बीते शनिवार ओलम्पिक के इतिहास में भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी वंदना कटारिया ने वह कारनामा कर दिखाया जो ओलम्पिक के 125 साल के इतिहास में कोई महिला खिलाड़ी नहीं कर पाई थी. शनिवार को द. अफ्रीका के साथ हुये खेल में वंदना कटारिया ने 3 गोलकर हैट्रिक जमाई ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं.
(Uttarakhand Daughter Created History Olympics)
36 वर्ष की वंदना कटारिया को आज देश और विदेश ने खूब बधाई संदेश आ रहे हैं पर इस हैट्रिक के पीछे की कड़ी मेहनत और संघर्ष की कहानी बहुत कम लोग जानते हैं. कम लोग जानते हैं उत्तराखंड के एक छोटे से क्षेत्र से टोक्यो हैट्रिक तक का सफ़र.
उत्तराखंड में हरिद्वार जिले के छोटे से क्षेत्र रोशनाबाद से आती हैं वंदना कटारिया. वंदना का पूरा परिवार रोशनाबाद में ही रहता है। भेल हरिद्वार से रिटायर होने के बाद उनके पिता नाहर सिंह ने रोशनाबाद में ही दूध का व्यवसाय शुरू किया. वंदना के हॉकी के सफ़र की शुरुआत रोशनाबाद से ही हुई.
जब वंदना कटारिया ने हॉकी कि दुनिया में कदम रखा तो गांव वालों ने उनके परिवार का खूब मजाक उड़ाया. वंदना और उनके परिवार को गांव वालों के ताने सुनने को मिले पर पिता के साथ ने वंदना के कदमों को खूब मजबूती दी. वंदना कटारिया की मां सरणा देवी ने भी कभी लोगों की बातों की परवाह न की.
रोशनाबाद में खेलों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं थी. वंदना को न खेल का मैदान मिला न साथ में खेलने को साथी. वंदना ने इसका भी उपाय निकाला और शुरुआती दौर में लड़कों के साथ ही प्रैक्टिस शुरू कर दी. परिवार को इसके लिये भी समाज के ताने सुनने पड़े. वंदना कटारिया ने अपने खेल को मजबूती देने के लिए प्रोफेशनल तौर पर मेरठ से शुरुआत की.
(Uttarakhand Daughter Created History Olympics)
हरिद्वार में वंदना को खेलते हुये प्रदीप चिन्योटी ने पहली बार देखा. जिसके बाद वंदना मेरठ आई और वहां मेरठ के एनएएस कॉलेज स्थित हॉकी मैदान पर कोच प्रदीप चिन्योटी के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण शुरु किया. साल 2004 से 2006 तक वंदना ने मेरठ में प्रशिक्षण लिया. यहां वह जिले से लेकर प्रदेश स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती थी. साल 2007 की शुरुआत में वंदना का चयन लखनऊ स्थित हॉकी हास्टल में हुआ. यहीं से उनके अन्तराष्ट्रीय करियर की भी शुरुआत हुई.
बीते मई में जब वंदना टोक्यो ओलिंपिक की तैयारियों में जुटी हुई थी तभी उनके गांव में उनने पिता का निधन हो गया. पिता के निधन के समय वंदना कटारिया बंगलौर में थी. पिता के निधन पर वह गांव न लौट सकी पर दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हुए मैच में शानदार प्रदर्शन कर पिता को श्रद्धांजलि दी.
(Uttarakhand Daughter Created History Olympics)
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…