समाज

कमाल के हैं अपने भिनज्यू

आम कुमाऊॅनी परिवारों में जीजा जी यानी भिनज्यू एक विशिष्ट छवि लिए रहते हैं. यहाँ फूफाजी भी उन्हीं का एक अवतार हैं. उनकी यह खास छवि बरसों-बरस से चले आ रहे पारस्परिक व्यवहार से बनी है. जैसे संसद में लोकसभा अध्यक्ष की. उनका राशि नाम ज़माने भर में या कहिए पीठ-पीछे कितनी ही बेअदबी से लिया जा रहा हो, रिश्ते से पुकारा जाय तो माननीय जैसे जुमले का मोहताज न होगा.
(Bhinjyu Satire Umesh Tiwari Vishwas)

भिनज्यू के रूप में संबोधित होते ही उनका आत्मविश्वास टूटे हुए कांच के सामान सा जुड़ जाता है. लानटेन की चिमनी अचानक बिजली का बल्ब बन जाती है. इस सम्मानजनक संबोधन के प्रभाव से उनका दबा-ढका प्रमाद छलांग लगाकर बाहर आ जाता है. वो पटवारी साले के लिए तहसीलदार, मास्टर के प्रधानाचार्य, दुकानदार के लिए इंस्पेक्टर, विद्यार्थी के लिए गणितज्ञ या साले की क्लास में जब थे, तबके ब्रिलियंट बन जाते हैं.

हमने कभी कुँजी का सहारा नहीं लिया डीयर, जो मास्टर के मुख से निकला बुद्धि में टेप रिकार्ड हो गया और जस का तस इम्तेहान में पेल दिया. 

अगर विद्यार्थी साला बारम्बार फेल हो रहा हो या बेरोजगार की श्रेणी में पदार्पण कर चुका हो तो भिनज्यू के हास परिहास में शोखी और संजीदगी का अनोखा मेल देखा जा सकता है. सांत्वना देना चाहें तो कह सकते हैं – कुंभ का मेला जो क्या है जो बारह बरस बाद आएगा मेहनत करेगा तो अगले दो-एक साल में निकल जाएगा.

जो गंभीर दिखना चाहें तो कहेंगे – आजकल नौकरी है कहां जो मिल जाएगी, तू कुछ टेक्निकल काम सीख ले तो कहीं फिट हो जाएगा. अपनी काउंसेलिंग को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए वह ठंडी हो रही चाय को अपनी पत्नी से दुबारा गर्म करने के लिए कहते हैं. कप उठा कर जाती पत्नी की चाल में तेजी को भांपते हुए तुरूप का पत्ता मारते हैं – तेरी दीदी के पास आकर परमानंद की औरत रोज पैं-पैं करती थी, अपने उनसे कहके लड़के को कहीं लगवा दो. मैंने एक दिन ऐसे ही कह दिया, उसको कम्प्यूटर कोर्स क्यों नहीं करवा देते! आज वही झेंपू लड़का सोनी के इंस्टीट्यूट में टाइप सिखा रहा है और देखना, भैकेंसि आते ही उत्तराखण्ड सचिवालय में लग जाएगा.

भिनज्यू को अधिकतर वो बातें पता होती हैं जो शायद नीति आयोग को भी पता न हों. उनकी उपजाऊ बुद्धि में कुछ ऐसे नुक्ते अटक कर रह जाते है जो कालान्तर में विकसित हो, अकलटप्पू होने के बावजूद, उनके श्री मुख से बड़े प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त होते हैं – देखते जाओ, यही पायलेट एक दिन कांग्रेस की गोद में बैठकर बीजेपी का जहाज़ उड़ा ले जाएगा.
(Bhinjyu Satire Umesh Tiwari Vishwas)

साथ ही वह हस्तरेखा विज्ञान, ज्योतिष और न्यूमरोलॉजी में या इनमें से किसी एक में अच्छा दखल रखते हैं. परन्तु ससुराल में इन विधाओं का कोई विशेषज्ञ हो तो, वह गीता में व्याख्यायित कर्म के सिद्धान्त पर अटल विश्वास रखने वाले बन जाते हैं – भाग्य-साग्य कुछ नहीं होता, सब ठग विद्या है, लड़कियों का हाथ पकड़ने के बहाने हैं.

