रात के लगभग 10 बज रहे थे. एक मित्र का जन्मदिन मनाने के बाद मैं अपनी बाइक लेकर श्रीनगर के बिरला कैंपस से अपने हॉस्टल चौरास की तरफ बढ़ रहा था. श्रीनगर से चौरास कैंपस की दूरी बमुश्किल 3 किलोमीटर है. पहाड़ों में पड़ी बर्फ की ठंडक को खुद में समेटे शीत लहर हेल्मेट के अंदर से होती हुई मफलर को चीर कर चेहरे पर ऐसी चुभ रही थी मानो किसी ने ब्लेड का चीरा सा लगा दिया हो. (Article by Kamlesh Joshi)
आधा किलोमीटर की दूरी भी तय नहीं हुई थी और हाथ एकदम ऐसे सुन्न हो गए मानो खून जम सा गया हो. ऑल वेदर रोड के काम के चलते सड़क जगह-जगह उखड़ी पड़ी थी और पानी के छिड़काव के चलते मिट्टी में फिसलन ऐसी कि अगर गलती से 30-40 की स्पीड में भी तेज ब्रेक लगाने की नौबत आ जाए तो बाइक सड़क के एक छोर से दूसरे छोर तक फिसलती हुई जाए.
श्रीनगर बाजार से होता हुआ हाईवे में अभी कुछ आगे बढ़ा ही था कि एक ट्रक नजर आया. ट्रक ड्राइवर बार-बार खुली सड़क में तेजी से ब्रेक मार रहा था. मुझे एक बार को लगा कि शायद कोई पीकर ट्रक चला रहा है इसलिए इसको ओवरटेक कर आगे निकलना ही बेहतर होगा. अभी तक तो ड्राइवर सिर्फ ब्रेक ही मार रहा था लेकिन जैसे ही मैंने ओवरटेक के लिए हॉर्न मारा और डिपर दिया ट्रक सड़क में टेढ़ा-मेढ़ा चलने लगा. अब मुझे लगने लगा था कि कुछ गड़बड़ जरूर है. इतनी ही देर में सड़क के किनारे बेतहाशा पागलों की तरह दौड़ती एक गाय नजर आई. मैं समझ रहा था शायद गाय ट्रक से डर कर सड़क में भाग रही है. जैसे ही मैंने ट्रक को ओवरटेक किया तो पाया कि गाय का नन्हा सा बछड़ा पिछले कुछ मिनटों से ट्रक से डरकर सड़क में इधर-उधर भाग रहा है. इसी वजह से ड्राइवर बार-बार ब्रेक मार रहा था और बछड़े को बचाकर आगे निकलने के लिए ट्रक को टेढ़ा-मेढ़ा चला रहा था.
बछड़ा अपनी माँ के पास जाने के लिए सड़क में कभी दाँये तो कभी बॉंये भाग रहा था और मॉं बछड़े के पीछे दौड़ते ट्रक को देखकर और खुद को भी ट्रक की चपेट में आने से बचाती हुई अपने बच्चे की तरफ दौड़ी चली जा रही थी. जैसे-तैसे मौका पाकर ट्रक ड्राइवर उस नन्हे से बछड़े को बचाता हुआ आगे निकलने में सफल हो गया. ट्रक के निकलते ही गाय दौड़ती हुई सड़क के दूसरे छोर पर हाँफते हुए खड़े अपने बच्चे के पास पहुँची और दुलारती हुई उसे चाटने लगी. वात्सल्य का यह नजारा एक ओर जहॉं ऑंखों को सुकून दे रहा था वहीं दूसरी तरफ मन में सैकड़ों सवाल भी खड़े कर रहा था.
बाइक में मात्र 3 किलोमीटर की दूरी तय करने और ठंड से बचने के लिए मैंने परत दर परत चार लेयर कपड़े पहने हुए थे. साथ ही मफलर और हेल्मेट अलग. लेकिन इस गाय और उसके नन्हें से बच्चे को रात भर इस भयानक ठंड में सड़क पर ही रहना था. ऐसी न जाने कितनी ही गायें रात भर ठंड में श्रीनगर में भटकती रहती हैं. मेरे मन में सबसे बड़ा सवाल बार-बार यही कौंध रहा था कि हमने जिसे भी मॉं का दर्जा दिया उसी की हालत बद से बदतर कर दी.
मसलन हमने गंगा को मॉं कहा और आज उसे प्रदूषित कर उस मुहाने पर ला खड़ा कर दिया कि उसमें कुछ स्थानों को छोड़कर डुबकी लगाना भी सेहत के लिए खतरनाक हो गया है. उसी तरह हमने गाय को मॉं कहा और आज गायों की हालत यह है कि वह सड़कों में सिर्फ ठोकर खाती नजर आती हैं. गाय को हमने राजनैतिक पशु बनाकर आवारा सड़कों में छोड़ दिया है.
अभी मैं सड़क में कुछ मीटर आगे बढ़ा ही था कि नगर निगम के कूड़ेदान के पास 6-7 गायों और बछड़ों का झुंड नजर आया. ये गायें कूड़ेदान से कुछ खाने को तलाश रही थी. अधिकतर तो उनको खाने के लिए गत्ता या फिर प्लास्टिक की थैलियों में घरों से निकला वेस्ट ही मिलता है. श्रीनगर गोला बाजार के अंदर से भी अगर आप कभी गुजरें तो सब्जी की दुकानों के आगे गायें खाने की तलाश में भटकती नजर आ जाएँगी जिन्हें दुकान वाले दिन भर दुत्कारते हुए एक जगह से दूसरी जगह खदेड़ते रहते हैं. ऐसी सैंकड़ों गायें आपको श्रीनगर हाइवे पर भी भटकती नजर आ जाएँगी जो कूड़े के ढेर से पन्नियॉं खाती हैं और जिनकी परवाह करने वाला कोई नहीं है. (Article by Kamlesh Joshi)
श्रीकोट में एक गौशाला जरूर है लेकिन उसकी क्षमता इतनी भी नहीं है कि वहॉं सैकड़ों गायों को रखा जा सके. और गौशालाओं में भी गायों के क्या हालात हैं यह राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों की गौशालाओं में अपना दम तोड़ती गायों की खबर से भरे पड़े अखबारों से आप अंदाजा लगा ही सकते हैं.
यूनिवर्सिटी के चौरास कैंपस में भी कई गाय-बैल घास की तलाश में भटकते हुए दिख जाते हैं जिन्हें यूनिवर्सिटी के गार्ड हर दिन एक छोर से दूसरे छोर तक हॉंकते हुए ही नजर आते हैं. यह हाल सिर्फ श्रीनगर शहर का हो ऐसा नहीं है. आप किसी भी शहर चले जाइये यह नजारा लगभग आम हो चुका है.
एक समय था जब लोग गायों को गौशाला में न सिर्फ पाला करते थे बल्कि ठंड से बचाने के लिए गौशाला में नीचे पराली बिछाते थे और गाय के ऊपर बोरे को काटकर डाल देते थे. लेकिन जब से गाय राजनैतिक पशु हुई है नेताओं ने तो गाय के नाम पर खूब वोटों की फसल काटी है लेकिन गायों की हालत बद से बदतर होती गई है. आज लोग न सिर्फ गाय बेचने से डरते हैं बल्कि पालने से भी डरने लगे हैं इसलिए सैंकड़ों गायें इस कदर सड़कों में भटकने के लिए मजबूर हैं. (Article by Kamlesh Joshi)
हमें यह प्रश्न जरूर पूछना चाहिये और सोचना चाहिये जिस देश में गौ-वध निषेध हो उस देश में गाय की राजनीति का फायदा किसने उठाया? इस राजनीति से सबसे बुरा हाल किसका हुआ? और गायों की ऐसी दिशा व दशा के लिए कौन जिम्मेदार है?
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नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं
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