बागेश्वर विधानसभा सीट के उपचुनाव में प्रचार काफी तेज हो गया है. मतदान को केवल चार दिन ही बचे हैं. ऐसे में अगले साल अप्रैल-मई 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ने ही पूरी ताकत इस चुनाव को जीतने में लगा दी है. भाजपा के प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बिष्ट कहते हैं कि हर क्षेत्र में जनता का स्नेह पार्टी को मिल रहा है. चंदन रामदास की स्वच्छ छवि आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में है. भाजपा बड़े अंतर से यह चुनाव जीतेगी.
(Bageshwar Bypoll Election 2023)
कुछ ऐसा ही दावा कांग्रेस की ओर से भी किया जा रहा है. कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि इस बार भाजपा की जीत का सिलसिला थमने जा रहा है. कांग्रेस प्रत्याशी बसंत कुमार को जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है. लोग डबल इंजन की गपोड़ी सरकार से बहुत नाराज हैं. कांग्रेस को मिल रहे भारी जन समर्थन से भाजपा की प्रदेश सरकार बौखलाई हुई है. वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर उन्हें परेशान कर रही है ताकि वह खुले मन से चुनाव प्रचार न कर सकें. जनता इसका जवाब वोट के माध्यम से देगी.
बागेश्वर विधानसभा सीट के उपचुनाव में वैसे तो पांच प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं. पर सीधी और कांटे की टक्कर भाजपा, कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच ही है. यह मौजूदा विधानसभा का दूसरा उपचुनाव है .जिसके लिए आगामी 5 सितंबर 2013 को मतदान होने जा रहा है. इससे पहले इस विधानसभा का पहला उपचुनाव चम्पावत में गत वर्ष 31 मई 2022 को हुआ था. जब चम्पावत के भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए अपनी सीट से विधानसभा चुनाव के लगभग एक महीने बाद 21 अप्रैल 2022 को त्यागपत्र दे दिया था. उल्लेखनीय है कि धामी विधानसभा चुनाव में खटीमा सीट से कांग्रेस के भुवन कापड़ी से चुनाव हार गए थे. पर चुनाव परिणाम में भाजपा एक बार फिर से भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापस लौट गई.
धामी के चुनाव हार जाने के बाद भी भाजपा के सर्वे सर्वा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने एक बार फिर से पुष्कर सिंह धामी पर ही विश्वास जताया. चम्पावत के उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को 58,258 वोट मिले. उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की निर्मला गहतोड़ी को केवल 3,233 वोट ही मिले और उनकी जमानत भी जब्त हो गई. इस तरह धामी ने निर्मला गहतोड़ी को 55,025 वोटो के भारी अंतर से हराया. सपा के मनोज भट्ट को 413, आईएसडी के हिमांशु गड़कोटी को 402 और नोटा को 377 वोट मिले.
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बागेश्वर विधानसभा का उपचुनाव भाजपा विधायक और परिवहन व समाज कल्याण मंत्री चंदन राम दास के गत 25 अप्रैल 2023 को हुए निधन के बाद हो रहा है. गत विधानसभा चुनाव 2022 में चंदन राम दास ने कांग्रेस के उम्मीदवार रंजीत दास को लगभग 12,141 वोटों से हराया था. तब चंदन राम को 32,211 और रंजीत दास को 20,070 वोट मिले थे और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी बसंत कुमार 16,109 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे. चंदन रामदास बागेश्वर सीट से लगातार चार बार 2007, 2012, 2017 और 2022 में विधायक चुने गए. उत्तराखण्ड के अब तक हुए पांच विधानसभा चुनावों में कांग्रेस केवल एक बार 2002 में ही इस सीट पर विजय रही और भाजपा ने लगातार चार विधानसभा चुनाव इस सीट पर जीत कर यहां अपनी मजबूत स्थिति का एहसास कराया है. इस हिसाब से देखें तो भाजपा यहां मजबूत स्थिति में दिखाई देती है.
बागेश्वर सीट पर उपचुनाव की घोषणा चुनाव आयोग ने 8 अगस्त 2023 को की. उपचुनाव की अधिसूचना 10 अगस्त को जारी की गई और उसी दिन से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई. जो 17 अगस्त तक चली. कुल छह लोगों ने नामांकन किया. जांच में सभी के नामांकन पत्र सही पाए गए . नाम वापसी के दिन 21 अगस्त को एक निर्दलीय प्रत्याशी जगदीश चन्द्र ने अपना नामांकन वापस ले लिया. इसके बाद अब चुनाव मैदान में केवल पांच प्रत्याशी हैं. इन पांच प्रत्याशियों में भारतीय जनता पार्टी की पार्वती दास, कांग्रेस के बसंत कुमार, समाजवादी पार्टी के भगवती प्रसाद त्रिकोटी, उत्तराखण्ड क्रांति दल के अर्जुन देव और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के भगवत कोहली शामिल हैं. उपचुनाव में अब कोई भी निर्दलीय प्रत्याशी नहीं है. इस सीट पर 1,18,225 मतदाता है. जिनमें 60,045 पुरुष और 58,180 महिला मतदाता हैं. जिनमें से 2,207 सर्विस मतदाता और 1,356 दिव्यांग मतदाता भी शामिल हैं.
