Featured

अल्मोड़ा के हिमालय प्रेम में पड़ा एक वीर हिमालयी योद्धा!

गजे घले ने वैसे तो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दुश्मनों के नाकों चने चबवा के उस समय का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस हासिल किया, परन्तु अल्मोड़ा से दिखने वाले हिमालय पर्वतमाला जिसमें मुख्य रूप से त्रिशूल, नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाघुंटी, पंचाचुली और सुदूर दिखता नेपाल और गढ़वाल हिमालय भी शामिल है, के सौन्दर्य के सामने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया. हिमालय के सामने घंटों जाड़ों की चटक धूप में बैठ कर उसे निहारते रहना और अल्मोड़ा के अपने दिल के करीब लोगों के साथ अपनी लड़ी लड़ाइयों के किस्से सुनाना उनका प्रिय शगल रहा और जीवन पर्यन्त वो अल्मोड़ा, हिमालय और अल्मोड़ा के लोगों के हो के रह गए. अल्मोड़ा और अल्मोड़ा के हिमालय प्रेम के आगे उन्होंने बड़े से बड़े अवसरों और पेशकशों को ठुकरा दिया.

कैप्टन गजे घाले

विक्टोरिया क्रॉस गजे घले का जन्म नेपाल के गंडकी अंचल के जिला गोरखा के बारपाक गांव में एक बेहद सामान्य नेपाली परिवार में हुआ. उनका बचपन बुग्यालों में भेड़ों को चराने और अपने गांव से दिखने वाले सुंदर नेपाल हिमालय पर्वतमाला बुध हिमालय को निहारते हुए बीता. कुछ एक बार वो व्यापार के सिलसिले में तिब्बत भी गए किंतु उनकी किस्मत में फौज में भर्ती हो कर विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त करना तो था ही और वो उन्होंने अपने पराक्रम और शौर्य के बल पर बखूबी हासिल किया. विक्टोरिया क्रॉस अंग्रेजों के शासनकाल में वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान हुआ करता था. यह सम्मान गजे घले ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में एक कठिन पहाड़ी को जापानी सेना से अपने दम पर मुक्त कराने पर प्राप्त किया था.

गजे घले 2/5 रॉयल गोरखा रायफल के वीर सिपाही थे. घले द्वारा विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त करने व बर्मा की लड़ाई का ज़िक्र ब्रिटिश हुक़ूमत ने लंदन गजेटियर में विशेष रूप से किया. नेपाल सरकार द्वारा भी उन्हें ‘स्टार ऑफ नेपाल’ पदक से नवाजा गया. नेपाल सरकार ने उनसे नेपाल में बसने का आग्रह भी किया पर उन्होंने उस से इंकार कर दिया और अल्मोड़ा को ही अपना घर माना.

अपने ब्रिटिश मेहमानों के साथ अल्मोड़ा के घर बाहर हिमालय पर्वत माला के सामने (बीच में) कैप्टन गजे घले. फोटो सौजन्य- श्री केसर घले

ब्रिटिश सरकार द्वारा हर 2 साल में एक बार विक्टोरिया क्रॉस और जॉर्ज क्रॉस पदक विजताओं को लंदन में आमंत्रित कर सम्मान दिया जाता है, गजे घले तकरीबन एक दर्जन से ज्यादा बार लंदन गए और मान सम्मान पाया. 1956 में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उनसे कुछ मांगने को कहा तो उन्होंने अपने लिए कुछ न मांग कर समस्त सैनिकों को पेंशन उनके घर में देने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने पूरा किया और सैनिकों को पेंशन घर में दी जाने लगी. उनका हृदय हिमालय जैसा विशाल था. इसकी बानगी अभी 14 नवंबर को अल्मोड़ा में कैप्टन गजे घले पार्क में उनके परिवार द्वारा उनको समर्पित उनकी प्रतिमा अनावरण समारोह में देखने को मिली. जिसमें उनके व उनके परिवार के प्रति अल्मोड़ा वासियों का प्रेम उमड़ पड़ा. इस समारोह के लिए विशेष रूप से उनके परिवार के कुछ सदस्य सीधे लंदन से अल्मोड़ा पहुंचे. लोगों ने गजे घले से जुडी अपनी अमिट यादों को एक दूसरे के साथ साझा किया. आजकल के दौर में जहां सेल्फी और सिर्फ अपनी फ़ोटो खींचवाने का चलन चल पड़ा है. लोगों ने गजे घले की प्रतिमा और उनके परिवार के सदस्यों के साथ जिस तरह से ग्रुप फोटो खींचने की होड़ सी लगी रही वो उनके व उनके परिवार के प्रति अल्मोड़ा वासियों के अगाध प्रेम को दर्शाता है. ये उनका हिमालय प्रेम ही है कि उनकी प्रतिमा भी उसी हिमालय के सामने लगी है जिसे वो घंटों निहारा करते थे.

14 नवम्बर को अल्मोड़ा वासियों व उनके परिवार के सदस्यों ने अल्मोड़ा कैंट में गजे घले पार्क में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया. इस दिन की कुछ तस्वीरें. सभी फोटो जयमित्र सिंह बिष्ट ने लिये हैं.

 

 

 

जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.

 

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago