न्यायपालिका को अब सरकार में बैठ कर आराम से शासन चलाना चाहिए. इससे लोगों की समस्याएं सीधे तौर पर कम होंगी. आम जनों को जल, जंगल, जमीन, पशु, पक्षी, नशा, प्रदूषण के मुद्दों पर सुधारात्मक परिवर्तन के लिए दो चार साल तक कोर्ट के चक्कर से भी मुक्ति मिल सकेगी.
हम ऐसा क्यों कह रहे हैं. उसके लिए विगत कुछ दिनों के कोर्ट के निर्देशों और निर्णयों की समीक्षा करनी पड़ेगी. समझना बेहद आसान हो जाएगा. राजधानी देहरादून में कूड़ा भी साफ़ करवाने के लिए हाईकोर्ट को आदेश जारी करना होता है. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नीति तब तैयार होती है जब सुप्रीम कोर्ट पहले राज्य में सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगा देती है, फिर हमारी सरकार जागती है. और आनन-फानन में नीतियों को अमलीजामा पहनाया जाता है. जब तक कोर्ट का हंटर शासन और प्रशासन पर नहीं चलता, इनके कानों में जूं तक नहीं रेंगती है.
गौरतलब है कि प्रदेश के जानवर, पक्षी, नशे की जकड़ में फंसे युवा, अवैध निर्माण से राज्य को बचाने की लड़ाई, नदियों के अस्तित्व पर बढ़ते खतरे, बगैर नीतियों के पर्यटन के कारण हिमालयी राज्य को हो रहे नुकसान, प्राइवेट विद्यालयों की मनमानी पर रोक लगाने की जिम्मेवारी, प्रदेश के कार्मिकों को हड़ताल से उठाने का जिम्मा भी कोर्ट पर ही है.
सरकार न ही सरकारी कर्मचारियों के मसलें पर कोई स्थायी समाधान निकाल सकी है. न ही प्रदेश के जनकल्याण के मुद्दों का कोई स्थायी हल. हर बार कोर्ट की फटकार के बाद नौकरशाही कोर्ट में दस्तक देती है और फटकार खाने के बाद कोई काम करती है. ये सिलसिला कोई नया नहीं है. लेकिन पिछले एक महीने में ये सिलसिला तेज हो गया है. सरकार का कर्मचारियों के साथ समन्वय तक स्थापित करने में नाकाम रही है. विगत दिनों एक नहीं बल्कि प्रदेश के 27 विभागों के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे.
ऐसा प्रतीत होता है सरकार को तसल्ली से सारे काम-काज से मुक्त कर देना चाहिए और कोर्ट को ही सीधे विधायिका का अतिक्रमण कर लेना चाहिए. जब जल, जंगल, जमीन, सब की लड़ाई कोर्ट में ही लड़ी जानी हैं तो विधायिका पर चुनाव में होने वाले खर्च सहित अरबों रूपये तनख्वाह व अन्य भत्तो पर खर्च क्यों?
कोर्ट में ही आम शिक्षकों व कर्मचारियों की समस्याओं का फैसला होना है तो शिक्षा विभाग की क्या जरूरत है? गंगा की सफाई के लिए आए दिनों कोर्ट को ही आदेश जारी करने हैं तो गंगा की सफाई में लगी पूरी सरकारी मशीनरी का क्या फायदा है, जब किसी प्रकार का सुधारात्मक परिवर्तन नहीं हो पा रहा है? एक मोटे अंदाजे से प्रदेश में पर्यटन के लिए नीति नहीं होने के कारण इस सीजन में पूरे प्रदेश में सीधे तौर पर 500 करोड़ का नुकसान हुआ है, जब नीतियां भी कोर्ट की फटकार के बाद ही बनेगीं तो सरकार का औचित्य क्या है?
विगत कुछ दिनों में उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा दिए गए कुछ निर्देश-
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