अशोक पाण्डे

लाखों हिन्दुओं की भी आस्था है रामनगर के आस्ताना-ए-मासूमी में

नैनीताल जिले के रामनगर कसबे के खताड़ी मोहल्ले में पुराने हाथीखाने के समीप एक उल्लेखनीय सूफी स्थल है. इसका नाम है आस्ताना-ए-मासूमी. (Astana Masumi Ramnagar Religious Harmony)

दरगाह के मुख्य दरवाजे पर इस दरगाह के सन्देश को साफ़-साफ़ लिखा गया है:

बुल हवस पाँव न रखना कभी इस राह के बीच
मंज़िले इश्क़ है ये राहगुज़र-ए-आम नहीं

फोटो: अशोक पाण्डे

मोहब्बत में पगे इतने मीठे और जरूरी संदेसे को पढ़ने के बाद यह मुमकिन नहीं कि आपके भीतर इस आस्ताने के बारे में जानने की उत्सुकता पैदा न हो.

यह दरगाह पीरो-मुर्शिद मासूम अली शाह रहमतुल्लाअलैह की है जहाँ उन्होंने आज से 35 साल पहले परदा किया था. उसके बाद उन्हीं के नाम पर यहाँ पर उनकी गद्दी स्थापित है. उनकी सुपुत्री निशाद मियाँ (जिन्हें सम्मानपूर्वक मियाँ जी कह कर संबोधित किया जाता है) तब से यहाँ की सज्जादानशीं हैं जबकि उनके बेटे सैयद मोहम्मद अली मासूमी यहाँ खादिम की हैसियत से रहते हैं. (Astana Masumi Ramnagar Religious Harmony)

सज्जादानशीं निशाद मियाँ उर्फ़ मियाँ जी. फोटो: अशोक पाण्डे
फोटो: अशोक पाण्डे
फोटो: अशोक पाण्डे

यहाँ हर साल उर्स होता है. इस साल यह 23 से 25 नवंबर को हुआ. बहुत दूर से श्रद्धालु यहाँ आये. इस मौके पर सूफी विचार-विमर्श हुए, लोगों का इलाज हुआ और बड़े-बड़े कव्वालों ने आकर अपनी अकीदत पेश की.

खादिम सैयद मोहम्मद अली मासूमी. फोटो: अशोक पाण्डे
खादिम सैयद मोहम्मद अली मासूमी . फोटो: अशोक पाण्डे

तमाम हवाई असरात का इलाज भी यहाँ होता है. जब मैंने मियाँ जी से पूछा कि वे मरीजों का इलाज कैसे करती हैं तो उन्होंने विनम्रता से कहा – “इलाज करने वाले तो हमारे पीरो-मुर्शिद हैं. हम तो फकत ज़रिया हैं.” आस-पास के गाँवों से ले कर दूर-दराज की जगहों से यहाँ आकर इलाज कराने वालों की भी बड़ी तादाद है. (Astana Masumi Ramnagar Religious Harmony)

फोटो: अशोक पाण्डे
फोटो: अशोक पाण्डे

यहाँ से हर साल एक छड़ी मुबारक भी अजमेर जाती है जिसे पैदल ले जाया जाता है.

दादा मियाँ गढ़ी मान्या शरीफ और दादा पीर रामपुर शरीफ और पीलीभीत शरीफ जैसे बड़े सूफी केन्द्रों से इस आस्ताने का सीधा ताल्लुक है. कादरी सिलसिले से सम्बन्ध रखने वाले इस दरगाह के खैरख्वाहों का मूलस्थान पीलीभीत में है.

मुरादाबाद-कांठ रोड पर मुरादाबाद से से 10 किलोमीटर आगे अफगानपुर है. उससे 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चटकाली मढ़ई गाँव मासूम अली शाह रहमतुल्लाअलैह का पैतृक गाँव है. फिलहाल वहीं उनका मज़ार-शरीफ है. रामनगर आने के कोई 25 साल बाद उन्होंने साल 1986 में इंतकाल फरमाया.

फोटो: अशोक पाण्डे
फोटो: अशोक पाण्डे
फोटो: अशोक पाण्डे

इस स्थान की बड़ी मान्यता है और दिल्ली, मुम्बई, रामपुर, अफगानपुर और मुरादाबाद और ऐसी ही अनेक जगहों से यहाँ भक्त और मुरीद लोग आते रहे हैं.

इस आस्ताने के मुरीदों की संख्या लाखों में है और उल्लेखनीय बात यह है कि इनमें कुछ लाख से अधिक लोग हिन्दू हैं.

फोटो: अशोक पाण्डे

साम्प्रदायिक सद्भाव पूरे देश में मौजूद ऐसे तमाम आस्तानों की खूबी रहा है. रामनगर का आस्ताना-ए-मासूमी भी इसका अपवाद नहीं है. एक दूसरे के मजहब की इज्जत करना और धार्मिक सौहार्द-सद्भाव को बढ़ावा देना इस दरगाह के सबसे प्रमुख उद्देश्यों में से है. यही वजह है कि यहाँ तमाम त्यौहार मनाये जाते हैं जिनमें बसंत पंचमी, होली, दीपावली और क्रिसमस भी शामिल हैं. सैयद मोहम्मद अली मासूमी बताते हैं कि इस आस्ताने में मनाई जाने वाली होली की धूमधाम अनूठी होती है. दीवाली पर की जाने वाली चिरागों की सजावट भी अद्भुत होती है जबकि पिछले क्रिसमस पर इस्तेमाल किये गए पेड़ को अब भी दरगाह के अहाते में देखा जा सकता है.

फोटो: अशोक पाण्डे

दरगाह के मुख्य परिसर के बाहर एक और छोटा सा स्थान है जिसे धूना कहा जाता है. यह मौला अली मुश्किल कुशा का धूना है जिसे मासूम अली शाह रहमतुल्लाअलैह ने कायम किया था. आज भी इस जगह पर मलंग लोग आकर बैठते हैं और सूफीवाद पर चर्चा करते हैं.

मौला अली मुश्किल कुशा का धूना . फोटो: अशोक पाण्डे

आज के मुश्किल और अशांत वातावरण में आस्ताना-ए-मासूमी जैसी जगहें न सिर्फ आपके मन-आत्मा को सुकून पहुंचाती हैं, धार्मिक सद्भाव और मोहब्बत का पैगाम फैलाने में भी उनका बहुत बड़ा योगदान होता है.

रामनगर जाएं तो एक बार आस्ताना-ए-मासूमी जरूर जाएं, सवाब मिलेगा.

-अशोक पाण्डे

इसे भी पढ़ें: कालू सैयद बाबा: एक मुस्लिम पीर जिसे हिन्दू भी श्रद्धा के साथ पूजते हैं

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago