टिहरी गढ़वाल के श्रीकोट गाँव में शादी समारोह के दौरान सवर्णों द्वारा बेरहमी से पीटे गए युवक की हत्या का मामला तूल पकड़ता जा रहा है.
मामले का संज्ञान राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने लिया और अपने स्तर पर इसकी जांच शुरू का कर दी है. आयोग की सदस्य स्वराज विद्वान उत्तराखण्ड पहुंचकर इस मामले की जाँच-पड़ताल में जुटी हुई हैं और मृतक के परिजनों से भी मिली हैं.
स्वराज इस घटनाक्रम में कैम्पटी थाना पुलिस की भूमिका से भी काफी असंतुष्ट दिखीं. गौरतलब है कि श्रीकोट में एक दलित युवक को शादी समारोह में सिर्फ इसलिए बुरी तरह पीट दिया गया था कि उसने सवर्णों के सामने कुर्सी में बैठकर खाना खाने की हिमाकत की.
26 अप्रैल की इस घटना के 9 दिनों बाद युवक ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. इन 9 दिनों में युवक के परिजनों द्वारा शिकायत किये जाने के बावजूद पुलिस ने शिकायत तक दर्ज नहीं की. इतना ही नहीं युवक की मृत्यु के बाद भी एसपी टिहरी ने मामले में धूल डालने की नियत से बयान दिया कि मौत का कारण दवा की ओवरडोज है. कुल मिलाकर देखा जाय तो युवक की मौत न हुई होती तो दलित उत्पीड़न का यह जघन्य मामला यूं ही दफ़न कर दिया जाता.
पुलिसिया कार्रवाई पर आक्रोश जताते हुए स्वराज ने कहा कि सरकार द्वारा इस मामले में टिहरी एसपी और कैम्पटी थाने के पूरे स्टाफ को तत्काल हटाया जाना चाहिए. इस मसले में कैम्पटी थाना प्रभारी कविता और नैनबाग चौकी प्रभारी हिम्मत सिंह को पहले ही लाइन हाजिर किया जा चुका है.
स्वराज ने यह भी बताया कि आयोग ने मृतक युवक का पोस्टमार्टम दिल्ली एम्स में करवाने पर भी विचार किया था. लेकिन जिला प्रशासन व पुलिस के आला अधिकारियों द्वारा आयोग का पूर्ण सहयोग किये जाने के आश्वासन के बाद इरादा टाल दिया गया.
कानूनी प्रावधानों के बावजूद उत्तराखण्ड में दलित उत्पीड़न के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. अमर उजाला की खबर के मुताबिक पिछले एक साल में अनुसूचित जाति आयोग में दलितों के सामाजिक उत्पीड़न की 300 से अधिक शिकायतें दर्ज की गयी हैं. इनमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की शिकायतों के साथ-साथ सरकारी नौकरियों में भेदभाव की शिकायतें शामिल हैं.
पिछले एक साल में उत्तराखण्ड में नौकरी में, रोस्टर की अनदेखी के 16, स्थानातरण में भेदभाव का 1, भूमि सम्बन्धी 3, नागरिक अधिकारों के हनन की 10, महिला अत्याचार के 10 व 270 अन्य मामलों की शिकायतें आयोग के सामने आयी हैं. यहाँ यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि विभिन्न दबावों की वजह से ढेरों मामलों की शिकायत ही नहीं की जाती. क्योंकि उत्तराखण्ड एक सवर्ण बाहुल्य राज्य है तो यहाँ दलितों का मुखर राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी नहीं हो पाता. ख़ास तौर पर पर्वतीय जिलों में दलितों की कम संख्या की वजह से नेता और जनप्रतिनिधि उनसे जुड़े मुद्दों को जरा भी अहमियत नहीं देते.
टिहरी में दलित युवक की हत्या अपवाद नहीं है
उत्तराखंड में लोगों के लिये दलित हत्या कोई बड़ी बात नहीं है
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