ किसी सूरत से बिजै सिंह से साहब मौसूफ से नाराज होकर १८२१ ईस्वी 29 मई के रोज सब हक हकूब वगैरह जब्त करके सिर्फ एक गांव पाछू मुआफी में बकाल फरमाया उस जमाने में हमारे लोग सीधे सादे भोले थे. जानते थे कि जो साहब कमिश्नर ने हुक्म दिया ठीक है किसी ने कुछ पैरवी व मुराफा वगैरह सर्कार तक नहीं पहुंचा सकी.

ऊपर लिखा गया है कि धामा बुढ़ा के तीन शादी थी अलग अलग तीन घरों में रहती थी तमाम मिरास व विरसियत तीन हिस्सें में बटाया अब्बल शादी मंगुली बुढ़ी के जसपाल, दोलपा सरजू ये तीन भाई एक तिहाई के मालिक थे दूसरी शादी टुलानी बुढ़ी की कुकरिया बिर सिंह थे दाई एक तिहाई हिस्सेदार समझे गये तीसरी शादी मारछी धरमी बुढ़ी के फते सिंह देवू झेमू लाटा नागू पांच लड़के एक तिहाई मिरास के हकदार थें पांचों भाई एक साथ रहते थे मेरा बाप ’लाटा बुढ़ा सन १७८४ में पैदा हुआ था करीब २४ या २५ बरस की उमर में चूक हुई कि. केशर सिंह नितवाल घाटा नीती वाले की बहन शादी घर में मौजूद थी तिस पर भी भादू थेमू वगैरह चैभये बिलज्वालों की बहन लखमा जो मिलम के सयाना राठ की व्याही थी उठा कर अपने घ ले आया जिससे फजे सिंह देबू वगैरह भाई नारज होकर लाटा बूढ़ा को बिला हिस्सा अलग कर दिया जो कुछ मिरासं पांच भाइयों का हक था कुल चार हिस्सा कर बांट लिया.

मेरा बाप लाटा बुढ़ा अपने दो शादियों समेत गोरी पार भटकुड़ा में रहता था सन १८२४ ईस्वी में अपने बाप का माल मिरास का पांचवा हिस्सा दिला पाने बाबात जनबा जार्ज विलियम ब्रियल बहादुर के अदालत में नालिस की तो मुकदमा डिसमिस हो गया बाद उदासी के घर आया तो थोड़ें दिन बाद दोनों औरतें गोरी नदी में डूब कर मर गयी. सन १८२४ ईस्वी में बाप की उमर २८ वरस की थी मिरास के हार जाने और औरतों के डूब मरने से परेशान था गोरी पार जमींदारों में रह कर दिन काटता किसी गांव वालों के आपस में तकरार होता तो पंचायत कि रू से उनका झगड़ा निबेड़ देता जमीदारों में कुछ खेती भी करवाता. इसी तरह से गुजारा करता.

(जारी)

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