बेड़ु पाको, पार भिड़ा की बसन्ती छोरी, सुर सुर मुरली बाजगे, ओ लाली हो! लाली हौसिया और न जाने कितने गीतों को पहाड़ की घस्यारियों ने रेडियो पर सुना होगा और न जाने कितनों ने अपने जंगल खेत खलिहानों में इन गीतों को गुनगुनाया होगा. रेडियो पर इन गीतों को गाने वाली पहली महिला लोक गायिका हैं नईमा खान उप्रेती. आज नईमा खान उप्रेती की पहली पुण्यतिथि है. (death anniversary of Naima Khan Upreti Uttarakhand)
पिछले वर्ष आज ही के दिन दिल्ली में नईमा खान उप्रेती का निधन हो गया था. (death anniversary of Naima Khan Upreti Uttarakhand) एक इन्टरव्यू में नईमा बताती हैं :
मुझे बचपन से गाने शौक था हर साल अपने स्कूल एडम्स गर्ल्स कॉलेज के म्यूजिक कॉम्पेटिशन की टॉपर रहती थी. एक साल दूसरे नम्बर पर आयी इस बात से मुझे बड़ी हैरान हुयी. मैं अपने साथियों से कहने लगी यह कौन जज है जिसने मुझे दूसरे नम्बर ला दिया. मैंने जब देखा जज कोई और नही मोहन उप्रेती थे. बाद में मोहन उप्रेती भी अल्मोड़ा में कला साहित्य सँस्कृति रंगमंच से जुड़ गए और धीरे-धीरे मैं उनके साथ रंगमंच मे गाने लगी. मेरी अभिनय, नृत्य आदि में रुचि अधिक नहीं रही मैं तो फिल्मों में पार्श्व गायिका बनना चाहती थी.
अल्मोड़े के कारखाना बाजार में एक प्रतिष्ठित मुस्लिम परिवार में उनका जन्म हुआ था. कम ही लोग जानते हैं कि उनके दादा हाजी नियाज़ मोहम्मद ब्रिटिश काल में नगर पालिका अल्मोड़े के म्युनिसिपल कमिश्नर रहे.
नईमा खान उप्रेती का पहला रिकार्डेड गाना घा काटनो जां हो दीदी घा काटनो जां है. नईमा खान ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में रंगमंच की पढ़ाई की. वहां उन्होंने उत्तराखंड की कला, साहित्य और सँस्कृति को एक नया मुकाम दे दिया. एनएसडी से रंगकर्म का प्रशिक्षण लेने वाली कुमाऊं की पहली महिला नईमा खान उप्रेती थीं. नईमा खान उप्रेती दूरदर्शन में ब्लैक एंड वाइट के दौर से जुड़ीं. दूरदर्शन में जब पहली बार कलर प्रोग्राम बना वह उसकी सहायक प्रोड्यूसर रही.
उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोकगाथा राजुला मालूशाही और अजुवा बफौल जैसी कई लोक गाथाओं के संरक्षण में उन्होंने अपने पति स्व. मोहन उप्रेती के साथ काफी काम किया.
-काफल ट्री डेस्क
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apni sanskiriti ke baare m jaana aur abhimaan karne ka mauka dene k liye bahut bahut dhanyawwad..