Featured

एक दिन जबड़ों की बजाए तुम्हारी आंखें पढ़ने लगेंगी

4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 54 (Column by Gayatree Arya 54)
पिछली किस्त का लिंक: ज्यादातर औरतें आदमी की सेक्स और पेट की भूख शांत करने में ही जीवन खपा देती हैं

इस वक्त तुम नींद में मुस्कुरा रहे हो. तुम्हें मुस्कुराते हुए देखना, अपार दौलत का स्वामी होना है, ऐसी दौलत जिसे कोई छीन नहीं सकता. पता है आज जब मैं अखबार पढ़ रही थी, तो तुम उस अखबार को खाने के लिए बहुत ही ललचाकर देख रहे थे. उफ्फऽऽ! तुम कितने प्यारे लग रहे थे, मैंने तुम्हें बीच में एक कागज दिया था पढ़ने को, तुम्हारे जबड़ों ने उसे अच्छे से पढ़ दिया. कागज का एक-एक कोना काटकर तुम्हें कितनी तसल्ली हुई थी मेरे चूहे, जीत का सा अहसास. लेकिन तुम्हारी निर्मम मां ने मुंह में उंगली डालकर उस कागज के टुकड़े को बाहर निकाल कर तुम्हें रुला दिया. गंदी मम्मा! कागज भी नहीं खाने देती.

एक दिन तुम्हारे जबड़ों की बजाए तुम्हारी आंखें अखबार पढ़ने लगेंगी. शायद तब तुम उतनी ललचाई नजरों से अखबार को नहीं देखोगे जैसे आज देख रहे थे. यूं पढ़ना (सिर्फ मनचाहा) अपने आप में बेहद मजेदार काम है, एक जगह बैठे-बिठाए हम पूरी दुनिया घूम लेते हैं, दुनिया के बारे में जान लेते हैं. अपने जन्म से सैंकड़ों, हजारों, साल पहले की बातें जान लेते हैं. नई-नई चीजों को जानना उतना ही मजेदार है, जितना की नई-नई जगहों पर घूमना. ये सब पढ़कर तुम्हें भी शायद लगे कि पढ़ना सच में बेहद मजेदार होता है, पर आश्चर्य तो तुम्हें ये जानकर होगा मेरे झुमरू, कि फिर भी बहुत कम लोग पढ़ना पसंद करते हैं.

दरअसल मैं जिस पढ़ाई की बात कर रही हूं, समाज में उसकी कोई कद्र नहीं. यहां एक दूसरी ही तरह की पढ़ाई का चलन है. ऐसी पढ़ाई जो न तो पढ़ने वालों को मजेदार लगती है, न ही उसे पढ़ाने वाले बहुत उत्साहित होते हैं. लेकिन फिर भी बच्चों को वे किताबें न सिर्फ पढ़नी होती हैं, बल्कि घोटकर पी जानी पड़ती हैं. मैं स्कूली पढ़ाई की बात कर रही हूं मेरी बच्ची! (मैं प्यार से अभी भी तुम्हें मेरी बच्ची, मेरी चिड़िया कहती हूं.) तुम जिस समय में पैदा हुए हो, ये समय स्कूली शिक्षा के चरम का समय है. यूं स्कूली शिक्षा बुरी नहीं होती. पर हमारे यहां की स्कूली शिक्षा बच्चों को बेहद तनाव में समय बिताने को मजबूर करती है. बच्चों की रचनात्मकता को खत्म करके उन्हें रट्टू तोता बनने पर मजबूर करती है. बच्चों को होमवर्क, प्रोजेक्टस, टेस्ट, एग्जाम में साल भर उलझाकर रखा जाता है. अक्सर ही बच्चों को ऐसे प्रोजेक्ट्स दिये जाते हैं, जो कि बच्चे नहीं उनके मां-बाप को करना होता है.

मैं तुम्हारी स्कूली शिक्षा को लेकर बहुत चिंतित हूं. यदि सुबह-सुबह उठकर हर रोज तुम्हें स्कूल जाने का मन न हुआ, पढ़ाई में तुम्हारा इंट्रेस्ट न हुआ तो भी तुम्हें रोते-धोते  स्कूल जाना ही पडे़गा. क्योंकि स्कूल न जाने का विकल्प तुम्हारे पास है ही नहीं. मैं और तुम्हारे पिता जरूर चाहते हैं कि तुम्हारी खुशी और इच्छा के बिना हम तुम्हें स्कूल न भेजे और ऐसा भी नहीं है कि स्कूल न जाने वालों को ज्ञान नहीं होता या कि उनका नाम नहीं होता. कबीर, प्रेमचंद, गोर्की, आइंस्टीन, चार्ली चैपलिन आदि जैसे न जाने कितने महान लोग हैं जो या तो स्कूल गए ही नहीं या जिन्होंने व्यवस्थित स्कूली शिक्षा नहीं ली, लेकिन उनका अपने-अपने क्षेत्र में बेहद नाम है.

ज्यादातर लोगों को लगता है कि स्कूल और स्कूल की किताबें ही ज्ञान का सबसे बड़ा भंडार हैं, जबकि ज्ञान तो जीवन जीने में हैं. तुम कहोगे कभी मैं कहती हूं कि ज्ञान किताबों में है, कभी कहती हूं ज्ञान जीवन जीने में है. ज्ञान तो सारी किताबों में है, स्कूल की किताबों में भी है. पर स्कूल की किताबों के साथ तुम्हारा संबंध सिर्फ नम्बर लाने का होगा. बारह साल तक डेली टेस्ट, वीकली टेस्ट, मंथली टेस्ट, मिड टर्म एग्जाम, हाफ इयर्ली एग्जाम, फाइनल एग्जाम, बोर्ड एग्जाम तुम्हारा पीछा नहीं छोंडेंगे. आगे-आगे किताबों का रट्टा लगाते हुए तुम दौड़ोगे, पीछे-पीछे तुम्हारे स्कूली टेस्ट, साथ में सवालों के जवाब रटवाते तुम्हारे माता-पिता. बात सिर्फ टेस्ट और एग्जाम देकर ही निबट जाती तो फिर भी खैर थी, असली परीक्षा की घड़ी तो रिजल्ट है, जो कि हमेशा अव्वल ही होना चाहिए. मतलब कि तुम्हें हमेशा फर्स्ट ही आना होगा नहीं तो तुम अच्छे, मतलब कि होशियार बच्चे नहीं कहलाओगे.

लेकिन तुम चिंता मत करो, तुम्हारे मां-पिताजी की तरफ से तुम पर फर्स्ट आने का दबाव कभी भी नहीं पडे़गा, ये मेरा वादा है तुमसे. हालांकि ननिहाल में तुम्हारे नाना और शायद ददिहाल के भी कुछ लोगों की अप्रत्यक्ष दबाव तुम पर रहेगा फर्स्ट आने के लिए, लेकिन हम तुम्हें उससे बचाने की पूरी कोशिश करेंगे. हां लेकिन मैं इतना जरूर चाहती हूं कि तुम खूब पढ़ो. तरह-तरह की किताबों को पढ़ो और किताबों को अपना दोस्त बनाओ. तुम्हारे और किताबों के बीच लुकाछिपी का खेल न हो, बल्कि पकड़म-पकड़ा का खेल हो, तुम किताबों को और किताबें तुम्हें पकड़ने की तलाश में रहें हमेशा.

वैसे सच्ची-सच्ची तुम्हें अपने दिल की बात बताऊं रंग, मेरा तो मन है ही नहीं कि तुम स्कूल जाओ. मैं चाहती हूं कि तुम स्कूल, कॉलेज की शिक्षा प्राइवेट ही ले लो और बस पूरे भारत में घूमो मेरे साथ. अपनी पसंद के काम करो, खूब पढ़ो, संगीत में रुचि हो तो बचपन से ही सीखने लगो. कोई वाद्य यंत्र बजाना सीखो. पर घर-परिवार के खिलाफ हम तुम्हें स्कूल में न पढ़ाने का भी कोई निर्णय नहीं ले सकते और ये भी तो हो सकता है कि तुम खुद ही कूद-कूद कर स्कूल जाना चाहो, तब मुझे भला क्या आपत्ति होगी.

एक गंदी सी बात बहुत देर से मैं तुम्हें लिखना चाह रही थी. पता है जब भी मैं तुम्हें गोद में लेती हूँ, तो तुम्हारी नाक के भीतर काले-काले चूहे दिखते हैं. उन चूहों को देखते ही मेरी उंगलियां उन्हें पकड़कर बाहर खींचने के लिए इतनी मचलने लगती हैं कि क्या बताऊं. नाक-कान में चूहे और चमड़ी पर कोई कील या जख्म का खुरंड देखकर मेरी उंगलियां वहशी बनकर उन पर टूटने के लिए मचलने लगती हैं. लेकिन तुम्हारी छोटी सी नाक के नन्हें-नन्हें छेदों में मेरी उंगलियां घुस नहीं सकती, ये मजबूरी मेरी उंगलियों को अक्सर ही बड़ा सताती है. छी-छी कितनी गंदी-गंदी बात करती है तुम्हारी मां.

उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

View Comments

  • सुहावने मनोभाव पढ़ कर सुकून मिला ।

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

16 hours ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

5 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

5 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

5 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

5 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

5 days ago