वह भी क्या दौर था, जब मेहमानों के आते ही खुशी छा जाती थी. अतिथि देवो भव की सनातन परंपरा का बखूबी निर्वहन हुआ करता था. परिवार का हर सदस्य अतिथि के स्वागत-सत्कार के लिए आतुर हो उठता था. मेहमान एक-दो दिन के लिए आया तो उसे एक-दो दिन और रोक लिया जाता था. मेहमानों के साथ ढेर सारी बातें और सुख-दुख बांट लिया जाता था. माहौल खुशनुमा और बच्चों के लिए तो खुशी का ठिकाना ही नहीं. यही कारण था कि लोग आधुनिक युग की खतरनाक मानसिक बीमारी डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसे गंभीर लक्षणों से ग्रसित नहीं हुआ करते थे. (Why is it important to have Guests )
समय ने बड़़ी तेजी से करवट बदली और बहुत कुछ ऐसा बदल गया, जिसे नहीं बदलना चाहिए था. आधुनिक हो चुके कथित शहरी घरों में अब मेहमाननवाजी की खूबसूरत संस्कृति विलुप्त सी हो गई. मेहमान या तो आते-जाते नहीं, अगर अपनों के घर चले भी गए तो काम से काम रखा और कुछ देर में ही निकल गए. (Why is it important to have Guests )
हां, अब लोग मेहमान आने पर खुश नहीं होते हैं. अजीब सा बोझ महसूस होने लगता है. कई बार औपचारिकता का इतना लबादा ओढ़ लिया जाता है कि मेहमान भी असहज होने लगते हैं. अगर कोई मेहमान घर पर अधिक देर तक टिकना भी चाहता है तो माहौल कुछ ऐसा बना दिया जाता है, जैसे बच्चों की तो पढ़ाई ही नहीं हो पाती. बच्चों को ऐसी बातों से कोई मतलब ही नहीं रहता. बच्चे कहां रिश्तेदारी में उलझें, पढ़लिख कर कुछ बन लें, फिर रिश्तेदार ही रिश्तेदार. आजकल बिजली का बिल पता नहीं इतना क्यों आ रहा होगा. खर्चा तो पूछे मत सब्जी और खाने में ही पूरा बजट गड़बड़ा जा रहा है… आदि आदि. (Why is it important to have Guests )
मेहमानों से संवादहीनता में पल रही युवा पीढ़ी की संवेदनाएं खत्म होने का यह भी एक बड़ा कारण है. ऐसे आधुनिक परिवारों में मेहमानों से दूरी के क्या दुष्परिणाम झेलने पड़ रहे हैं, इसे जानते हुए भी लोग अनजान बने हैं.
अल्मोड़ा जिले के गांव सिरसोली निवासी 70 वर्षीय पार्वती देवी मेहमाननवाजी की पुरानी यादें ताजा कर भावुक हो उठती हैं, कहती हैं मेहमान आते ही बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक प्रसन्न हो जाते थे. खाना पहले मेहमान को खिलाया जाता और फिर घर के सदस्य खाते. कोई कभी भी अचानक आ जाता था. आज की तरह ऐसा तो था नहीं कि पहले फोन कर दो और फिर जाओ. घर में जो कुछ भी होता, उसी में संतोष था. अब तो कुछ और-और ही होने लगा है.
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में हुए एक शोध आंखें खोलने वाला है. इस शोध के अनुसार जिन घरों में अक्सर मेहमानों का आवागमन रहता है, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक मजबूत होती है. बीमार कम पड़ते हैं. शोध में पाया गया कि प्रत्येक मेहमान अपने साथ 3.8 करोड़ बैक्टीरिया अपने साथ लाता है. इसे पढ़कर चौंकने की जरूरत नहीं, क्योंकि प्रत्येक बैक्टीरिया सेहत के लिए नुकसानदेह नहीं होता है.
ऐसे में मेहमानों के घर पर आने से आप तमाम तरह के बैक्टीरिया के संपर्क में आते हैं, जिसकी वजह से आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है. इतना ही नहीं, अपनापन बढ़ता है. संवाद बने रहने से मन की तमाम उलझनें कम हो होने लगती हैं. सामाजिक होने का भी अवसर बना रहता है.
शोध यह भी बताता है कि अधिक स्वच्छता वाले वातावरण में रहना भी किसी की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है.
-गणेश जोशी
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
हल्द्वानी निवासी गणेश जोशी एक समाचार पत्र में वरिष्ठ संवाददाता हैं. गणेश सोशल मीडिया पर अपना ‘सीधा सवाल’ सीरीज में अनेक समसामयिक मुद्दों पर जिम्मेदार अफसरों, नेताओं आदि को कटघरे में खड़ा करते हैं. काफल ट्री की शुरुआत से हमारे सहयोगी.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…