1942 का साल था और तारीख आज की थी. चौकोट की तीनों पट्टियों की एक सभा देघाट में होनी थी. देघाट में विनौला नदी के पास देवी के एक मंदिर में करीब 5 हजार लोग एकत्रित थे. पुलिस के कुछ सैनिक सभा के पास आये पर इतनी भीड़ देखकर बीच में जाने की हिम्मत न कर सके.
(Deghat Goli Kand Uttarakhand)
शान्तिपूर्ण तरीके से चल रही सभा में से पुलिस ने सभा से बाहर निकले उदेपुर के एक सत्याग्रही खुशाल सिंह मनराल को हिरासत में ले लिया. जब जनता को खुशाल सिंह मनराल की हिरासत की बात पता चली तो उन्होंने पटवारी की चौकी घेर ली. जनता जोर-शोर से खुशाल सिंह मनराल को छुड़ाने की मांग करने लगी.
पटवारी की चौकी में भीड़ हो गयी. जोर-जोर से नारेबाजी कर खुशाल सिंह मनराल को छुड़ाने की मांग कर रही भीड़ को अनियंत्रित होने में भी देर न लगी. भीड़ को नियंत्रित करने के नाम पर पुलिस ने निहत्थी जनता को घेरा और गोली चला दी.
(Deghat Goli Kand Uttarakhand)
इतिहास में ‘देघाट गोली कांड’ नाम से दर्ज इस घटना में भेलीपार गांव के हरिकृष्ण उप्रेती और खलडुवा गांव के हीरामणि गडेला गोली लगने से शहीद हो गये. इन दोनों की ही उम्र महज 35-36 साल रही होगी. देघाट गोली कांड में भेलीपार गांव के रामदत्त पांडे भी पुलिस की गोली से घायल हुये. बदरी दत्त कांडपाल पर भी तीसरे दिन गोली लगी.
पुलिस आनन-फानन में रात के समय शवों को देघाट से पहले उदेपुर ले गयी. दूसरे दिन पुलिस शवों को वहां से रानीखेत लेकर गई. अंतिम संस्कार सिनौला में किया गया.
देघाट गोली कांड के बाद क्षेत्र का माहौल गर्म था. 8 दिन बाद अंग्रेजों ने मौका देखकर विद्रोह के दमन के नाम पर कारवाई की. 70 सिपाही देघाट पहुंचे. विद्रोह के दमन के नाम पर सार्वजनिक लूट-पाट की गई. उदयपुर, क्यरस्यारी, सिरमोली, गोलना और महरौली गांवों में सामूहिक अर्थदंड लगाया गया. गांव वालों को बुलाकर बेतों से पीटा गया. क्षेत्र से 29 लोगों को जेल भेजा गया.
(Deghat Goli Kand Uttarakhand)
संदर्भ: मशहूर इतिहासकार और पर्यावरणविद प्रो. शेखर पाठक द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘सरफरोशी की तमन्ना’
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