क्या आपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का (नीचे दिया गया) यह विडियो देखा था? यह तब का विडियो है (2013 का) जब मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे. मोदी इस विडियो में रुपये की कीमत के गिरते जाने का फलसफ़ा बता रहे हैं. वे कहते हैं, ”अब आज देखिए आप रूपये की कीमत जिस तेज़ी से गिर रही है, और कभी कभी तो लगता है कि दिल्ली सरकार और रुपये के बीच में कॉम्पटीशन चल रहा है… किसकी आबरू तेज़ी से गिरती चली जा रही है.. कौन आगे जाएगा.. इसकी कॉम्पटीशन चल रही है.”
‘अबकी बार मोदी सरकार’ कैंपेन के इस पोस्टर को भी देख लें जिसमें लिखा है, ”बहुत खायी रुपये ने डॉलर से मार.. अबकी बार मोदी सरकार’. यानि 2014 के आम चुनावों में मोदी ने अपने पक्ष में गोलबंदी की जो कोशिशें की थी उसमें रुपये की गिरती कीमतों को भी उन्होंने कॉंग्रेस के ख़िलाफ़ एक हथियार बनाया था.
मोदी इसी विडियो में आगे कहते हैं, ”देश जब आज़ाद हुआ था, तो 1 डॉलर 1 रुपये के बराबर था. एक रुपये में 1 डॉलर बिकता था. जब अटल जी की सरकार थी.. अटल जी ने जब पहली बार सरकार बनाई, तब तक मामला पहुंच गया था 42 रुपीज़ तक. और अटल जी ने जब छोड़ा, तब 44 पर पहुंचा था. 4 प्रतिशत में फर्क आया था. लेकिन इस सरकार ने और अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के कालखंड में ये 60 रुपये पर पहुंच गए.”
रुपये के मामले में कॉंग्रेस पर मोदी के हमले तीखे थे. लेकिन अगर हम इस बात की पड़ताल करें कि बड़े बड़े वादों पर सवार मोदी जब खुद सत्तानसीं हुए तो रुपये के मोर्चे पर उनकी सरकार ने क्या किया. रूपये की मौजूदा कीमत लुढ़कते हुए 72.10 जा पहुंची है. आज तक के इतिहास में रुपया अपने सबसे बुरी कीमतों पर जा पहुंचा है. जबकि केंद्र में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार सत्तानसीं है और उस पर भी भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला हुआ है.
तो इस तथ्य को मानने में शायद कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए कि मोदी रुपये के मोर्चे पर ख़ुद भी धराशाई हो गए हैं. लेकिन 2013 के अपने इस भाषण क्या वे हू-ब-हू दोबारा दोहरा पाएंगे? हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार के पास प्रशिक्षित प्रवक्ताओं और व्हॉट्स एप यूनिवर्सिटी के कुतर्कों से प्रशिक्षित मोदी सरकार के समर्थकों, (जिन्हें कुछ लोग अंधभक्त या शॉर्ट में भक्त कहते हैं) की कोई कमी नहीं, वे हमारे इस तर्क को सिर के बल खड़ा कर सकते हैं. इसलिए हमें इस बहस में नहीं जाना.
यहां इस आलेख में हम इस पर बात करना चाह रहे हैं कि जब रुपये की क़ीमत इस क़दर गिर रही है तो इसका असर क्या होना है? स्टेट बैंक आॅफ इंडिया के आर्थिक सलाहकार सौम्या कांति घोष ने बृहस्पतिवार को एक नोट लिख कर इस बात की जानकारी दी है कि गिरते रुपये की क़ीमत का असर कहां कहां होगा.
सामान्य तौर पर ऐसी स्थिति में माना जाता है कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसका सबसे बड़ा नुकसान तेल के क्षेत्र में होता है. वो क्षेत्र तो है ही लेकिन साथ ही भारत पर जो बाहरी कर्ज़ है उसकी वापसी पर भी इसका भारी असर पड़ना है. इस साल भारतीय मुद्रा में 11 प्रतिशत की गिरावट आई है. इसके चलते आने वाले महीनों में देश को उन सीमित अवधि के कर्जों को लौटाते हुए 68500 करोड़ ($9.5 billion) की अतिरिक्त चपत लगनी है.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक सौम्या कांति घोष ने इसी नोट में यह भी बताया है कि अगर रुपये की क़ीमत इस साल डॉलर के मुक़ाबले 73 रुपये तक गिर जाती है और भारत में सर्वाधिक आयात होने वाले कच्चे तेल की क़ीमत 76 डॉलर प्रति बैरल हो जाती है तो इससे देश का तेल का खर्चा 457 अरब रूपये तक बढ़ जाएगा.
-रोहित जाशी
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…
तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…
चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…