चुनाव आयोग ने बागेश्वर सीट पर उपचुनाव की घोषणा भले ही 8 अगस्त को की हो, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अपने विधायक चंदन राम दास की मौत के बाद से ही उपचुनाव को देखते हुए यहां अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दी थी. चुनाव की घोषणा से पहले ही गत 31 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी ने पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा और पार्टी के प्रदेश महामंत्री राजेंद्र सिंह बिष्ट को उपचुनाव का प्रबंधन सौंप दिया और यह भी तय किया कि दोनों नेता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष के मार्गदर्शन में कार्य करेंगे. भाजपा के इस निर्णय से ही पता चल रहा था कि राज्य विधानसभा में भारी बहुमत होने के बाद भी वह उपचुनाव को लेकर किसी भी तरह की ढिलाई बरतने के पक्ष में नहीं है.
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लगभग 6 महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा इस उपचुनाव के बहाने जनता का मूड भी भांपना चाहती है. इसी कारण वह बागेश्वर उपचुनाव को भारी बहुमत से जीतने की रणनीति पर कम कर रही है. इसी वजह से भाजपा नेतृत्व ने राजनीतिक चर्चाओं को दरकिनार करते हुए चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास पर दांव खेला है, हालांकि कुछ अन्य नाम भी चर्चा में थे, जिनमें चंदन राम दास का बेटा गौरव दास, पार्टी के वरिष्ठ नेता जेसी आर्य, दीपा आर्य और मथुरा प्रसाद शामिल थे. पार्टी ने पुरानी परम्पराओं को कायम रखते हुए ही सहानुभूति लहर के सहारे चुनाव जीतने की रणनीति के तहत पार्वती दास को उम्मीदवार बनाया है. पार्टी को लगा कि सहानुभूति लहर के लिए चंदन रामदास के बेटे गौरव की बजाय उनकी पत्नी ज्यादा मजबूत प्रत्याशी बनेंगी. पति के लगभग 16 साल तक विधायक रहने के बाद भी पार्वती हालांकि बहुत अधिक सक्रिय राजनीतिक तौर पर नहीं रहती थी, पर अपने पति के साथ सार्वजनिक समारोह में शामिल होती रही हैं . यही उनकी राजनीतिक पूंजी है. जिसके सहारे वह विधानसभा के भीतर प्रवेश करने करने का भरोसा पाले हुए हैं.
इसके विपरीत कांग्रेस के प्रत्याशी बसंत कुमार एक जनाधार वाले नेता माने जाते हैं. वह पिछले दो विधानसभा चुनाव लड़कर बढ़िया वोट लाते रहे हैं. 2017 के चुनाव में वह बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मतदाताओं का भरोसा जीतने में कामयाब रहे तो 2022 के चुनाव में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की बजाय आम आदमी पार्टी को अपना नया राजनीतिक ठौर बनाया. आप प्रत्याशी के तौर पर 16,109 वोट लेकर अपने जनधार को एक बार फिर से साबित किया. मतदाताओं में उनकी इसी पैंठ को देखते हुए कांग्रेस ने इस बार गत विधानसभा चुनाव के अपने प्रत्याशी रंजीत दास की बजाय बसंत कुमार पर दांव खेलना ज्यादा उचित समझा. कांग्रेस द्वारा बसंत कुमार को प्रत्याशी बनाए जाने से भाजपा की राजनीतिक मुश्किलें बढ़ गई हैं. कांग्रेस ने अपने इस निर्णय से चुनाव को कांटे का बना दिया है.
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उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर है. चुनाव मैदान में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल, समाजवादी पार्टी और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के प्रत्याशी संघर्ष को त्रिकोणात्मक बनाने की स्थिति में भी नहीं हैं. इन दलों का चुनाव लड़ना एक तरह से अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग भर है और कुछ नहीं. उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच जबरदस्त राजनैतिक रस्साकसी भी इस बीच में चली है.
