पिथौरागढ़ सीमांत में लिपुलेख तक जाने वाला पथ न केवल आदि कैलास व कैलास-मानसरोवर यात्रा के कारण बल्कि चीन की सीमा की समीपता से वर्तमान परिस्थितियों में सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्पूर्ण बन जाता है. केंद्रीय सड़क और पर्यटन मंत्री श्री नितिन गडकरी ने लोकसभा में स्पष्ट किया कि चीन की सीमा तक जाने वाली घट्टाबगड़ -लिपुलेख की 95 किलोमीटर लम्बी सड़क दिसंबर 2023 तक पक्की हो जाएगी. सड़क के पक्का होने और हॉट मिक्स होने से अब यह सफर कुछ घंटों का रह जायेगा जबकि अभी तक इस यात्रा पथ को पर करने में कई दिन लग जाते थे साथ में मौसम की प्रतिकूलता आवगमन को बहुत कठिन व श्रम साध्य बना डालती थीं.
(Adi Kailash Yatra)
आज से करीब 1600 वर्ष पूर्व रचित स्कन्द पुराण के मानस खंड में आदि कैलास व कैलास – मानसरोवर यात्रा का उल्लेख मिलता है.कहा गया कि महाभारत काल में विजय के पश्चात् पांडवों ने माता कुंती व द्रौपदी के साथ पहले कैलास मानसरोवर की यात्रा कीऔर वापसी में बद्री -केदार की यात्रा का विचार बना. मानसरोवर से लौटते तकलाकोट से लिपुलेख दर्रे को पर करते हुए माता कुंती अस्वस्थ हो गयीं. कालापानी के बाद नावीडांग पहुँचने पर स्थानीय निवासियों से पता लगा कि गुंजी ग्राम में व्यास ऋषि का आश्रम है जो भेषजों के ज्ञाता हैं और माता कुंती को स्वस्थ कर देंगे. यह जान कर युधिष्ठिर ने भीम को नावीडांग से महर्षि व्यास के पास गुंजी भेजा. व्यास ऋषि ने कुंती माता की बीमारी के लक्षणों को जान भीम को जड़ी बूटियों से बनी औषधि दी जिससे माता कुंती स्वस्थ होने लगीं व उनकी आगे की यात्रा गुंजी से नावी होते हुए कुटी की ओर हुई. माता कुंती के स्वास्थ्य को ध्यान में रख इसी गांव में पांचों भाइयों ने एक मकान का निर्माण किया. यहीं निवास करते माता कुंती का स्वास्थ्य फिर लगातार बिगड़ने लगा, अंततः उन्होंने देह त्याग दी. जिस स्थान पर माता कुंती का देहावसान हुआ ,वहां एक बहुत बड़ी शिला है जिसे ‘कुंती पर्वत’ के नाम से जाना जाता है. लोकथात के अनुरूप ‘सत्य की देवी’ के रूप में कुंती आमा की मान्यता वर्तमान में भी बनी हुई है. यहाँयह स्थानीय परंपरा है कि कोई विवाद होने पर सच्चाई जानने को कुंती आमा की शपथ ली जाती है. मान्यता है कि जो व्यक्ति कुंती आमा की शपथ ले लेता है वह झूठ नहीं बोल सकता. आज भी कुटी गांव में पांडव किले के नाम से गांव की मध्य की पहाड़ी में भग्नावशेष विद्यमान हैं. इस भग्नावशेष से कुछ भी,यहाँ तक कि मिटटी का एक ढेला तक उठा कर नहीं लाया जाता. ऐसा करने पर पूरे गांव में विपत्तियों का सिलसिला शुरू हो जाता है. बताया जाता है कि चाहे कितनी ही तेज वर्षा, आंधी तूफान, हिमपात हो इस भग्नावशेष के पत्थर जस के तस रहते हैं.वैसे भी इस गांव में बीस फुट तक बर्फ़बारी होती है और तापमान भी अधिकांशतः शून्य व शून्य से नीचे ही रहता है.
स्वतंत्रता से पूर्व पिथौरागढ़ सीमांत का यह दारमा परगना -व्यास,चौदास और दारमा तीन पट्टियों में बंटा हुआ था. 1872 के बंदोबस्त में दारमा पट्टी को मल्ला और तल्ला दो पट्टियों में बाँट दिया गया था. दारमा के दक्षिण में छिपला चोटी से पूर्व की और काली नदी तक पर्वतों की श्रृंखला है तो उत्तर में हूँणदेश ,पश्चिम में पंचचूली तथा छिपला की नयनाभिराम चोटियां हैं. पूर्व की और पहाड़ी धार यिग्रनजंग 20264 फ़ीट तक उठ गयी है जो दारमा पट्टी को को व्यास घाटी और चौदस पट्टी से अलग करती है. यहाँ तक पहुँचने के लिए गाला के पास निरपानिया धुरा या दर्रा पार करना होता है. इसके पूर्व में बर्फीली कटक नमज्युंग और लिंगू दिखाई देती हैं जो काली नदी के पार अपी पर्वत (18500 फ़ीट) के उपशिखर हैं. पानी न होने से इस दर्रे का नाम निरपणिया पड़ा. पूर्व की और जहाँ सड़क से इसे पार करते हैं ,वहां कुछ कम गहरी दो खाइयां हैं जो इस पूरी पहाड़ी को तीन भागों में बांटती है. चौदास की और की पहाड़ी का नाम यिग्रनचिम और दूसरी बिरडोग है,तीसरी धार तियंगवा -विनायक है जो व्यास और चौदास की सीमा है.निरपणिया दर्रे से करीब 300 फ़ीट उतरते गोलम-ला का पड़ाव स्थल है. यह गाला से पांच किलोमीटर की दूरी पर है. गोलम-ला के ऊपरी इलाके में कठोर चट्टानें हैं व नीचे लगभग दो हज़ार फ़ीट गहरे में नज्यॉंगाड़ और काली नदी का संगम है. आगे काली नदी गहरे बीहड़ में बहती है. आगे चलते हुए गोलमाल में यह रास्ता बेहद संकरा और सीढ़ीनुमा हो जाता है. इस उतार के बाद मालपा -गाड़ पार की जाती है. आगे चंठीदोंग की और बढ़ते हुए फिर चढाई शुरू हो जाती है. इससे आगे काली नदी के थाले में लामादें (8000 फ़ीट) तक रस्ते में बिलकुल उतार ही उतार है. लामादें से फिर चढ़ाई शुरू हो जाती है. अब क्वाथला से नीचे नीचे जाते थक्तिगाड़ और पालांगाड़ को पार करते बूंदी गांव पहुंचा जाता है जो व्यास पट्टी का पहला गांव है.
यही वह व्यास पट्टी है जिसके उत्तर में हूंण देश और भोट को अलग अलग करने वाली पहाड़ी धार है. पूर्व दिशा की और भी यही धार है जो जो दक्षिण पूर्व की और मुड़ते हुए काली नदी के साथ चली जाती है. काली नदी ही इसे नेपाल से अलग करती है. भोट प्रदेश का यह पूर्वी उपखण्ड है जिसमें कुटी -यांग्ती और काली नदी की सुरम्य पर भयावह घाटियां हैं. इन्हीं घाटियों से होते हुए हूँण देश यानि तिब्बत को जाने के लिए तीन दर्रे हैं. इनमें थान दर्रा तुरंग घाटी में तकलाकोट तक जाता है.
गोरखों के कुमाऊं पर विजय प्राप्त करने से पहले तक यह भूभाग नेपाल के जुमला से सम्बद्ध था. पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में अस्कोट के रजवारों ने इसे कुमाऊं में मिला लिया.व्यास घाटी के ऊपरी हिस्से का पहला गांव गर्ब्यांग (10320 फ़ीट) है जो काली नदी के समीप है. इस घाटी की तलहटी समीपवर्ती पहाड़ियों के मलवे और दलदल से निर्मित है जिनके बीच से ही नदी ने अपना रास्ता बनाया है. गर्ब्यांग से रास्ता नदी की तलहटी तक जाता है. तिकद नदी तथा पूरब और पूर्वोत्तर से दो शाखाओं में आ रही काली नदी के संगम से थोड़ा ऊपर की ओर पर पुल बना है.पुल के ठीक ऊपरी भाग में छंगरु गांव (9900 फ़ीट) है. इस स्थान के आगे से काली नदी एक खड़ी चट्टान से उत्तर पश्चिम की और विवर्तित हो जाती है. पुल को पार कर रास्ता बाएं किनारे होते हुए गुंजी (10310 फ़ीट) की और पहुँचता है. आगे कुटी घाटी का इलाका है जिससे राकसताल ,लाभिया और मंगदंग जाने के लिए दो दर्रे हैं. आदि कैलास जाने के लिए नावी गांव जाना होता है.
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गुंजी और नावी की सीमा गुन्दाझारा है. आगे च्यरम है जो नावी इलाके में पड़ता है यहाँ घने जंगल और खुले मैदान हैं. इधर कर्बी बुग्याल के पास नम्पा रेस्ट हाउस है. नम्पा से कूटी नदी के दूसरी तरफ एक जल कुंड है जिसे ‘नू -ती’ कहते हैं. मान्यता है की चाहे कितनी ही वर्षा हो जाये यहाँ का जल दुग्ध धवल ही रहता है. जनश्रुति है की एक महिला ‘पादें ‘अर्थात काष्ठ के पात्र में चंवर गाय का दूध दुह रही थी ,तभी गाय ने लात मार दी जिसके छींटे नौ जगह पड़ गए और हर स्थान से स्त्रोत फूट गए. तब से इसे दूध के पानी के नौ धारे या ‘ग्वी दारू नू ती ‘कहा जाता है. यहाँ ‘कर्बे’ बुग्याल है जिसमें वनस्पतियों की अनगिनत प्रजातियां व भेषज विद्यमान हैं. इसके आगे देश का अंतिम गांव कुटी आता है जो व्यास घाटी का भी अंतिम गांव है.कुटी के बाद कोई आबादी वाला इलाका नहीं है. चारों और पर्वत श्रृंखलाएं हैं जिनमें विष्णु पर्वत या ‘निकुर्च रामा’ ,पांडव पर्वत व पांडव किला है. यहाँ अजगर शिला भी है. लोक विश्वास है कि इस कारण इस गांव में सांप प्रवेश नहीं कर सकते. कुटी गांव से तीन किलोमीटर आगे “यर मांगदो” बुग्याल है. इसी स्थान से सेला दर्रा मिलता है.
आदि कैलास यात्रा का अंतिम पड़ाव ज्यालिंकांग है. यहाँ कोई बसासत नहीं है. स्थानीय निवासियों द्वारा संचालित होटल है तथा कुमाऊं मंडल विकास निगम का एक अतिथि गृह है. यहाँ से गौरी कुंड ,पार्वती कुंड ,गा सेरो ,मड़ुआ सेरो व आदि कैलाश के अद्भुत दर्शन होते हैं. पूरी व्यास घाटी अपनी विशिष्ट परम्पराओं और पुरातन संस्कृति के साथ साहसिक यात्रा व पर्यटन के लिए नयनाभिराम स्थलों से परिपूर्ण है. जनश्रुति है कि व्यास के राजा ने कैलास -मानसरोवर की यात्रा के विकल्प के रूप में आदि कैलाश यात्रा को आरम्भ करवाया था. “छोटा कैलाश’ कुमाऊं मंडल विकास निगम का दिया हुआ नाम है.
