ललित मोहन रयाल

साहिर लुधियानवी का गीत जिसमें मोहब्बत जैसे नाजुक विषय पर खुलेआम शास्त्रार्थ है

हर तरफ हुस्न है, जवानी है,
आज की रात क्या सुहानी है
रेशमी जिस्म थरथराते हैं,
मर्मरी ख्वाब गुनगुनाते हैं
धड़कनों में सुरूर फैला है,
रंग नज़दीक-ओ-दूर फैला है
दावत-ए-इश्क दे रही है फज़ा,
आज हो जा किसी हसीं पे फिदा
के मोहब्बत बड़े काम की चीज़ है
 
मोहब्बत के दम से है दुनिया की रौनक
मोहब्बत ना होती तो कुछ भी ना होता
नज़र और दिल की पनाहों की खातिर
ये जन्नत ना होती तो कुछ भी ना होता
यही एक आराम की चीज़ है
 
किताबों में छपते हैं चाहत के किस्से
हक़ीकत की दुनिया में चाहत नहीं है
जमाने के बाजार में ये वो शय है
के जिस की किसी को ज़रूरत नहीं है
ये बेकार, बेदाम की चीज़ है
 
ये कुदरत के ईनाम की चीज़ है
ये बस नाम ही नाम की चीज़ है
 
मोहब्बत से इतना खफा होनेवाले
चल आ आज तुझ को मोहब्बत सीखा दे
तेरा दिल जो बरसों से वीरान पड़ा है
किसी नाज़नीना को इस में बसा दे
मेरा मशवरा काम की चीज़ है...

मोहब्बत जैसे नाजुक विषय पर खुलेआम शास्त्रार्थ, अपने आप में कम हैरतअंगेज बात नहीं. ओरिएंटल सोसायटी में एक बात खास तौर पर गौर करने लायक रही है- नैतिकता-शील-मर्यादा(?) जैसी पर्देदारी की बातें अक्सर कोने में कहने का चलन ज्यादा रहा है. इस नाजुक विषय पर ओपन स्पेस पार्टी में डुएट के जरिए, डीबेट के लहजे में लॉजिक देना, दोनों पक्षों का अपने-अपने नजरिए को  वाजिब तरीके से जाहिर करना- मोहब्बत अच्छी चीज है या बुरी, असली है या नकली.. भारी दुस्साहस का काम दिखाई देता है. साहिर लुधियानवी के सिवा इस गीत को इस अंदाज में लिखना और किसी के बूते की बात  हो भी नहीं सकता था.

येसुदास की मीठी आवाज में संकोच भरा, हद दर्जे का निराशा भाव. बो टाई पहने अमिताभ बच्चन के चेहरे पर असहमति के भाव, अलग खड़ी राखी के चेहरे के बदलते एक्सप्रेशन्स. कितना खूबसूरत पिक्चराइजेशन है. अक्सर यह देखा गया है कि, लोग असफल प्रेम या जीवन में प्रेम न मिलने का आश्रय-स्थल निराशा में खोजते हैं. गीत के बोलों में वो चाहे नैराश्य-भाव हो अथवा पक्षधरता, सब कुछ इतनी  साफगोई से आया है, कि श्रोताओं ने गीत को कनेक्ट करने में ज्यादा देर नहीं लगाई. कोई दुराव-छिपाव नहीं. इस बात पर गहराई से गौर करें तो एक बात स्पष्ट रूप से समझ में आती है- ऐसी अभिव्यक्ति वही व्यक्ति कर सकता है, जिसने निजी अनुभव से दोनों दशाओं को गहराई से महसूस किया हो.

दूसरी तरफ किशोर कुमार-लता के गाए अंतरों में खुशमिजाजी झलकती है, शशि कपूर-हेमा का कलरफुल नजरिया देखने को मिलता है.  युगल जोड़ी आकार- प्रकार और क्षमता के हिसाब से प्रेम के सकारात्मक पक्ष को एक्सप्लेन करती है. उसमें दिलचस्पी जगाने की कोशिश करते हैं. कोशिश करती है कि, यह उद्दाम भाव उसे भी रास आ जाए. इतना ही नहीं, वे उदासी भरे भाव वाले व्यक्ति को झोली भर के मार्गदर्शन की पेशकश करते हैं.

शशि कपूर-अमिताभ बच्चन की जोड़ी, लंबे समय तक हिंदी सिनेमा की हिट जोड़ी बनी रही.  कई फिल्मों में दोनों, सगे भाई की भूमिका में नजर आए. अपनी फिटनेस और चुलबुले अंदाज के कारण उम्र में पाँच वर्ष बड़े होने के बावजूद शशि साहब, अमिताभ बच्चन के छोटे भाई की भूमिका में खूब जमे. 

खय्याम का अर्ध-शास्त्रीय संगीत इस गीत के प्रभाव को बहुगुणित कर देता है. गीत की ओपनिंग बीट्स से ही संगीत अपना समा बाँध लेता है.

उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

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Girish Lohani

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