बागेश्वर सीट को उपचुनाव में अपनी झोली में डालने की मंशा पाले कांग्रेस ने बसंत कुमार पर दांव खेलने की रणनीति के तहत जब पर्दे के पीछे उनसे कांग्रेस में शामिल होने के लिए बातचीत प्रारम्भ की तो इसकी भनक कॉग्रेस नेता रंजीत दास को लग गई.कांग्रेस नेता एक ओर बसंत कुमार को पार्टी में लाने की जुगत में लगे थे, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपने नेता रंजीत दास की नाराजगी का जरा भी भान नहीं हुआ. उनके नाराजगी की जो थोड़ी बहुत चर्चा हुई भी तो पार्टी ने उसे गम्भीरता से नहीं लिया. बागेश्वर सीट के गत अप्रैल में रिक्त होने के बाद से ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा इस रणनीति में जुट गए थे.
कांग्रेस बसंत कुमार को पार्टी में शामिल कर कोई राजनीतिक धमाका करती उससे पहले ही भाजपा ने कांग्रेस को तगड़ा झटका गत 12 अगस्त 2023 को दे दिया. उपचुनाव में कांग्रेस से टिकट न मिलने की आशंका के कारण नाराज चल रहे रंजीत दास से भाजपा नेतृत्व ने आनन-फानन में संपर्क साधा और उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया. रंजीत दास ने देहरादून में मुख्यमंत्री आवास में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट की उपस्थिति में भाजपा की सदस्यता ली.
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भाजपा में शामिल होने पर उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस एक ऐसे व्यक्ति को टिकट देने जा रही है, जो गत विधानसभा चुनाव में किसी दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ा था. कांग्रेस अपने सच्चे और वफादार कार्यकर्ताओं को हांसिए पर धकेलने का काम कर रही है. वे कांग्रेस की उपेक्षा और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यों से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं. वह बागेश्वर उपचुनाव में पार्टी की जीत के लिए काम करेंगे. उन्होंने कहा कि उनका परिवार दशकों से कांग्रेस से जुड़ा हुआ रहा है. उनके पिता गोपाल राम दास उत्तर प्रदेश के समय बागेश्वर से चार बार 1967, 1980, 1985, 1989 में विधायक और एक बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे.
रंजीत दास ने कहा कि कांग्रेस में पीढ़ियों से रहने के बाद आज मुझे भारी मन से उसे छोड़ना पड़ा है. इसके लिए कांग्रेस के नेता जिम्मेदार हैं. रंजीत दास के भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि उन्हें खुद पर विश्वास नहीं था. उनका नाम पार्टी के पैनल में गया हुआ था. अभी टिकट फाइनल नहीं हुआ, लेकिन रंजीत दास ने उससे पहले ही दल बदल कर कांग्रेस के साथ विश्वासघात किया है. उन्होंने कहा कि हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहने के दौरान रंजीत दास उनके ओएसडी थे. उसके बाद कांग्रेस ने उन्हें बागेश्वर नगर पालिका और विधायक का चुनाव लड़वाया. इसके बाद भी कांग्रेस में उनकी उपेक्षा किए जाने का आरोप हास्यास्पद ही है. इसके साथ ही माहरा ने यह भी कहा कि अच्छा हुआ रंजीत दास चुनाव से पहले ही पार्टी छोड़ गए अन्यथा वह टिकट न मिलने पर भीतरघात करते. जिससे पार्टी को और नुकसान होता. करन माहरा के बयान से स्पष्ट होता है कि कांग्रेस ने रंजीत दास को टिकट न देने का मन बना लिया था. टिकट न मिलने की पक्की जानकारी होने पर ही रंजीत दास ने भाजपा का दामन थामना आवश्यक समझा.
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जिस दिन रंजीत दास ने कांग्रेस को अलविदा कहा, उसी दिन यह चर्चा जोरों पर थी कि अगले एक-दो दिन में आम आदमी पार्टी के नेता और गत विधानसभा चुनाव में बागेश्वर से चुनाव लड़ चुके बसंत कुमार और गत विधानसभा चुनाव में ही कांग्रेस से विद्रोह करके निर्दलीय चुनाव लड़े भैरवनाथ टम्टा कांग्रेस में शामिल होने वाले हैं. इन दोनों नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने के बाद ही कांग्रेस बागेश्वर उपचुनाव के लिए अपना प्रत्याशी घोषित करेगी और कॉग्रेस ने यही किया.
रंजीत दास के कांग्रेस छोड़ने के एक दिन बाद ही 13 अगस्त 2023 को आम आदमी पार्टी छोड़कर बसंत कुमार ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया. उनके साथ ही भैरवनाथ टम्टा भी फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए. इन दोनों नेताओं को बागेश्वर में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कॉग्रेस की सदस्यता दी. इस अवसर पर पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा, पूर्व विधायक ललित फर्स्वान, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी, जिला अध्यक्ष भगत डसीला और जिला प्रभारी महेंद्र लूंठी भी मौजूद थे. बसंत कुमार ने कहा कि अभी तक जो शक्तियां टूट रही थी, उसका लाभ भाजपा उठा रही थी. इसे रोकने के लिए ही वह कांग्रेस में आए हैं. कांग्रेस के साथ जुड़कर दो शक्तियां एक हुई हैं. उपचुनाव में कांग्रेस की जीत तय है. भैरवनाथ टम्टा ने कहा कि वह जन्मजात कांग्रेसी हैं. पिछला चुनाव उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा तो इस टूट से भाजपा को लाभ मिला, लेकिन इस बार कांग्रेस को पूरी तरह मजबूत किया जाएगा.
इन दोनों नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने के अगले दिन 14 अगस्त को कांग्रेस ने बसंत कुमार को और भाजपा ने दिवंगत मंत्री चंदन राम दास की पत्नी पार्वती दास को अपना प्रत्याशी घोषित किया. भाजपा प्रत्याशी पार्वती दास ने कहा कि उनके पति ने बागेश्वर विधानसभा सीट में विकास के अनेक कार्य करवाए. जो एक मील का पत्थर हैं. जो काम अधूरे रह गए हैं, उन्हें त्वरित गति से पूरा करना ही उनका लक्ष्य होगा. मैं पार्टी की उम्मीद पर खड़ा उतरने की पूरी कोशिश करूंगी. कांग्रेस प्रत्याशी बसंत कुमार ने कांग्रेस नेतृत्व का आभार व्यक्ति करते हुए कहा कि उन्होंने मुझ पर भरोसा जताया. मैं कांग्रेस नेतृत्व के भरोसे को नहीं टूटने दूंगा और कांग्रेस भारी अंतर से उपचुनाव जीतेगी. भाजपा सरकार के जन विरोधी निर्णयों के कारण जनता में भारी आक्रोश है और वह खुलकर कांग्रेस के समर्थन में दिखाई दे रही है.
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उसी दिन उत्तराखण्ड क्रान्ति दल ने अर्जुन देव को, बहुजन समाज पार्टी ने ओमप्रकाश टम्टा और समाजवादी पार्टी ने भगवती प्रसाद त्रिकोटी को अपना प्रत्याशी घोषित किया. उक्रान्द अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी ने कहा कि पार्टी पूरी ताकत के साथ उपचुनाव लड़ेगी. बाद में बसपा उम्मीदवार ने अपना नामांकन ही नहीं किया. ऐन वक्त पर बसपा के चुनाव मैदान से हटने के कारण कांग्रेस की नजर बसपा के वोट बैंक पर है. वैसे भी बसपा का मतदाता कभी कांग्रेस का ही परंपरागत वोट हुआ करता था. कांग्रेस प्रत्याशी कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बसपा और खुद के जनाधार के भरोसे उपचुनाव जीतकर एक नई इबादत लिखने की चाह रखते हैं.
कांग्रेस प्रत्याशी का यही राजनीतिक समीकरण भाजपा के लिए चुनौती बन गया है. जिस सीट पर भाजपा पहले एक तरफा जीत मान रही थी, उस पर अब उसे एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है.
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उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के प्रत्याशी को उपचुनाव में उनका परंपरागत चुनाव चिन्ह कुर्सी नहीं मिला और उन्हें गैस सिलेंडर चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया. जिसको लेकर उक्रान्द प्रत्याशी अर्जुन देव ने रिटर्निंग अधिकारी के सामने कड़ा विरोध जताया और ऑफिस के बाहर धरने पर बैठ गए. उक्रान्द प्रत्याशी अर्जुन देव ने कहा कि उन्होंने वरीयता में तीन चुनाव चिन्ह भरे थे. जिसमें पहली वरीयता में कुर्सी और दूसरे में गैस सिलेंडर चुनाव चिन्ह मांगा था. पर उन्हें पहली वरीयता का चुनाव चिन्ह न देकर दूसरी वरीयता वाला चुनाव चिन्ह दे दिया गया.
उक्रान्द प्रत्याशी के विरोध और धरने के बाद रिटर्निंग अधिकारी हर गिरी ने कहा की भारत निर्वाचन आयोग से जारी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दलों, राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों, रजिस्ट्रीकृत राजनीतिक दलों से भिन्न एवं अमान्यता प्राप्त दलों के चुनाव चिन्ह की सूची में कुर्सी प्रदर्शित नहीं है और न ही चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह आवंटन के दिन 21 अगस्त को दोपहर 3:00 बजे तक दल को कुर्सी चुनाव चिन्ह आवंटित किया है. इसी वजह से उक्रान्द को दूसरी वरीयता का चुनाव चिन्ह गैस सिलेंडर आवंटित किया गया है. इस तरह उक्रान्द प्रत्याशी को इस बार कुर्सी की बजाए नए चुनाव चिन्ह गैस सिलेंडर पर लोगों से वोट देने की अपील करनी पड़ रही है.
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जगमोहन रौतेला
जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.
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