पूर्वी काली नदी से ही भारत और नेपाल की सीमाएं तय हुईं हैं. यहाँ खूब विस्तृत घाटी वाला इलाका है जिसमें काली नदी की पश्चिमी शाखा बहती है जिसे कुटेे -यांग्ती के नाम से जाना जाता है. नदी के दाएं किनारे पैर नपल्चू गांव,पश्चिम से आ रही नदी ‘प्येर -यांग्ती’ के समीप बसा हुआ है. इससे दो किलोमीटर आगे नदी के बाएं किनारे नावी गांव के खेत दूर तक फैले हैं तो ठीक सामने ‘दांज्यूँ यांती’ नदी के किनारे पैर रौकांग गांव है. इसके दक्षिण पश्चिम में बर्फीली पहाड़ी धार रौकांग-प्येर से गहरी खाई से होते हुए ‘गनकं याग्ती’ नदी बहती है जो रौकांग -प्येर को दो भागों में विभाजित करती है. रौकांग-प्येर के पार का दर्रा पहले बूंदी के निचे पालगांघाटी को जाता था जो बहुत दुर्गम होने के कारन अब चलन में नहीं है. इसी पथ से अस्कोट के राजा रुद्रपाल ने व्यास पर विजय प्राप्त कर इसे कुमाऊं में मिलाया था. यहीं गनकं काफी बड़ी नदी है जिस पर आवागमन के लिए कई पुल बने हैं.
रौकांगऔर नवी गावों के बीच कुटे नदी पर भी पुल बना है. इस नदी के किनारे काफी भूमि समतल है और इसके ऊपर ही ‘छछला’चोटी है जिसके आगे रलेकं तोक है जो एक बड़ी पहाड़ी की जड़ पर है जो घाटी की तरफ जाती है ,यह नावी गांव का हिस्सा है. इनके मध्य में चीड़ एवं भोज के जंगलों से भरी स्यांडांगले की पहाड़ी है. आगे चलते हुए नयल -यांग्ती नाम की छोटी सरिता के दर्शन होते हैं जिसका उद्गम इसी नाम की पहाड़ी से होता है. फिर सामने ही हिमनद से निकली ‘गनकांग’ नदी हैजो काफी बड़ी और तीव्र प्रवाह वाली है. आगे फिर संकरी होती जाती घाटी के बायें और नम्पा एवं नयायग्ती गाड़ बहती हैं जो इन्हीं नाम की पहाड़ियों से निकलतीं हैं. वहीँ इसके दूसरी और नुसिलती और खारकुलम नदियां हैं.
यहाँ से आगे बढ़ते हुए कुटी गांव (12330 फ़ीट) आता है जो इस घाटी में सबसे अधिक ऊंचाई में बसा है. कुटी गांव पहुँचने के लिए इनका नदी को पार करना होता है जो हिमाछादित श्रृंखला ‘कडिया’ के नीचे वाले हिमनद से निकलती है. कुटी गांव से हूण देश की और जाने के लिए लिम्पया नदी पर बने सांगा पुल को पार करना होता है. इसे पर कर फिर मंगदा नदी को पर कर आगे बढ़ते हैं. यहाँ घाटी बहुत संकरी हो जाती है. यहीं उत्तर की और से मुख्य घाटी में तोशी -यांग्ती या केम्बल्यू नदी का भी प्रवेश होता है.
अब इसके पार स्यांचिम पहाड़ी (13900 फ़ीट) की धार है. आगे निकुर्च नदी एवं यांग्टी है जिससे ऊपर सिनला दर्रा पड़ता है. इसी से हो कर डर्मा में खिमलिंग पहुंचा जाता है कुटी और लुन्पिया दर्रे के बीच में ज्यालिंकोंग (14350 फ़ीट) का पड़ाव आता है.
पिथौरागढ़ जनपद में धारचूला का यह इलाका जहाँ पडोसी देश नैपाल से लगा है तो दूसरा चीन की सीमा से. वर्षों पहले से ही चीन ने इस इलाके में पक्की सडकों का निर्माण आरम्भ कर दिया था. हाल के वर्षों में नेपाल ने भी अपने सीमावर्ती इलाकों में प्रहरी पोस्ट बढ़ाने शुरू किये जिनका सिलसिला अभी जारी है. नेपाल की ओली सरकार से बीते वर्षों में कालापानी विवाद को ले कर भारत के साथ तनाव की दशाएं पैदा हुईं तो कभी जनगणना के बहाने भारतीय इलाकों पर अपना हक़ जताने की कोशिश भी हुई. भारत ने वर्ष 2006 से गर्बाधार से लिपुलेख तक जोड़ने वाली सड़क का निर्माण आरम्भ किया. इस दूरस्थ इलाके की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यह सड़क 2012 में पूरी न बन पायी. घट्टाबगड़ से लिपुलेख तक सड़क की कटिंग का कार्य ही जून 2020 में पूरा हुआ.