कभी-कभी तो भौती भैंकर कम्यूनिस्ट टाइप आदमी होने का ऐलान कर देते हैं – हमने मंदिर में शिब्जी के नन्दी की पीठ पर बैठकर चारमीनार सिगरट पी है.

राजनीति में वह सोनियां के मायके, मोदी के ससुराल, योगी के मालकोट और केजरीवाल के अंदरखाने की ऐसी-ऐसी खबरें रखते हैं जो यदि रजत शर्मा के पास होती तो इंडिया टीवी पर ‘आपकी अदालत’ का हिस्सा बन जाती. भिनज्यू इन खबरों का श्रोत कभी रिवील नहीं करते क्योंकि अपने मुखबिरों के प्रति वह भी बचनबद्ध हैं, वस्तुतः स्वयं के प्रति. यह अलग बात है कि उनकी ज्यादातर बातों पर ससुराल वाले विश्वास नहीं करते. हमदर्दी हासिल करने को भिन्ज्यू जीवन के उस वाकये को सुना सकते हैं जब उनका रक्तचाप दो सौ बट्टे डेढ़ सौ या बुखार 108 डिग्री हो गया था. ससुरालिये भी उनकी कहानियों पर यक़ीन करते दिखना चाहते हैं जिससे उनका ससुराल प्रवास दोनों पक्षों के लिए औसॉणमुक्त (सुखमय) बना रह सके.

लेकिन ऐसा सदा संभव नहीं होता. भिनज्यू कभी-कभी बिना बात के गमगमे या मकमके (मुंह फुलाये) हो जाते हैं और शाम तक गमगमे बन रहते हैं. सौरासिए कारण जानना चाहते हैं. वह अपनी लड़की से दरियाफ्त करते हैं – किलै आज…?

वह बताती है – कुछ खास बात नहीं है इनका मूड किसी दिन ऐसा हो जाता है, रात तक ठीक हो जाएंगे. सालियां ठिठोली करती हैं – भिना रात को भात मत खाया करों मूख ओसा जाता है. पत्नी उलाहना देती है – मौनॉक जास बुकाई के है रौ छा, छिः…! (ऐसा मुंह बनाये बैठे हो मानो मधुमक्खी ने काट कर सुजा दिया हो.)

पर वह कोई जबाव नहीं देते. दरअसल रात बौनी स्काट की घुटकी लगाकर भिनज्यू बहक गये थे. ज्यादा बतोले मारने से उनकी कुछ पोल खुल गई . उन्होंने शेखी बघारते हुए कह दिया कि अपने बॉस को उन्होंने कस कर थप्पड़ मार दिया था और बात बढ़ी तो बुरी तरह फतोड़ (पीट) दिया. बात इतनी थी कि साहब ने उनसे तू कह दिया था. इस पर श्रोताओं में से किसी लाटे ने पूछ लिया – साब ने आपको नौकरी से सस्पेंट क्यों नहीं करा होगा? भिनज्यू ने ऐसा करने की हिम्मत रखने वाले काल्पनिक साहब की मां-बहिन कर दी. इस शब्दावली से कुछ सालियां आदि सन्न रह गई. एक तो उठ कर चली भी गई. बाद में आ भी गई.
(Bhinjyu Satire Umesh Tiwari Vishwas)

भिनज्यू चाहते थे कि उनकी मर्दानगी का लोहा मानते हुए ससुराल की मक्खी भी न भिनभिनाए. अगर कोई प्रश्न हो भी तो प्रसून जोशी द्वारा मोदी जी से पूछे गए सवाल के जैसा हो – अस्पताल ले जाना पड़ा होगा उसे तो सर?

