कॉलम

शऊर हो तो सफ़र ख़ुद सफ़र का हासिल है – 8

मंगला को वेरी गुड मिला

वो दो अगस्त 2005 था और कुल तीन बातें कमाल की हुई थीं उस दिन. हमारा मेडिकल होना था और दिन में ही बाहर निकलना हुआ बी डी पांडे अस्पताल. अस्पताल जाने में कभी खुश न होने वाला मैं खुश था. जो काम बिला नागा बदस्तूर हम शाम के 5 बजे के बाद किया करते थे वो आज दिन दहाड़े किया जा सकता था यानी कि मॉल रोड पर मटरगश्ती.
मेडिकल टेस्ट में क्या हुआ किस किस चीज का टेस्ट हुआ उसकी तफसील मुनासिब नहीं बस उतना याद करना ठीक होगा कि कुछ लोग कलर ब्लाइंड इकले थे जिनका बाद में देहरादून में बोर्ड हुआ and they came out with flying colours. ये पहला कमाल था. न…न.. देहरादून जाकर आना नहीं वरन कुछ लोग जो वास्तव में कलर ब्लाइंड थे वो यहाँ पास हो गए. अब जब राज खुल ही रहे हैं तो बता दूं कि इन्होने उस पूरी किताब को पेज नंबर के साथ याद कर लिया था. डा. के पूछने पर ये पेज नंबर देख कर बता देते थे कि उसपर अगड़म-बगड़म, आड़ा-तिरछा-जालीदार जो चित्र है उसमे क्या लिखा है. है न कमाल की बात. अब इससे पहले कि कुछ खार खाए लोग उनका नाम जानने के लिए आर टी आई लगा दें अगले कमाल पर चलते हैं.
दूसरा कमाल खेल जानने वालों के बारे में है. ये वो चुनिन्दा लोग थे जिन्होंने मेडिकल टेस्ट जैसी नाकाबिले तवज्जो सी चीज में भी सिफारिश और भाई भतीजावाद के शुरुआती पहाड़े हमें सिखा दिए. ठीक भी, उनका कोटि कोटि धन्यवाद. जब पूरा देश ही ऐसे जुगाड़ों पर चल रहा है तो हमारी ट्रेनिंग में इतने महत्वपूर्ण कंटेंट का शामिल न होना कहीं न कहीं ट्रेनिंग की कमजोरी दिखाता है. इस बात के लिए ट्रेनीज साथ ही साथ एटीआई के कोर्स डिजाइनर को भी शुक्रगुजार होना चाहिए. आगे आने वाली नौकरी के व्यावहारिक पहलुओं को इतनी आसानी से समझा दिया, है न कमाल की बात.
तीसरा जो सबसे बड़ा कमाल रहा वो है मंगला प्रसाद त्रिपाठी को वेरी गुड मिलना. मंगला डे ऑफिसर थे उस दिन. जैसा कि परम्परा रही है अन्य प्रशिक्षुओं के लिए उस दिन के बंधुआ मजदूर. `मंगला लंच बाक्स नहीं मिला’, `मंगला पानी’, `मंगला थोड़ा रोकना सबको मैं अभी आया’…मंगला ने पूरी जिम्मेदारी बहुत बेहतर तरीके से निभाई लेकिन… इसके लिए नहीं मिला उन्हें वेरी गुड. जिस बात के लिए मिला उसका खुलासा करना शायद सभ्यता की मर्यादा का उल्लंघन हो जाएगा इसलिए मात्र इतना इशारा करूँगा कि किसी भी डॉक्टर को साफ़ सफाई बहुत पसंद होती है. अगर ये इशारा काफी नहीं है तो जानकारी के लिए खुद मंगला से संपर्क किया जाए तो बेहतर.

अमित श्रीवास्तव

उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता)

(पिछली क़िस्त से आगे)

 

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

3 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

5 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

5 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago