जितनी बार वह लड़का अपने घर फ़ोन लगाने की कोशिश करता हर बार उसे सिर्फ यही क्म्प्यूटराइज्ड आवाज़ सुनने को मिलती- “जिस नम्बर से आप संपर्क करना चाहते हैं वह नेटवर्क कवरेज एरिया से बाहर है. ”वह पहले दिन से जानता है कि इतना बड़ा फैसला सरकार की ओर से लिया जा चुका है कि संचार व्यवस्था को सुचारू करना आसान नहीं है लेकिन सिर्फ इस उम्मीद में कि अम्मी के मुँह से बस एक बार इतना सुन ले कि बेटा यहां सब ख़ैरियत है, वह हर 10-15 मिनट में अपने मोबाइल को बड़ी उम्मीद के साथ उठाता है और कॉल लगाने की कोशिश करता है. लेकिन क्म्प्यूटराजइज्ड मोहतरमा के दिल नहीं होता वो सिर्फ कमांड पर काम करती है और घाटी में मोहतरमा को कमांड दी जा चुकी है कि जब भी कोई नंबर मिलाए तो सिर्फ एक ही लाइन दोहरानी है- “जिस नम्बर से आप संपर्क करना चाहते हैं वह नेटवर्क कवरेज एरिया से बाहर है”.
आम दिनों से अलग उस लड़के की आँखों में एक अजीब सी बेचैनी देखी जा सकती है. वह इस बात से परेशान तो है ही कि घर पर बात नहीं हो पा रही लेकिन इस बात से ज़्यादा हैरान है कि उस के उत्तर भारतीय संगी-साथी उसे मैसेज, मीम या कॉल करके 370 हटने की मौज ले रहे हैं. उसे समझ ही नहीं आ रहा कि राज्य के विशेष दर्जे की समाप्ति पर लोगों के इस तरह के व्यवहार की क्या प्रतिक्रिया दे. वह खुद कहता है कश्मीर की बदहाली के लिए न सिर्फ अलगाववादी जिम्मेदार हैं बल्कि कश्मीरी राजनेता भी उतने ही जिम्मेदार हैं. लेकिन कश्मीरी आवाम को नजरअंदाज कर 370 का जश्न मनाना उसकी समझ से परे है. वह कहता है अगर सरकार ने हमारी भलाई के लिए कोई कदम उठाया है तो उसका जश्न मनाने का पहला हक़ तो हमारा होना चाहिये लेकिन हमें जश्न से महरूम क्यों रखा जा रहा है?
जश्न उन लोगों के बीच शरीक होकर मनाया जाता है जिनके यहां खुशी का माहौल हो लेकिन यहां के जश्न में वाहियातपने की इंतिहा है. कश्मीर को सिर्फ ज़मीन के एक टुकड़े की तरह देखा जा रहा है जिसे हर कोई ख़रीदने के लिए उतावला है. चलो जमीन खरीदने को एक बार के लिए सामान्य मान भी लें लेकिन कश्मीरी लड़कियों को लेकर जिस तरह की विकलांग मानसिकता सामने आई है उससे इस खोखले जश्न की सारी हक़ीक़त खुद-ब-खुद बयां हो जाती है.
वह कहता है कश्मीर के हालात 370 से पहले भी बुरे थे और 370 हटने के बाद अच्छे होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है. कश्मीर की समस्या है तो सामाजिक और आर्थिक लेकिन रूप उसे हमेशा से राजनीतिक दिया गया है और वह राजनीतिक रूप ऐसा है कि लोगों को कश्मीर से तो बेपनाह मोहब्बत है लेकिन कश्मीरियों से उतनी ही नफरत. हर कश्मीरी हमेशा से शक के घेरे में रहा है और आज जब 370 हटा दी गई है तो वह शक का घेरा और गहरा गया है. आज कोई कश्मीरी 370 को लेकर अगर बहस भी करना चाहे तो उसे सीधे चरमपंथी, आतंकवादी या देशद्रोही करार दे दिया जाएगा.
ऐसा नहीं है कि घाटी में शरारती या अलगाववादी आवाम नहीं है. ऐसे लोगों की तादाद 10% तक हो सकती है लेकिन ऐसे लोगों की वजह से 90% आवाम के भरोसे के साथ खिलवाड़ करना ज़्यादती नहीं तो और क्या है? इससे उन तमाम लोगों का भरोसा सरकार से उठ सकता है जो अब तक सरकार के साथ खड़े थे. सुरक्षा के मद्देनज़र सरकार का हर महफूज कदम उठाना बनता है लेकिन उसमें पहला कदम आवाम को भरोसे में लेना होना चाहिये था. कश्मीर के अंदर एक अजीब सी ख़ामोशी है और इस ख़ामोशी का लंबे समय तक रहना चीख़ में तब्दील होने के डर को खुद में समेटे हुए है.
वह कहता है सियासी मसले आम ज़िंदगियों को तबाह कर देते हैं. घाटी में सिर्फ निर्दोष कश्मीरी नागरिकों ने ही जान नहीं गँवाई है बल्कि हजारों जाँबाज़ सिपाहियों ने भी खुद को क़ुर्बान किया है. लेकिन इस सियासी जंग से आजतक हासिल क्या हुआ? सिर्फ नफरत, अलगाव, अस्थिरता, चरमपंथ, बेगुनाह नागरिकों और सिपाहियों की मौत. सियासतदानों ने कश्मीर मसले को सुलझाने की जगह सिर्फ उलझाया ही है. दुनिया में कोई भी जंग आवाम की वजह से नहीं लड़ी गई. हर जंग का कारण कहीं न कहीं सियासी रहा है और कश्मीर को नासूर बनाने में सियासतदानों का सबसे बड़ा हाथ है.
वह अकेला नहीं है जो इस समस्या से जूझ रहा है. उस जैसे लाखों कश्मीरी और देश के सिपाही हैं जो घर से बाहर हैं और अपने घर-परिवार की ख़बर से महरूम हैं. घाटी से आने वाली छुटपुट वारदातों की ख़बर के बीच वह हर दिन अमन और चैन के लिए दुआ करता है. वह ईद को लेकर इस बार ज़्यादा उत्साहित नहीं है. कहता है ईद जैसे पाक मौक़े पर कौन घर नहीं जाना चाहता लेकिन हालात ऐसे हैं कि घर जाना महफ़ूज़ नहीं लगता. घर में बात हो जाती तो इससे बड़ी ईदी और क्या होती! इस समय तो घर वालों की ख़ैरियत से बड़ी कोई ईद नहीं है. बस इंतज़ार है कि जल्दी घाटी से कर्फ़्यू हटे, संचार दुरुस्त हो और अम्मी-अब्बू से बात हो जाए. इतना कहकर वह मोबाइल उठाकर फिर से कॉल लगाने की कोशिश करता है लेकिन कन्प्यूटराइज्ड मोहतरमा एक बार फिर से सरकारी फ़रमान जारी करती हैं कि “जिस नम्बर से आप संपर्क करना चाहते हैं वह नेटवर्क कवरेज एरिया से बाहर है.”
नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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