समाज

चम्पावत का बालेश्वर मंदिर: कमल जोशी के फोटो

कुमाऊँ में टनकपुर से लगभग 75 किमी दूर 1670 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चम्पावत का मशहूर बालेश्वर मंदिर शिल्प व लोकथात की समृद्ध पूंजी है. ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार चौदहवीं शताब्दी में चम्पावत बसा. तभी यहाँ बालेश्वर मंदिर का निर्माण हुआ. चम्पावत को बसाने में अभयचंद की मुख्य भूमिका मानी जाती है. बालेश्वर मंदिर में अभयचंद का 1371 ई. का आलेख खंडित अवस्था में है. एक अन्य शिलालेख समीपवर्ती चौकुनी गाँव के मंदिर में भी है. कहा जाता है कि बालेश्वर मंदिर से उत्तर दिशा में एक बौद्ध तीर्थ भी था. (Baleshwar Temple Photos Kamal Joshi)

कालीचौड़ में देवी का सिद्ध पीठ

चम्पावत काली कुमाऊँ की राजधानी रहा था. यहाँ का बालेश्वर मंदिर समूह देवकुल परिसर का है.

बालेश्वर मंदिर समूह परिसर में दो द्वि-पुरुष देवालय बालेश्वर-सुग्रीवेश्वर मंदिर तथा रत्नेश्वर-चम्पावती मंदिर हैं जिनकी तलछंद योजना एक क्षैतिज धुरी के दोनों किनारों में एक दूसरे की ओर एक-एक गर्भगृह है जिसके सामने रंग मंडप तथा दोनों को संयोजित करता मुख मंडप बना हुआ है. ऊपर के छंद में नौ अलंकृत पट्टियों द्वारा प्रसाद पीठ, वेदी बन्ध है और फिर त्रिअंगी-पंच रथ से डिजायन किया गया जंघा भाग बना है. मंडप आज ध्वस्त अवस्था में है. द्वि पुरुष मन्दिर चंद काल में ही निर्मित हुए. बालेश्वर मन्दिर का अलंकरण भव्य है जिसमें नक्काशी की गई है. वाह्य दीवारों में ब्रह्मा विष्णु महेश तथा अन्य देवी-देवताओं की अनुकृतियां हैं. मन्दिर की चौकी में हाथी विविध मुद्राओं में उकेरे गए हैं. पुष्पों का अलंकरण भी विद्यमान है.

बालेश्वर मंदिर के बाहर अष्टधातु का एक घंटा भी लटका है जिस पर कर्ण भोज चन्द चंदेल का नाम अंकित है. बालेश्वर के दक्षिण की ओर गोलू देवता का मन्दिर विद्यमान है. चम्पावत के स्थानीय निवासियों के इष्ट देवता देव गोलू नहीं हैं जबकि अल्मोड़ा, बागेश्वर और नैनीताल में गोलू की मान्यता है. चितई व घोड़ाखाल की परम्परा में गोलू में भी अपनी समस्याओं की पाती मंदिर प्रांगण में लगाई जाती हैं. गोलू मंदिर में घंटियों से बहुल ध्वज विद्यमान हैं. यहाँ से पूर्व दिशा में कांतेश्वर महादेव व उत्तरपूर्व में मानेश्वर मंदिर है तो दक्षिण दिशा की चोटी पर हिंगला देवी व तहसील कार्यालय के पास नागनाथ मंदिर विद्यमान है. बालेश्वर मंदिर समूह के अंतर्गत चम्पावती देवी मंदिर, बटुक भैरव मंदिर तथा मालिका मंदिर हैं.

(आलेख: मृगेश पाण्डे)

इस मंदिर की प्रस्तर पर की गयी नक्काशी कुमाऊँ के सभी मंदिरों में पाई जाने वाली नक्काशी से कहीं बेहतर है. मशहूर फोटोग्राफर स्व. कमल जोशी के कैमरे से इस मंदिर की कुछ खूबसूरत तस्वीरें प्रस्तुत हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • कुछ तस्वीरें खजुराहो की याद दिलाती हैं।

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago