बाबा रामदेव हमेशा चर्चा में रहने के आदी हो गए हैं या कहना चाहिए कि उन्हें चर्चा में रहने की लत लग चुकी है. जब किसी को किसी चीज की लत लग जाती है, तो वह साम, दाम, दंड, भेद, कैसे भी उसे पाकर ही रहता है. कोरोना की दूसरी लहर किसी सुनामी से कम न थी. वह जब आई, तो उसने किसी को नहीं बख्शा. जो खुद इस बीमारी का शिकार नहीं बना, उसने भी किसी न किसी दोस्त, नातेदार को खोकर दुख उठाया. पूरे अप्रैल के महीने लोग मौत की दुखद घटनाओं के आतंक में जी रहे थे. अस्पतालों में डॉक्टर जान हथेली पर लिए रोगियों के इलाज में लगे थे. लहर इतनी विकराल थी कि ऑक्सिजन और दवाओं को लेकर मारामारी शुरू हो गई. इस हाहाकार के बीच हर जिम्मेदार नागरिक का यह कर्तव्य था कि वह लोगों के दुख, उनकी तकलीफ को कम करने का उपाय करता. लोगों ने किया भी. अपनी-अपनी तरह से लोग मदद के लिए आगे आए.
(Baba Ramdev Allopathy Controversy)
बाबा रामदेव ने भी ऐसे आसन सुझाए, जो लोगों के ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने के काम आए. परंतु इधर उनके मुंह से जो बातें निकली हैं, वे बहुत लोगों पर नागवार गुजरी हैं. उन्होंने एलोपैथी की दवाओं और एलोपैथ डॉक्टरों, दोनों पर जमकर निशाना साधा. हालांकि समझने वाले अच्छी तरह समझ रहे थे कि ऐसा वे क्यों कर रहे थे. उनका निशाना कहीं था और नतीजा उन्हें कहीं और चाहिए था. बाबा रामदेव ने एलोपैथी की दवाओं को कोरोना पर बेअसर बताने में देर नहीं लगाई. उन्होंने एलोपैथी के डॉक्टरों को हत्यारों की संज्ञा तक दे डाली. उन्होंने अस्पतालों में ऑक्सिजन की कमी और एक-एक सांस के लिए संघर्ष कर रहे रोगियों का मजाक उड़ाते हुए फिकरा कसा कि पूरा ब्रह्मांड ऑक्सिजन से भरा हुआ है, पर वे ही अपने प्राकृतिक गैस सिलेंडर के रूप में अपने फेफड़ों का उपयोग नहीं कर पा रहे. उन्होंने यहां तक दावा कर दिया कि लाखों लोग कोरोना से नहीं, बल्कि एलोपैथी की दवाओं के कारण मारे गए हैं.
यह हिंदुस्तान में ही संभव है कि आप किसी पर भी बिना किसी प्रमाण के कुछ भी टिप्पणी कर सकते हैं. कोई दो राय नहीं कि रेमडेसिवियर और दूसरी कई दवाओं के प्रभाव को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन क्या खुद बाबा रामदेव की कोरोनिल रोगियों पर खरी उतरी है? क्या लाखों मरने वाले लोगों में कोरोनिल का सेवन करने वाला कोई न था? जिस हड़बड़ाहट में अधूरी तैयारियों के साथ कोरोनिल को बाजार में उतारा गया, वह भी इसे लाने के मंतव्य पर सवाल उठाता है.
(Baba Ramdev Allopathy Controversy)
इसमें कोई शक नहीं कि बाबा रामदेव ने योग के कुछ आसनों और प्राणायाम का प्रचार करने में एक कारगर भूमिका निभाई है. पतंजलि ब्रैंड के आने से आयुर्वेद के प्रचार में उनकी भूमिका असंदिग्ध है. 2012 में जो कंपनी लगभग 500 करोड़ के टर्नओवर के आसपास थी, 2017 तक वह 9000 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनी बन गई. असल में कंपनी की व्यावसायिक सफलता ही बाबा रामदेव के वक्तव्यों को सही रोशनी में रखती है.
बाबा रामदेव एलोपेथ के खिलाफ होंगे ही, लेकिन आप इस हद तक तो नहीं जा सकते कि डॉक्टरों को हत्यारा कहने लगो. हजारों डॉक्टर हैं, जिन्होंने कोरोना योद्धा बनकर रोगियों की सेवा की है और ऐसा करते हुए अपनी जान भी गंवाई है. आप बिजनेस की दुश्मनी में इतने संवेदनहीन नहीं हो सकते कि जान गंवाने वाले डॉक्टरों के लिए ऐसी टिप्पणी करने लगो. बाबा की ऑक्सीजन वाली टिप्पणी भी बहुत असंवेदनशील थी.
(Baba Ramdev Allopathy Controversy)
जब कोरोना के रोगी निमोनिया ग्रसित फेफड़ों के साथ जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे, उस वक्त बाबा उन्हें फेफड़ों का उपयोग न कर पाने वाली बात कह उनकी हंसी उड़ा रहे थे. उनकी ऐसी क्रूर टिप्पणियों के चलते उन पर हमला होना स्वाभाविक था. पर बाबा जी की प्रतिक्रिया देखें कि उनके मुंह से क्या निकला- किसी का बाप भी मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकता!
अरे बाबाजी, आप योग की बात करते हैं, ध्यान, प्राणायाम और साधना की बात करते हैं. योग का अंतिम उद्देश्य ही मानसिक संतुलन पाना है. एक सच्चे योगी का अपने मुंह से निकलने वाले शब्दों पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए. उसे अहंकार से मुक्त रहना चाहिए. यह बाप वाली भाषा एक योगी की नहीं हो सकती. हां, यह कंपनी का मुनाफा बढ़ाने के लिए मौके तलाश रहे 9500 करोड़ की कंपनी के मालिक की जरूर हो सकती है. बाबाजी को यह याद रखने की जरूरत है कि जिन महर्षि पतंजलि के नाम पर उन्होंने अपनी आयुर्वेद उत्पादों की कंपनी खोली है, उनके प्रसिद्ध ग्रंथ योगसूत्र का पहला ही सूत्र है – योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:. चित्त की वृत्ति के निरोध का नाम ही योग है.
(Baba Ramdev Allopathy Controversy)
-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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रामदेव खालिस व्यापारी है और अब तो उसके सर पर, सरकारी बाप का भी हाथ है, तभी उसने धमकी दी, " किसी का बाप भी मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकता " ।
यह सत्य है, कि ऐलोपैथिक से आयुर्वेद कई वर्ष पुराना और श्रेष्ठ है। ऐलोपैथी इलाज में भी कई खामियां बताई जाती है। मगर जहाँ जान बचाने की बात आती है। तो दोनों पध्दतियां अपनी अपनी जगह श्रेष्ट है।
बाबा राम देव का यह कथन ," किसी का बाप भी मुझे गिरफ्तार नही कर सकता" इससे उनके संत छवि के नही बल्कि अभिमानी व्यपारी होने का पता चलता है।
संत तो सौम्य होते हैं।