देहरादून और अफगानिस्तान का संबंध पहले आंग्ल-अफगान युद्ध से जुड़ा है. इस युद्ध के बाद अमीर दोस्त मोहम्मद खान (अफगानिस्तान के अमीर) को अंग्रेजों ने निर्वासित कर देहरादून भेज दिया था. अपने निर्वासन में दोस्त मोहम्मद खान 6 साल से अधिक समय तक मसूरी में रहे. मसूरी नगरपालिका के अंतर्गत आने वाले बालाहिसार वार्ड का नाम इन्हीं दोस्त मोहम्मद के महल के नाम पर रखा गया है. प्रसिद्ध देहरादून बासमती को वे अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से अपने साथ लाये थे. यही बासमती चावल देहरादून बासमती के नाम से देश-विदेश में जाना जाता है.
(Dehradun’s Afghan Connection)
चालीस साल बाद हुए दूसरे एंग्लो-अफगान युद्ध ने इतिहास को फिर दोहराया. दोस्त मोहम्मद खान के पोते मोहम्मद याकूब खान को 1879 में निर्वासित कर भारत भेज दिया गया. अपने दादा की तरह उन्होंने भी उत्तराखण्ड की दून घाटी को अपने निवास के रूप में चुना. लेकिन याकूब यहां अस्थायी रूप से नहीं रहे. याकूब औपचारिक रूप से देहरादून में बसने वाले पहले अफगान बने.
वर्तमान मंगला देवी इंटर कॉलेज कभी काबुल पैलेस था जहाँ याकूब ने अपने देहरादून प्रवास के शुरुआती कुछ साल बिताए. राजा के साथ उनके परिवार और नौकरों को भी देहरादून में स्थानांतरित कर दिया गया था. बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में अपने निर्वासन के दौरान अफगान शासकों ने यहां दो महल भी बनवाये. देहरादून में काबुल पैलेस और मसूरी का बाला हिसार पैलेस नाम से बनवाये गए ये महल इन राजाओं के अफगानिस्तान में मौजूद महल की ही छोटी प्रतिकृति के रूप में बनाये गए.
देहरादून में ही अफगानिस्तान के दूसरे अंतिम राजा मोहम्मद नादिर शाह का जन्म भी हुआ. मसूरी स्थित बाला हिसार पैलेस को अब मसूरी के विनबर्ग एलन स्कूल में बदल दिया गया है. देहरादून के करनपुर का पुलिस स्टेशन 1879 में निर्वासित अफगान शासक याकूब का शाही गार्ड रूम हुआ करता था. सर्वे चौक पर स्थित विद्युत कार्यालय शाही नौकर क्वार्टर था.
(Dehradun’s Afghan Connection)
आज पूर्व राजघराने के वंशज, याकूब खान और उनके पोते सरदार अजीम खान के परिवार देहरादून में रच-बस गए हैं. देहरादून के ईसी रोड, सर्वे चौक के आसपास बादशाह अमीर मोहम्मद याकूब के वंशजों की जमीनें और संपत्ति आज भी मौजूद है. इसमें ईसी रोड से सटा काबुल हाउस प्रमुख है.
अफगान-दून कनेक्शन तब फिर प्रगाढ़ हो चला जब अफगानिस्तान के अंतिम राजा जहीर शाह अपने जीवन के अंतिम वर्षों में दिल्ली में अपना इलाज करवा रहे थे. इलाज के दौरान शाह ने देहरादून में रहने वाले अपने चचेरे भाइयों से मिलने की इच्छा व्यक्त की. अफगानिस्तान के भूतपूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी बताते रहे हैं कि उनकी दादी देहरादून में पली-बढ़ीं. डॉ. गनी के कार्यकाल में ही देहरादून को अफगान क्रिकेट टीम के दूसरे “घरेलू” मैदान के रूप में भी चुना गया और टीम ने यहां आकर प्रशिक्षण लिया.
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