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हिमालयी लोककथा: राक्षसी का पतन

नेपाल के जुमला जिले के जाईरा नामक गांव में सरकी देव प्रकट हुए थे. यहां एक गाय हर एक शाम को चमकीले पत्थर पर अपना दूध अर्पित करती थी. जब उस गाय के क्रोधित चरवाहे ने क्रोधवश उस चमकीले पत्थर पर हमला किया तो वह पत्थर तीन टुकड़ों में विभाजित हो गया एवं चमत्कारी ढंग से तीन जगहों पर जा गिरा जहां हरकी की समाधि बनायी गयी.

कई सदियों के पश्चात, परियार जाति की एक महिला जाईरा निवासी अपने पिता के घर से थेहे के एक गांव हुमला की ओर लौट रही थी जहां उसके पति का घर था. करनाली के साथ बहने वाली सहायक नदी के ऊपर एक ऊंची पहाड़ी पर से उस दिशा में खस नाम का गांव अंतिम गांव था, जहां सैंकड़ों घरों का झुंड था, बच्चे एक-दूसरे के साथ घरों की छतों पर खेल रहे थे. एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक जाने के लिए वृक्ष के तने को काट कर उससे घरों की सीढ़ियां बनायी गयी थीं. उस गांव के सभी परिवार वालों ने किसी दूसरे देश में जा बसने की बजाय अपने घरों का बंटवारा करके उन्हें छोटे से छोटे घरों में विभाजित कर लिया था. अक्सर वहां के आदमी काम की तलाश में अपने क्षेत्र को छोड़कर भारत और तिब्बत प्रदेश के स्वायत्त प्रांत न्गारी में स्थित पुरांग चले जाते थे.

उस परियार जाति की महिला ने थेहे में तथाकथित उच्च जात के शक्तिशाली देवताओं ‘वृद्ध रामपाल एवं उसके छोटे भाईयों की समाधि’ को देखा था. एक परियार जाति की होने के कारण उसके कोई अपने देवता नहीं थे, और दूसरे देवता अन्य देवताओं की ही तरह न ही उसके लिए कृपालु थे और न ही उसकी प्रार्थना का सम्मान करते थे.

अपने पिता के घर से लौटते समय उसने उनसे निवेदन किया, पिताजी, मुझे एक ढोल दे दीजिये ताकि मेरा पुत्र उसे बजाकर मेरे गांव के देवता को बुला सके.’

उसके पिता ने कहा, उस वृद्ध रामपाल की समाधि के पर जो ढोल है वे बहुत बड़े हैं परंतु मैं तुम्हें हरकी की समाधि का एक ढोल दूंगा. सावधान! इसे अच्छे से छिपा कर रखना. कोई तुम्हें इसे थेहे ले जाते हुए ना देख पाए.’

अतः वह जाईरा से त्यामको नामक ढोल को अपने कपड़ों के भीतर छुपा के और कंधों पर सीकों से बनी एक डलिया में अपने पुत्र को बिठाकर निकल पड़ी. वे करनाली के दिशा के आधार पर थेहे की ओर आगे बढ़ने लगे.

उस महिला के सभी सहयात्री त्यामको ढोल के अपने आप बजने की आवाज सुनकर थोड़े परेशान हो रहे थे. कुछ दिन तक यूं ही पैदल चलने के पश्चात वे अपने कौतूहल को रोक नहीं पाए और जब वे अंततः थेहे पहुंचे तो वे सब उस महिला के घर के आगे एकत्रित हुए और उससे पूछने लगे कि आखिर इस ढोल के अपने आप बजने का क्या अर्थ है़? क्या यह कोई पूर्वसूचना या संकेत है?

वह माघ के महीने की भयंकर ठंड से बढ़ते हुए चंद्रमा का चौदहवां दिन था, जब सभी गांववाले उस महिला के पास व उसके पुत्र एवं अपने आप ही बजने वाले त्यामको ढोल के पास एकत्रित हुए थे. उस महिला के एक वर्ष के बेटे का नाम आशे परियार था. हरकी देव के द्वारा ही वह साल भर का बालक उनका धामी चुना गया था.

वह एक वर्ष मात्र का बालक अवचेतन की अवस्था में चला गया एवं उसने सभी लोगों से कहा, ‘मैं जाईरा का हरकी देव हूं.’

परंतु थेहे के अन्य सभी देवताओं को यह पसंद नहीं आया. वे उस नए देव के आगमन से अप्रसन्न थे. इन सबसे ज्यादा वे इस बात से रूष्ट थे कि हरकी देव उनके गांव एक दर्जी जाति की औरत के माध्यम से वहां आए और उसके पुत्र को उन्होंने अपना धामी चुना.

रामपाल देव उसके छोटे भाई बेताल, मश्तो और बनपाल हरकी देव को अपने गांव से निकालने के लिए उसका पीछा करने लगे और अभद्रता के साथ उससे बोले, ‘यहां से चले जाओ. न ही यहां तुम्हारी कोई आवश्यकता है और न ही यहां कोई तुम्हें पसंद करता है. नीच जात के लोगों के साथ रहने का निर्णय लेकर तुमने हमारा अपमान किया है.’ परंतु हरकी ने अत्यंत विनम्रता के साथ उत्तर दिया, मैं अपने निर्णय के अनुसार इन लोगों के साथ थेहे में ही रहूंगा.’

उन दिनों में थेहे कोड़ियामल नामक राक्षसी के भय से आतंकित था जो कि गांव के नीचे बहने वाली करनाली नदी के अंदर गहरी गुफा में रहती थी. उसने नदी के पास के गांवों से बच्चों को चुराने के लिए तिब्बत की तरह सूदूर उत्तर मैदानी क्षेत्र से लेकर दक्षिण भारत तक का सफर तय किया था. जब भी वह किसी बच्चे को खा जाती थी तब नदी के भीतर से लाल रक्त का भयंकर बहाव होता था. गांववालों ने यह सब देखा हुआ था और वे इस बात से अत्यंत भयभीत थे . करनाली नदी की आवाज अत्यंत द्रुतगामी व गरजती हुई होने के बावजूद भी नदी के भीतर से बच्चों की चिल्लाहट सुनाई दी जा सकती थी जो कि कुछ तिब्बती, कुछ हुमली व कभी कभी तो उर्दू भाषा में भी होती थी. माताएं अपने बच्चों के कान बंद कर देती थी व करनाली से निकले रक्तमयी झाग को ढकने का प्रयत्न करती थी परंतु हड्डियों के टूटने की आवाज और अस्थियों के चूसे जाने की ध्वनि कई दिनों घाटी में तक गूंजती रहती थी.

थेहे के लोगों ने सोचा कि उनके देवता उन्हें राक्षसी कोड़ियामल के आतंक से बचाने में असक्षम है अतः बेताल, मश्तो, और बनपाल ने एक-एक करके लोभवश गांव वालों के द्वारा प्रदान की गयी बलि स्वीकार कर और कोड़ियामल से युद्ध के लिए नदी में छलांग लगा दी. लेकिन छोटी सी लड़ाई के पश्चात ही वे किसी तरह अपने अस्प्रष्ट अंगों को बचाकर वापस भाग आए. प्रत्येक देवता के साथ हुई विजय कके कारण वह राक्षसी और भी क्रोधी व बलवान हो गयी.

अपने आगमन के अगले ही दिन आशे परिवार की मां धूप में अपने पुत्र के देह की मालिश कर रही थी, तभी कोड़ियामल ने मुफा से अपनी जीभ बाहर निकाली और एक अन्या माता जो सूर्य के प्रकार में अपने पुत्र की मालिश कर रही थी, उससे उसका पुत्र छीन कर ले गयी. उस माता की चीख पुकार व क्रंदन से थेहे के सभी लोगों का दिन दहल गया. वे सभी भयपूर्वक हड्डी टूटने व सुकड़ने की आवाज की प्रतीक्षा करने लगे परंतु उन्हें कोई रक्त नहीं दिखायी पड़ा अपितु उन्हें कोड़ियामल के डकार लेने की आवाज सुनाई दी.

उस माता ने रोते हुए कहा, रामपाल! तुम सभी देवों में सबसे बड़े व शक्तिशाली देव हो. सभी देवों से पहले तुम्हारी पूजा होती है. अगर तुम मेरे पुत्र की रक्षा नहीं करोगे तो कौन करेगा? मैं तुम्से सबसे पवित्र व शीघ्र बलि अर्पित करने का वादा करती हूं.

रामपाल अनिच्छापर्वूक उस राक्षसी से लड़ने के लिए नदी में कूद तो पड़ा लेकिन शीघ्र की चीड़ के छोटे जंगलों में छुपने के लिए अपनी समाधि की ओर वापस भाग आया.

आशे परिवार जो कि हरकी देव का ही मनुष्य रूप था, अपनी छत से उड़ा और पूरे परियार मुहल्ले की छतों के ऊपर से एवं दक्षिण दिशा में स्थित सरसों, भांग और जौ के खेतों से होते हुए करनाली नदी के ऊपर चक्कर लगाने लगा.

हरकी ने एकदम बुलंद एवं साफ आवाज में कहा, ‘कोड़ियामल, या तो बच्चे को छोड़ दे या फिर अपनी मृत्यु के लिए तैयार हो जा.’ सब लोगों को यह अच्छे से सुनाई दिया. बनपाल, बेताल और मश्तो देव वह युद्ध देखने के लिए अपनी-अपनी छुपने की जगहों से बाहर निकल आए और मन ही मन यह कामना करने लगे कि काश कोड़ियामल इस नए रूप वाले देवता को खा जाए, परंतु कही न कहीं वे ये भी चाह रहे थे कि हरकी उस राक्षसी का मार दे क्यूंकि उसके साथ हुए युद्ध में वे सभी पराजित हुए थे.

कोड़ियामल ने उत्तर में जो कहा इतना भयावह था कि उसे यहां लिख पाना असम्भव है परंतु इतना भयंकर था कि हरकी को करनाली नदी में डुबकी लगानी पड़ी. वह युद्ध तब तक चलता रहा जब तक कि शरद ऋतु में मार्घ महीने की पूर्णिमा का चांद आसमान में न चमकने लगा. कई घंटों की लड़ाई के पश्चात नदी के भीतर कोड़ियामल की गुफा का पानी रक्त से लाल हो गया.

थेहे के सभी लोग व सारे देव यह दृश्य देख रहे थे तभी चमत्कारी ढंग से वह बालक कोड़ियामल के पेट को चीरकर उस छोटे बच्चे को सुरक्षित निकाल लाया और उसे अपने साथ लिए करनाली नदी के ऊपर तैरने लगा.

हरकी की शक्ति को देखकर रामपाल, बेताल, बनपाल और एवं मश्तो आपस में हरकी के थेहे के में वास के बार में आपसी परामर्श करने लगे. यद्यपि हरकी द्वारा कोड़ियामल के वध किय जाने के पश्चात वे सभी गलत सिद्ध हुए थे फिर भी वे उसके प्रति पक्षपाती हो रहे थे क्योंकि उन्हें लगता था कि वे हरकी से कहीं ज्यादा श्रेष्ठ है. अतः माघ महीने की पूर्णिमा की पूरी रात के गहन विचार विमर्श करते रहे एवं अगले दिन वे हरकी के पास आए.

रामपाल ने बड़े अनिच्छापूर्ण भाव से कहा, ‘तुम शक्तिशाली हो हकरी अतः तुम यहां रह सकते हो. त्यौहारों के समय में लोग मुझसे पहले तुम्हारी आराधना करेंगे.’ अब से पूर्णिमा से पहले की चौदहवीं की रात एवं प्रमुख त्यौहार से एक दिन पहले का दिन हरकी देव का होगा.

आशे परिवार जो कि हरकी देव का धामी था, अब बड़ा हो गया था और उसने बड़े होकर गांव के आसपास के राक्षसों और दुष्टों से खूब लड़ाइयां लड़ीं. चौरासी वर्ष की आयु तक उसने अपने जीवन काल में कई हजार चांद देखे. जब वह मृत्यु को प्राप्त हुआ, हरकी देव ने आशे परियार के वंशजों को ही अपना धामी चुना.

कोई भी उच्च कुल या व्यक्ति किसी परियार जाति के व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करने या फिर उसके वेतन में किसी भी प्रकार की छेड़खानी करने से पहले ये याद रखता है कि परियारों का देवता इतना शक्तिशाली है कि उसने उस राक्षसी को मार गिराया था जिससे उनके उच्च कुल के देवता पराजित हो गए थे. जाति परंपरा की वजह से शायद थेहे में परियार कुल के लोगों के साथ अन्याय हो सकता है परंतु उनके साथ उनके देवता है जिन्हें किसी भी प्रकार की डर या धमकी स्वीकार्य नहीं है एवं जो सदा निर्बलां के न्याय के लिए लड़ते हैं.

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पुनर्कथन: प्रवीण अधिकारी
अनुवाद: चंद्रेशा पाण्डेय

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Sudhir Kumar

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