आपने अल्मोड़ा से आगे पिथौरागढ़ जाते हुए लखु उडियार का नाम तो सुना ही होगा, या शायद उस जगह से गुज़रे भी होंगे जहाँ सड़क के किनारे “संरक्षित स्मारक – लखु उडियार रॉक शेल्टर” लिखा है. इसे भारत सरकार ने संरक्षित पुरातात्त्विक स्थल घोषित किया गया है. यहाँ पहाड़ की चट्टानों पर बनी हज़ारों साल पुरानी पेंटिंग्स आज भी साफ़ दिखाई देती हैं, कुछ लाल, कुछ काली, और कुछ सफ़ेद. कहा जाता है, यह जगह उस समय की है जब इंसान ने लिखना तो दूर, बोली भी विकसित नहीं की थी, पर अपने जीवन के अनुभवों को रंगों और आकृतियों में व्यक्त करना जान गया था. लखु उडियार की ये चित्रकृतियाँ हमें बताती हैं कि उत्तराखंड की धरती न सिर्फ़ प्राकृतिक सौंदर्य की भूमि है, बल्कि मानव सभ्यता की शुरुआती कला प्रयोगशाला भी रही है.
(Almora Lakhudiyar Cave Paintings)
हजारों साल पहले जब इंसान के पास न तो कागज़ था, न ब्रश और न ही बाज़ार से मिलने वाले रंग, तब भी वह अपनी भावनाओं और जीवन के अनुभवों को चट्टानों पर उकेरता था. उत्तराखंड के लखु उडियार जैसी गुफाओं में मिलने वाली ये चित्रकृतियाँ बताती हैं कि मानव सभ्यता कितनी पहले से कला और रंगों को समझती रही है. लेकिन सवाल उठता है, आख़िर ये रंग बनते कैसे थे?
प्रागैतिहासिक कलाकार प्रकृति से ही अपना रंग-संसार चुनते थे. वे मिट्टी, खनिज, पत्थरों, पेड़ों और राख तक से रंग बनाते थे. रंगों के कुछ प्रमुख स्रोत इस प्रकार थे:
ओखर (Ochre), यह सबसे आम रंग था, जिसके शेड लाल, पीले या भूरे हो सकते थे. इसमें लौह ऑक्साइड (Iron Oxide) होता है जो उसे स्थायी बनाता है. ओखर की महीन बनावट उसे बाँधने (binder) में भी मदद करती थी ताकि वह पत्थर की सतह पर टिक सके.
(Almora Lakhudiyar Cave Paintings)
केओलिन (Kaolin), सफेद रंग की यह मिट्टी हमारे आस पास प्रचुर मात्रा में पाई जाती है और चित्रों में उजले भागों के लिए उपयोग होती थी. इस मिट्टी का नाम चीन के “Gaoling” क्षेत्र के नाम से पड़ा है.
मैंगनीज़ ऑक्साइड (Manganese Oxide), यह सबसे गहरा रंग था, जिससे भूरे, स्लेटी या काले शेड बनते थे. कई बार कलाकारों को इसके लिए लंबी यात्राएँ करनी पड़ती होंगी, क्योंकि इसकी खदानें हर जगह नहीं मिलती थीं.
सिएना (Sienna), लकड़ी या पौधों को जलाने से प्राप्त राख से यह रंग तैयार होता था. इसे अक्सर बहुरंगी (polychrome) चित्रों की पृष्ठभूमि (ground layer) के रूप में प्रयोग किया जाता था.
अम्बर (Umber) , यह लौह और मैंगनीज़ के मिश्रण से बनता था, जिसका गहरा लाल-भूरा रंग सिएना और ओखर दोनों से ज्यादा गाढ़ा होता था. इसे गर्म करने पर रंग और भी गहरा हो जाता था.
(Almora Lakhudiyar Cave Paintings)
इन रंगों को पानी, पशु वसा, या पेड़ की गोंद से मिलाकर पेस्ट बनाया जाता था. फिर इन्हें उँगलियों, पंखों, घास के तिनकों या खोखली हड्डियों से फूँककर चट्टानों पर लगाया जाता था. इस तरह हज़ारों साल पहले बनी आकृतियाँ आज भी पत्थरों पर जीवित हैं.
लखु उडियार जैसे स्थलों की चित्रकला सिर्फ कला नहीं, बल्कि उस दौर के लोगों की आस्था, शिकार जीवन और सामूहिक अस्तित्व की कहानी है. यह दिखाती है कि जब भाषा नहीं थी, तब चित्र ही संवाद थे.
(Almora Lakhudiyar Cave Paintings)
-काफल ट्री डेस्क
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…
अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…
हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…
आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…
बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…
आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…