कालापानी के सीमा विवाद के बाद से ही नेपाल ने भारत से लगने वाली सीमा के समीप लगातार बॉर्डर एरिया पोस्ट खोलीं हैं व प्रहरी तैनात किये हैं.भारत व चीन की सीमाओं की निगरानी के लिए अब वह पश्चिम अंचल के डडेलधुरा में सशत्र पुलिस बल का मुख्यालय बना रहा है जहाँ प्रहरी बल की सशत्र टुकड़ी तैनात रहेगी. पश्चिमांचल के नौ जनपदों में भारत से लगने वाली सीमाओं में नेपाल इसके द्वारा अपना सुरक्षा तंत्र मजबूत कर रहा है. इसके मुख्यालय का उद्घाटन करते हुए नेपाल के सशस्त्र पुलिस महानिरीक्षक शैलेन्द्र खनाल ने कहा कि इस मुख्यालय के बनने से सीमा पर राजस्व की चोरी व अवैध क्रियाओं पर अंकुश लगेगा साथ ही क्षेत्र में शांति ,सुरक्षा व सहयोग का वातावरण भी बनाया जाना संभव होगा. वैसे भी सशस्त्र पुलिस बल पहले से मानव तस्करी रोकने व जड़ी बूटी के अवैध धंधों की रोकथाम के प्रयास करता रहा है.
पिछले तीन वर्षों से चीन के साथ सीमा विवाद के चलते सीधे उत्तराखंड से कैलास -मानसरोवर यात्रा का आयोजन संभव नहीं हो पा रहा है. हालाँकि कई निजी ट्रेवल कंपनियां नेपाल के रस्ते सीधे वाहन से व हेलीकॉप्टर द्वारा यात्रा की बुकिंग करवा रहीं हैं. आदि कैलाश यात्रा इस वर्ष 2 जून से आरम्भ होने जा रही है. भारत तिब्बत सीमा के निकट तक राष्ट्रीय राजमार्ग बन जाने से कुमाऊं मंडल विकास आदि कैलास यात्रा वाहनों से करवाएगा .इसके लिए सात रात व आठ दिन का टूर पैकेज लगभग 51,000 रुपये प्रति यात्री निर्धारित किया गया है. मोटर सड़क की सुविधा न होने से अभी तक श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों को लगभग 200 किलोमीटर की यात्रा आनेजाने में करनी पड़ती थी. पहले धारचूला से मांगती तक ही मोटर सुविधा थी. इससे आगे पैदल यात्रा मांगती से घट्टा बगड़ होते हुए पहले पड़ाव गाला को आरम्भ की जाती रही . इसके आगे दूसरा पड़ाव बूंदी पड़ता है. गर्बाधार होते रस्ते के नीचे काली नदी बहती है और साथ ही झरनों के नीचे से जाना होता है. गर्बाधार से आगे 3 किलोमीटर पर शांतिवन है जहाँ एक रेन शेल्टर है. आगे लखनपुर तक का रास्ता काली नदी के किनारे किनारे जाता है. लखनपुर के पड़ाव स्थल में कुछ दुकाने हैं जिनमें चाय व नाश्ता मिल जाता है. बूंदी से गुंजी लगभग 15 किलोमीटर दूर है. इसके बीच कड़ी चढ़ाई के बाद छियालेख का बुग्याल पड़ता है. इसे स्थानीय बोली में ‘छे:तो ‘कहते हैं. जहाँ छे : का आशय गर्मी तथा ‘तो का अर्थ है रोकने वाला. यहाँ से शिव के गण के रूप में पूजे जाने वाले नमज्युंग पर्वत के दर्शन होते हैं.
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छियालेख के पश्चात् इनर लाइन आरम्भ हो जाती है. इसके समीप ही सूंदर पेड़ों से घिरा हुआ ‘सीता टीला ‘ है. यहाँ से आपि या अन्नपूर्णा पर्वत साफ़ दिखाई देता है. छियालेख के बाद गर्ब्यांग गांव आता है.आगे सीती ‘ख्वाक सिल्जा’ विश्रामस्थल है. यहाँ से व्यास घाटी का केंद्रबिंदु व महर्षि की तपस्थली गुंजी के दर्शन होते हैं. यह कुटी नदी एवं कालापानी से आने वाली काली नदी के संगम पर विशाल मैदान के किनारे बसा गांव है. नदी के किनारे चलते हुए नपलच्यू गांव पड़ता है. नपलच्यू और गुंजी को ‘कुटेे ‘नदी विभाजित करती है. गुंजी से ही अदि कैलाश को जाने के लिए नावी गांव की और चला जाता है.जिसके आगे कुटी गांव आता है जो अदि कैलाश यात्रा का एक पड़ाव भी है और भारत का अंतिम गांव भी.
अब नाभीढांग और जौलिंगकोंग तक एन.एच का निर्माण कार्य प्रगति पर है. कुमाऊं मंडल विकास निगम के एम.डी.नरेंद्र भंडारी व महाप्रबंधक ए.पी.बाजपेई ने जून २०२२ से अक्टूबर २०२२ तक मोटर मार्ग के द्वारा होने वाली आदि कैलास की यात्रा के लिए समुचित प्रबंध करने का दावा किया है. इसमें सहभागिता के लिए नोएडा की संस्था ‘मंत्रा’ से अनुबंध किया गया है. मंत्रा इस यात्रा के पंजीकरण के साथ यात्रियों को बेहतर सुविधा देने व स्थानीय लोगों को बेहतर रोजगार के अवसर देने के उद्देश्य से अनुबंधित की गयी है. साथ ही कुमाऊं मंडल विकास निगम होम स्टे को बढ़ावा देने हेतु भी प्रयासरत है जिसके लिए सीमांत इलाकों में बने होम स्टे संचालकों से भी संपर्क की योजना है. जून से अक्टूबर तक चलने वाली इस आठ दिन की यात्रा
काठगोदाम से आरम्भ होगी जो पहले दिन यात्रियों को पिथौरागढ़ ले जाएगी. दूसरे दिन पिथौरागढ़ से धारचूला व तीसरे दिन पर्यटक धारचूला से गुंजी पहुंचेंगे. गुंजी से चौथे दिन आदिकैलास यात्रा होगी जिसमें ॐ पर्वत,पार्वती सरोवर व पांडव पर्वत के दर्शन किये जाने संभव होंगे. पांचवे दिन कालापानी होते हुए गुजी से ॐ पर्वत के दर्शन कर रात्रि विश्राम नाबी में किया जायेगा. छटे दिन नाबी से धारचूला ओगला होते हुए डीडीहाट रुका जायेगा. सातवें दिन डीडीहाट से भीमताल व आठवें दिन भीमताल से काठगोदाम की वापस यात्रा होगी. इस यात्रा में पर्यटक अनेक धार्मिक व पौराणिक महत्व के स्थलों व तीर्थों के दर्शन का सकेंगे जिनमें वेदव्यास गुफा, पांडव पर्वत, कुंती पर्वत, पांडव किले के भग्नावशेष, पार्वती सरोवर गौरीकुंड, पार्वती मुकुट, ब्रह्मा पर्वत, शेषनाग पर्वत के साथ ही पाताल भुवनेश्वर, चितई का गोल्ल थान व कैंची धाम मुख्य हैं.
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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कैलास मानसरोवर यात्रा का सम्पूर्ण इतिहास और यात्री
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