निखालिस पहाड़ी बछेंद्री पाल संसार की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला ‘माउंट एवरेस्ट’ को फतह करने वाली दुनिया की 5वीं और प्रथम भारतीय महिला हैं. इन्होंने यह कारनामा 23 मई, 1984 के दिन 1 बजकर 7 मिनट पर किया. बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई, 1954 को उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) राज्य के उत्तरकाशी में हुआ. उत्तराखंड के ग्रामीण परिवार में जन्मी बछेंद्री पाल ने स्नातक करने के बाद परिवार की अपेक्षानुसार शिक्षक बनने के लिए बी.एड. किया. मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद इन्हें कोई सम्मानजनक रोज़गार नहीं मिला. जो मिला भी वह अस्थायी और मामूली वेतन वाला था. इससे उपजी निराशा ने इन्हें स्थाई नौकरी करने के बजाय अपने सपनों की दुनिया जी लेने के लिए ‘नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग’ का कोर्स करने के प्रेरित किया. इन्होंने स्कूल में शिक्षिका बनने के बजाय पेशेवर पर्वतारोही का पेशा अपनाने का विचार किया. इसके लिए इन्हें परिवार के जोरदार विरोध का सामना भी करना पड़ा.
(Bachendri Pal Birthday)
यहां से इनके के जीवन को नई दिशा मिली. वर्ष 1982 में एडवांस कैम्प के दौरान इन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर ऊंचाई) और रूदुगैरा (5,819 मीटर ऊंचाई) पर फतह हासिल की. कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी.
भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही दिनों बाद इन्होंने इस शिखर पर चढ़ाई करने वाली महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया. 1994 में बछेंद्री ने महिलाओं के साथ गंगा नदी में हरिद्वार से कोलकाता तक लगभग 2,500 किमी लंबे नौका अभियान का भी नेतृत्व किया. हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए कराकोरम पर्वत-श्रृंखला पर समाप्त होने वाला लगभग 4,000 किमी लंबा दुर्गम ‘प्रथम महिला अभियान’ भी इनके नेतृत्व में किया गया था.
(Bachendri Pal Birthday)
इसके बाद बछेंद्री ने पीछे मुड़कर नहीं देखा 1984 में भारत का ‘चौथा एवरेस्ट अभियान’ शुरू हुआ. इस अभियान में जो टीम बनाई गई उसमें बछेंद्री के साथ 7 महिलाओं और 11 पुरुषों को भी शामिल किया गया था. इस टीम ने 23 मई, 1984 के दिन 1 बजकर 7 मिनट पर 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित ‘सगरमाथा’ (एवरेस्ट) पर भारत का झंडा लहराया. इस के साथ ही ये एवरेस्ट पर सफलता पूर्वक क़दम रखने वाली भारत की पहली और दुनिया की 5वीं महिला बनीं. उनकी इस सफलता ने आगे भारत की अन्य महिलाओं को भी पर्वतारोहण जैसे साहसिक अभियान में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया. ये भारत की पहली महिला एवरेस्ट विजेता होने के साथ ही देश-विदेश की महिला पर्वतारोहियों के लिए प्रेरणा की श्रोत भी बन गयीं.
‘माउंट एवरेस्ट’ पर फ़तह हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल की शख्सियत का एक दूसरा पहलू भी हमें जून, 2013 में उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा के दौरान देखने को मिला. जब इन्होंने वहां के लोगों को बचाने तथा राहत पहुंचाने में सशक्त भूमिका निभाई. इस आपदा में हजारों लोग मारे गए. संकट की इस घड़ी में 59 वर्षीय बछेंद्री पाल ने अपनी टीम के साथ, ट्रैकिंग के अपने हुनर और पहाड़ी इलाकों की गहन जानकारी का उपयोग करते हुए लोगों की जान बचाने और मुख्य धारा से कट चुके दूर-दराज के इलाकों तक राहत सामग्री पहुंचाने में अपना अमूल्य योगदान दिया. बछेंद्री पाल ने इससे पहले भी कई आपदाओं में राहत और बचाव कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है. वर्ष 2000 में पहली बार राहत कार्य के लिए ये गुजरात गई थी. जहां आए भयंकर भूकंप से पीड़ित लोगों को अपने सक्षम वॉलंटियर पर्वतारोहियों की एक टीम की मदद से लगभग डेढ़ महीने तक अपनी सेवाएं दी और ज़रूरतमंद लोगों तक राहत पहुंचा.
(Bachendri Pal Birthday)
बछेंद्री पाल दुनिया भर में अनगिनत सम्मान पा चुकी उत्तराखण्ड के गौरव का प्रतीक हैं-
तत्कालीन केंद्र सरकार ने इन्हें वर्ष 1984 में ही अपने प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया.
भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन द्वारा पर्वतारोहण में उत्कृष्टता के लिए वर्ष 1984 में स्वर्ण पदक प्रदान किया गया.
उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा इन्हें वर्ष 1985 में स्वर्ण पदक से नवाजा गया.
भारत सरकार ने इन्हें वर्ष 1986 में अपने प्रतिष्ठित खेल पुरस्कार ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया.
1986 में ‘कोलकाता लेडीज स्टडी ग्रुप अवार्ड’ से भी नवाजा गया.
1990 में ‘गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में सूचीबद्ध किया गया.
भारत सरकार के द्वारा इन्हें वर्ष 1994 में ‘नेशनल एडवेंचर अवार्ड’ प्रदान किया गया.
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 1995 में इन्हें उत्कृष्ट कार्यों के लिए ‘यश भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
इन्हें वर्ष 1997 में हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय, गढ़वाल द्वारा पी-एचडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया.
मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने वर्ष 2013-14 में इन्हें पहला ‘वीरांगना लक्ष्मीबाई’ राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया.
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