नीलू कठायत-
नीलू राजबुग पहुंचे जस्सा कमलालेख लिख से द्वार पर भेंट हुई. जस्सा ने बतलाया कि तल्ला देश भाबर पर संभल के नवाब ने अधिकार कर लिया है. उसकी सेना ने जनता पर गजब ढाया है. सैकड़ों मारे गए हैं. सैकड़ों भागकर चंपावत आए हैं. राजा शीघ्र एक सेना वहां भेज रहे हैं. इसलिए तुम्हें यहां बुलाया है. नीलू तुम्हारे अलावा कौन इस कठिन कार्य का भार ले सकता है. बातें करते दोनों सरदार महल की ड्योढ़ी तक आए. राजा ने दोनों को अंतःपुर में ही बुला लिया. राजा ने नीलू का स्वागत किया और उन्हें मढूआ की माल जाने वाली सेना का भार दिया. अपनी तलवार दी और शत्रु को माल से हटाने का आदेश दिया. नीलू ने सहर्ष राजाज्ञा स्वीकार की और दूसरे दिन सेना के साथ तल्ला देश की ओर प्रस्थान कर दिया.
पहाड़ी पार कर जब नीलू की सेना मैदानी भाग में पहुंची उन्हें यत्र-तत्र जलाए घर, जलाए खेत, कहीं-कहीं इक्के-दुक्के छिपे कृषक मिले. इन लोगों से शत्रु की सेना की पूरी सूचना मिली. नीलू ने शीघ्र ही अपनी सेना को चार भागों में बांटा और माल का प्रांत चारों ओर से घेर लिया. स्वयं नीलू अपने चुने हुए वीरों को लेकर बीच के भाग में घुस गए. एक निश्चित संकेत पर चारों ओर से कुर्मांचल सेना ने यवन सेना पर आक्रमण कर दिया. नीलू के मध्य भाग में विद्युत गति से आक्रमण किया. भयंकर युद्ध हुआ प्रतिशोध के लिए बावले कुम्य्यों ने भीषण मार-काट की. धनुष-बाण, खाडा, कटार, खुकरी तलवार, पेश कब्ज, रामचंगी का खुलकर प्रयोग हुआ. नीलू हर जोखिम की जगह पर स्वयं मौजूद रहते और सैनिकों का उत्साह बढ़ाते. यवन सेना पराजित हुई और मैदान छोड़ संभल की ओर भागी. नीलू ने अति वीरता से माल को स्वतंत्र किया. विजय प्राप्त कर नीलू चंपावत लौटे.
सारी जनता ने विजेता का हार्दिक स्वागत किया. विजय प्राप्त कर राजदरबार में राजा गरुड़ ज्ञान चंद ने उन्हें कुम्म्याँ सिरोपा से विभूषित किया. पाग, दुशाला, तलवार उपहार में दिये. यह खिलअत असाधारण वीरों को राजदरबार से दी जाती थी. तीन गांव माल में और बारह ज्यूला भूमि ध्यानिरों में रौत दी. रौत असाधारण वीरता के प्रदर्शन पर दी जाती थी. साधारण तौर पर जागीर के रूप में भूमि मिलती थी. अडिग राजभक्ति, अपूर्व शौर्य और असीम प्रेम के लिए यह वशिष्ट पुरस्कार कुम्म्याँ सिरोपा और रौत रूप में गांव दिए जाते थे. नीलू कठायत को राज दरबार में बक्शी का पद मिला. वे सेनापति बनाए गए. जनता ने इस वीर को अपनी श्रद्धा और भक्ति समर्पित की. नीलू कुछ दिन के लिए अपने दुर्ग कपरौल चले गए.
इधर स्वभाव के कुटिल और द्वेषी जस्सा ने राजा के कान भरने शुरू कर दिये. नीलू के असाधारण सम्मान से जस्सा जल भुन गया था. वह हर संभव उपाय से नीलू को नीचा दिखाना चाहता था. अवसर भी उसे मिल गया. राजा के सामने प्रश्न था कि माल की व्यवस्था कैसे की जाए वे चाहते थे कि माल पहले की तरह मालामाल हो जाए. योग्य अधिकारी को स्थाई रूप से वहां भेजना चाहते थे. उन्होंने जस्सा के सामने अपनी समस्या रखी जस्सा ने तुरंत समस्या का निदान कर दिया. नीलू कठायत ने माल में विजय प्राप्त की. वे वीर है. साथ ही बुद्धिमान भी. उन्हें ही व्यवस्था के लिए स्थाई रूप से माल भाबर भेजा जाए. उन दिनों पर्वती कृषक जाड़ों में माल जाते थे और चैत वैशाख तक पहाड़ी भागों में आ जाते थे. चौमासे में ज्वर के प्रकोप से कोई भी वहां नहीं रहता था. उन दिनों भी वहां मलेरिया का प्रकोप था. केवल शीत ऋतु में चारागाह और खेतों का उपयोग कृषक लोग करते थे. जस्सा की चाल थी कि एक तो नीलू राजधानी से दूर रहे और दूसरा स्थाई रूप से भाबर में रहने से ज्वर का शिकार हो जाए. जस्सा यह भली-भांति समझता था कि नीलू माल के स्थाई रूप से रहना कदापि स्वीकार नहीं करेगा. इस हालत में भी जस्सा का लाभ था. राजाज्ञा का उल्लंघन करने पर नीलू राजा की निगाह से गिर जाएगा.
राजा गरुड़ ज्ञानचंद का दूत संदेश लेकर कपरौल पहुंचा. नीलू ने आदेश पढा. उसे माल बाबर का सर्वोच्च अधिकारी बनाया गया था. उसे पूर्ण अधिकार दिए गए थे. आदेश था कि वह स्थाई रूप से 12 महीने माल में रहे और समुचित व्यवस्था करे. आदेश पढ़कर नीलू क्रोध से जल-भून गया. वह किसी भी तरह पूरे साल माल में नहीं रहना चाहता था. वहां की जलवायु उसके लिए हितकर न थी वह दूत के साथ ही राजधानी के लिए रवाना हो गया. जल्दी में दरबार की राजसी पोशाक पहनना भूल गया. साधारण वेष में चंपावत पहुंचा. जस्सा ने दूर से ही नीलू को साधारण वेष में आते देख लिया. तुरंत राजा के कान भर दिये. महाराजा आपको नीचा दिखाने के लिए नीलू राज दरबार की पोशाक पहनकर नहीं आया है. ना उसने कुमम्याँ सिरोपा की पगड़ी और दुशाला ओढ़ा है. नीलू बड़ा अहंवादी है. बस क्या था राजा जल भुन कर खाक हो गए. नीलू आया उसने राजा को प्रणाम किया. राजा ने उसकी ढ़ोक स्वीकार की पर राजा ने कोई उत्तर न दिया. उसकी ओर से मुंह फेर लिया. माल के विजेता का घोर अपमान. अपमानित नीलू उदास कपरौली लौटा. पत्नी ने पति का उदास फीका मुह देखा. कारण पूछा. नीलू ने बतलाया कि राजा ने उनकी ढ़ोक स्वीकार की और न उनसे बोले. बल्कि उसकी ओर से मुंह फेर लिया. मेरा घोर अपमान हुआ. मैं अब दरबार में कभी नहीं जाऊंगा. पत्नी सिरनोला के सिरमौर महर की लड़की थी. बड़ी बुद्धिमति थी. उसने कहा राज और बाज से बैर भाव रखना ठीक नहीं है. मेरा भाई अभय महर राजधानी में रहता है. उसके माध्यम से मैं राजा से तुम्हारा मेल करवा दूंगी. मैं अपने दो लड़के भुजान सिंह और वीर सिंह को माया के पास चंपावत भेजती हूं. वह माया को सब बातें बताएंगे.
सूजू और बीरों दोनों अवस्था में छोटे थे. माता का आदेश पा तुरंत राजधानी की ओर रवाना हो गए. दिन अभी काफी था और राजधानी कुछ दूर थी. उतार-चढ़ाव वाली बीहड़ पहाड़ी मार्ग. जब थके मादे दोनों लड़के राजधानी की सीमा पर पहुंचे रात हो चुकी थी. कृष्ण पक्ष की रात्रि. घोर अंधका.र पहली बार राजधानी की सीमा पर आए थे. मामा का मकान भूल गए. इधर-उधर भटकने लगे. दुकानें बंद हो चुकी थी. इक्के-दुक्के चलने वाले राहियों से मामा का घर पूछा. पर कोई बता ना सका. संयोग की बात जस्सा कमलेखी भी उस समय राजबुग से अपने घर जा रहे थे. मशाल की रोशनी में उन्होंने दो सुंदर स्वस्थ बालक देखे जो अभय महर का पता पूछ रहे थे. ठिठके बालकों से पूछा कौन हो. सरल बालकों ने अपना पूर्ण परिचय दे दिया और आने का अभिप्राय भी बतला दिया बस क्या था जस्सा को मन की मुराद मिल गई. बोले मैं भी तुम्हारे मामा के यहां जा रहा हूं. चलो, तुम्हें बता दूँ. सरल निर्दोष बालक जस्सा के पीछे चले. जस्सा उन्हें अपने घर ले आए एक कमरे में बालकों को कैद कर लिया.
(जारी )
पुरवासी के 11वें अंक में नित्यानन्द मिश्रा जी के लेख के आधार पर
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