अपना ही चुतियापा उन पर ऐसा असर छोड गया कि वह गमगमे हो गये. पश्चाताप हो रहा है. वह खुद से खफा है. चूंकि वह भिनज्यू हैं, सयाने जैसे हैं रात की लौंडियोली को गंभीरता की चादर से ढक देना चाहते हैं. इतना ही नहीं, वह जताना नहीं चाहते कि रात उनको चढ़ गई थी. वह कभी कह भी चुके थे कि उनको शराब से नश्शा नहीं होता. आज उन्हें लोग अपनी हुक्म-उदूली करते लग रहे हैं. उन्हें कोई सयानों की तरह ट्रीट नहीं कर रहा. उनकी अपनी पत्नी भी थोडी लापरवाह दिख रही है.

अखबार को आए घंटा भर हो गया पर तीसरी चाय के साथ उनको डिलीवर नहीं हुआ. यह सब बातें स्वाभाविक हैं किन्तु भिजन्यू को लगा रहा है कि यह ससुराल में उनकी घटती इज्जत का परिणाम है. वह किसी भी कीमत पर अपना पुराना मुकाम हासिल करना चाहते हैं.
(Bhinjyu Satire Umesh Tiwari Vishwas)

अखबार परोसती पत्नी को आखिरकार उन्होंने गमगमे होने का मानो कारण बताते हुए कहा – गैस्ट्रीक जैसा हो रहा है. सौभाग्य से उसी समय उनकी पूं भी निकल गई. बगल वाले कमरे से खित-खिताट की आवाज से माहौल हल्का हो गया और भिनज्यू का मन और शायद पेट भी. पत्नी भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी, हालांकि वह बडे-बड़े विस्फोटों की गवाह थी. फिर भिनज्यू अजवाइन, हींग, काला-नमक, गरम पानी से घुटक कर मुस्कुराने लगे. ऊॅची आवाज में, सारी भद्रता को समेटते हुए जोक जैसा मारा – उस तरफ बडे लड्डू फूट रहे हैं? जवाब मिला – उस तरफ बम छूट रहे हैं. ऐसे में भिनज्यू अपने हंसोड़ होने के इम्प्रेशन को द्विगुणित करना नहीं भूलते और बात को खींचते चले जाते हैं.

जहां तक खिंचाई का प्रश्न है कुमाऊॅ के भिनज्यू लोगों का सैंस आफ ह्यूमर खिंचाई के कलेवर में परवान चढ़ता है. वह खिंचाई या मजाक की आड़ में अपने रोमांटिक व्यक्तित्व का प्रदर्शन करते हैं. जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के प्राणी अजीब सी हरकतें कर मादाओं को रिझाने की कोशिश करते हैं वैसे ही भिनज्यू अपनी सीमाओं में, मर्यादाओं के फंदे में फंसे-फंसे, सालियों उनकी सहेलियों आदि आदि पर खिंचाई नामक शस्त्र का प्रयोग करते हैं. इस शस्त्र की विशेषता यह है कि इसके असर से सब लोक वाकिफ हैं पत्नियां भी सालियां भी. इसकी मारक क्षमता का भिनज्यू को भी आभास है. मध्यम तेज गति के गेंदबाज की बाउंसर की तरह यह चौंकाने का माद्दा तो रखती है पर विकेट कम ही ले पाती है. इसके कुछ नमूने देखें.

एक छरहरी साली को देखकर भिनज्यू – ये आलूओं के खेत में भिण्डी कहां से आई?
जबाव – आप अपने गोबी के फूल का ध्यान धरें, ही-ही, ठी-ठी.
नेपथ्य में ‘सिसूणकि पात,’ ठहाका, ‘जेठाक महैंणा जास निमू…’ बड़ा समवेत ठहाका.
भिनज्यू-  आप लोगों की दीदी हाँ कहे तो हम एक और ले जाएँ?
जवाब- आलू या भिण्डी?
भिनज्यू – कोई भी चलेगी
प्रत्युत्तर- तब तो, गेठी (गाँठों और काले छिलके वाली सब्ज़ी) ले जाओ. फिर लम्बा खितखिताट.

कई भिनज्यू वापस घर जा इस खिंचाई में नमक-मिर्च लगाकर अपने दोस्तों को बताते पाए गये हैं – क्या बताउँ यार लौंडिया बड़ी तेज़, मैंने कहा बेटा जवाब लग गया तो जिन्दगी भर का हो जाएगा, अगल-बगल देखा और एक को आँख मार दी, मुँह से कहा कुछ नहीं. वह उठकर चल दी, साथ में दूसरी छप्पन छुरी को भी ले गयी. मैं भी बाथरूम करने के बहाने उठा, बगल के कमरे में अँधेरा था, बस क्या कहूँ, हा हा ही ही ही!

श्रोता गर्दन हिलाते हैं, कोई ईर्ष्या का भाव नहीं दिखाता क्योंकि दोस्तों को भी पता है कि खिंचाई कितना निरीह हथियार है! वह ख़ुद भी भिनज्यू हैं या बनेंगे, इसलिए मुठ्ठी के बंद रहने में ही भलाई समझते हैं.

ऐसा नहीं  कि भिनज्यू की भूमिका सदा हल्की-फुल्की ही हो, ससुराल के कई महत्वपूर्ण मसलों पर उनकी राय ली जाती है. कई बार ये मामले इतने गंभीर होते हैं कि सम्मान बनाये रखने को उन्हें अपनी एफडी तुड़ानी पड़ती है. घर-वर के चयन में निर्णायक स्वीकारोक्ति या ना-नकुर सम्प्रेषित करनी पड़ती है. ऐसे कई अवसरों पर भूमिका निर्वाह के बाद भिनज्यू तेज पत्ती की चाय या विल्स फिल्टर पीना पसन्द करते हैं. इस समय उनके श्रीमुख की आभा कम वोल्टेज पर जल रहे सौ वाट के बल्ब जैसी होती है. परोपकार की संतुष्टि नाक की टुक्की से टपकने की उद्यत देखी जा सकती है. उन्हें अन्दर से पता होता है कि उनकी भूमिका परम्परागत है किन्तु प्रकट में वह अपनी बुद्धिमत्ता, अनुभव और चातुर्य को इसके नम्बर दे रहे होते हैं.
(Bhinjyu Satire Umesh Tiwari Vishwas)

फलां की मंगनी के वक्त तीन साल पहले उन्होंने साफ-साफ कह दिया था कि लड़के में अवश्य कोई खोट है. लड़का शराबी निकला. आटा चक्की लगाने के लिए उनके साढू ने उनसे परामर्श किया था उन्होंने कहा – लोहे का काम सबको नहीं फलता, फिर भी आप देख लें. आटा चक्की छः महीने में किराए पर उठानी पड़ी. यह दीगर बात है कि साढू का गल्ले का काम चमक गया. इस प्रकार की पेशेवर क्रियाओं में भिनज्यू को औरतों का दखल बिलकुल पसंद नहीं होता. उनका मानना है कि स्त्रियां अपना व्यक्तिगत एंगिल घुसेड़ कर भांची सी मार देती हैं. उदाहरण के लिए एक साले का अच्छा रिश्ता बनते-बनते इसलिए रह गया कि उनकी पत्नी को उस परिवार से ओच्छयाट (दिखावे) की बू आ गई. यह बू उनके गहनों से आ रही थी.

कार्य सम्पन्न होने के बाद भिनज्यू उदास होते हुए भी देखे गये हैं. इसको ‘उदेखीना’ कहा जाता है. इस प्रकार की उदासी को साधु-संतों और गधों की उदासी के बीच रखा जा सकता है. जरा सा बैलेंस बिगड़ने पर वह इनमें से किसी एक की तरह व्यवहार करते भी पाये गये हैं. अधिकांश भिनज्यू दायित्व वहन के पश्चात थोडी देर आराम करते हैं किन्तु बीच-बीच में पेशाब या पाखाने भी जा सकते हैं. ऐसी अवस्था में एक सदस्य को तौलिया लेकर खड़े रहने की आवश्यकता होती है. इससे पहले कि वह अपने हाथ अनुपलब्ध रूमाल को निकालने अपनी जेबों में डालें, तौलिया पेश कर दिया जाय. जिन घरों में भिनज्यूओं का समागम वर्ष में दो से अधिक बार होता है वहां एक तौलिया, ब्लेड का पैकेट, विल्स फिल्टर, बौनी स्काट, कुछ सूखे मेवे, एक जोड़ा हवाई चप्पल, मनोहर कहानियां का भूतिया विशेषांक, गरम पानी की थैली आदि हारमोनियम के बक्से में हमेशा रखी रहती हैं.

भिनज्यू लोगों के लिए कुछ विशेषण आम तौर पर कुमाऊॅनी परिवारों में प्रयोग किए जाते हैं जिनमें से कुछ अग्रलिखित हैं – गऊ जैसे सीधे, पानी से पतले द्याब्त (देवता), बकुवाभाड़ (मुँहफट), सुर्ते या मशिण (श्रूड), निगुर या पलीत (सफाई के मामले में) आदि. उक्त में से आवश्यकतानुसार पहले तीन का प्रयोग स्वच्छन्दता पूर्वक और बाद के तीन का प्रयोग दबे स्वर में घर के सदस्यों के बीच किया जाता है. विदा होते समय भिनज्यू को पिठ्यां लगाया जाता है. कुछ वर्षों पहले तक उनके मस्तक पर लाल रोली का जो घस्सैका मारा जाता था उसको देखकर कोई भी अनुमान लगा सकता था कि वे भिनज्यू ही होंगे. इधर पता नहीं जेबकतरों की डर से या फैशन की वजह से, अब एक लाल बुट्टा सा लगाया जा रहा है, पर मुठ्ठी से मुठ्ठी में स्थानान्तरित होने वाली भेंट में इजाफा अवश्य हो रहा है.
(Bhinjyu Satire Umesh Tiwari Vishwas)

आज के भिनज्यू अपने पूर्ववर्तियों की तरह ना-ना कहते हुए भेंट स्वीकार करते हैं और राशि का अनुमान लगाते हुए ससुरालियों के प्रति अपने महत्वपूर्ण योगदान का आकलन करते हैं. कभी-कभी उनके मुख से निकलता है – चलिए ठीक रहा फिर आपका. वह मन में कह रहे होते हैं – मैं अपने मां बाप का पाला-पोषा, पढ़ाया-लिखाया, आपके काम आया, हजारों के काम का तुमने सौ रूपल्ली पिठ्यां लगाया. प्रकट में वह सास के शब्दों – आपुण ध्यान धरिया. के प्रत्युत्तर में ‘होई-होई’ कहते हैं. ट्रान्सपोर्ट के किराए का हिसाब लगाते हुए, साले की चुंगी राशि निर्धारित कर रहे होते हैं. फिर अपनी ही पत्नी द्वारा दिए गये ऐपणों से सजी देहरी को फांदकर निकल जाते हैं.

बदलते समय की बलिहारी भिनज्यू अब ब्रदर इन लॉ, बेटा आदि संबोधनों से नवाजे जा रहे हैं. इसके पीछे सालों की बरसों से दबी भावनाएं और ससुरों का अपनी लड़कियों को कान्वेंट शिक्षा दिलवाकर की गई शादी का दर्प छुपा हुआ है. वह भिनज्यू की छवि से कुछ घबराए हुए भी हैं, ठीक वैसे ही जैसे राजस्थान में कांग्रेस, राज्यपाल से. वह समझते हैं कि अंग्रेजी नाम देकर यह रिश्ता थोडा आधुनिक रूप धारण कर लेगा जिसके फलस्वरूप जवांई अपने को बेटा समझ कर कुछ मुरव्वत का भाव दिखाएगा, वैसे आजकल बेटे कहां, बाप पैदा हो रहे हैं.

मैं अपने इस लेख द्वारा सारे भिनज्यूओं को आगाह करना चाहता हूं कि आपके खिलाफ साजिश चल रही है, जिसमें विदेशी शब्दों का सहारा लिया जा रहा है. पर आप याद करें आप में अड़ियल बने रहने की जन्मजात योग्यता है. आप हरगिज इस फंदे में न आएं. यहां कहना तो नहीं चाहिए पर आपको कसम है अपने पहले प्यार की, (हां वहीं मकर राशि वाली) अपने को भिनज्यू और जवांई ज्यू ही संबोधित करवाएं. आप कैसे भूल सकते हैं कि उनके घर की लडकी आपके घर में है. आपने ऐसे समय में ल्याख (रिश्ता स्वीकार) लगाया है जब स्कूटर के बिना शादी नहीं होती थी. हालांकि, आपको स्कूटर क्या साइकिल चलाना भी नहीं आता था पर स्कूटर मिलता तो सीख जाते.
(Bhinjyu Satire Umesh Tiwari Vishwas)

यहां आपको एक अन्दर की बात भी बता दूं, खुद उनके घरों में एक बट्टा चार सदस्य भिनज्यू शब्द से और उस असली पारंपरिक छवि से कोई परहेज नहीं करते क्योंकि वह भी आपकी ही नाव में सवार हैं. अगर आपने स्टैण्ड ले लिया तो वह दिल पक्का कर लेंगे बहकने से बच जाएंगे और जब तक संभव हो भिनज्यू बने रहेंगे. दूसरी बात, शादी के बाद आपने सर्वदा उनका मान रखा है, जब बस की रोड बंद थी तब आप पैदल गये हैं, आपका पेट खराब था तब भी आपने पूडियां खाई हैं. नामकरण से लेकर शादी का कोई फंक्शन आपने नहीं छोड़ा. खाली हाथ कभी गये नहीं. आपके लाए बर्फी के डिब्बों में आज भी आपकी सास ने सुई-धागा, बटन, नाड़े इत्यादि रखे हैं. रात-अधरात अपनी राय दी है. साल दर साल पिठ्यां लगाने को मना किया है, पत्नी के एसटीडी के बिल चुकाए हैं और जेठू के लडके का फार्म अंग्रेजी में भरवाया है.

यहाँ यह भी कह दूं कि मुझे बहुत सी बातें पता नही होंगी लेकिन इतना निश्चित तौर पर जानता हूं कि वो आपके अहसानों के बोझ से दबे हुए हैं. पूरी तरह नहीं तो एक बट्टा तीन अवश्य ही, और इतना कम नहीं होता. दूसरी ओर आप मांग क्या रहे हैं? आपने कभी कुछ मांगा जो आज मांगेंगे? आप केवल एक संबोधन को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं एक ऐसा संबोधन जिससे हमारी संस्कृति की जड़े जुड़ी हुई हैं. कल्पना करें कितना रसविहीन न्यू इंडिया होगा जिसमें रामराज्य विजन के अनुरूप तरक्की करता भारत होगा, ब्रदर-इन-लॉ होंगे, सन-इन-लॉ होंगे परन्तु भिनज्यू नहीं होंगे!
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हल्द्वानी में रहने वाले उमेश तिवारी ‘विश्वास‘ स्वतन्त्र पत्रकार एवं लेखक हैं. नैनीताल की रंगमंच परम्परा का अभिन्न हिस्सा रहे उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की महत्वपूर्ण पुस्तक ‘थियेटर इन नैनीताल’ हाल ही में प्रकाशित हुई है.

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लेखक की यह कहानी भी पढ़ें: पीन सुंदरी: उत्तराखण्ड की नायिका कथा

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  • भिनज्यू गजब का किरदार खोज निकाला, असल में इस किरदार के किस्से भी हमारे समाज में रचे बसे हुए हैं। बहुत सुंदर उमेश दा

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