आज पिथौरागढ़ जिले को बने 60 साल हो चुके हैं. छोटे-छोटे गाँवों से मिलकर 1960 में इस जिले को बनाया गया था. इससे पहले यह अल्मोड़ा तहसील का हिस्सा हुआ करता था. मुख्य शहर के गांव मिलकर एक क़स्बा बना जो आज किसी शहर से कम नहीं है. आज भले ही पिथौरागढ़ शहर एक कंक्रीट का जंगल बन गया हो यहां कि आबोहवा बदल गयी हो लेकिन यहां के लोग आज अभी भी उत्तराखंड राज्य के सबसे जागरुक नागरिकों में जाने जाते हैं. Twelve Things About Pitharagarh
पिथौरागढ़ के 60वें जन्मदिन पर जानिये पिथौरागढ़ से जुड़ी बारह अनूठी बातें-
करीब दो हजार साल पहले पिथौरागढ़ एक झील हुआ करती थी. ठुलिगाड़ और उसकी सहायक सरिताओं की घाटियों में भरा हुआ था झील का पानी. कोटली से सातसिलिंग के पास तक ग्यारह किलोमीटर और चैपखिया से लेकर कुजौलीं तक सोलह किलोमीटर तक थी यह झील. इस झील के बारे में विस्तार से जानने के लिये पढ़े मशहूर भूवैज्ञानिक प्रो. खड्ग सिंह वाल्दिया का यह महत्वपूर्ण आलेख : दो हजार साल पहले पिथौरागढ़ के तीन ओर था एक सरोवर
1952 में पिथौरागढ़ में पहली गाड़ी आई थी. इस दिन पिथौरागढ़ के सभी स्कूलों में छुट्टी घोषित की गयी थी. आस-पास के गावों से कई सारे लोग मुख्य शहर में केवल गाड़ी देखने आये थे. कहते हैं यहां उस दिन हजारों की संख्या में भीड़ इकट्ठी हो गयी थी. भीड़ में अधिकांश लोग ऐसे थे जिन्होंने इससे पहले कभी गाड़ी नहीं देखी थी. पिथौरागढ़ के इतिहास लिये यहां देखें : नगर पिथौरागढ़ का इतिहास
पिथौरगढ़ शहर की बात हो और सिमलगैर के बारे में न लिखा जाय तो बात ही अधूरी है. सिमलगैर बाजार का नामकरण सेमल वृक्षों की बहुतायता से हुआ है. पिथौरागढ़ नगर की सीमा निर्धारण के लिए इसे बारा पत्थर के अन्दर रखा गया था. आज सिमलगैर बाजार पिथौरागढ़ का मुख्य बाजार है.
समुद्र ताल से करीब 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मुनस्यारी पंचचूली की शानदार चोटियों के साए में बसा एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा है. मिथकों में बताया गया है कि पंचचूली का नाम उन पांच चूल्हों से प्रेरित है जिन पर पांच पांडवों ने अपनी अलग-अलग रसोइयाँ बनाकर अपना अंतिम भोजन पकाया था. प्रकृति ने जिस तरह अपना सौन्दर्य मुनस्यारी पर निछावर किया है उसे देखकर ऐसा भी लगने लगता है जैसे स्वयं प्रकृति को यह स्थान बहुत प्रिय रहा होगा. मुनस्यारी के बारे में और जानने के लिये देखें : कुमाऊँ का अनूठा नगीना है मुनस्यारी, मुनस्यारी में बर्फ
कैलाश-मानसरोवर और आदि-कैलाश की पवित्र तीर्थयात्राओं का मार्ग उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की धारचूला तहसील में पड़ने वाली व्यांस घाटी से होकर गुज़रता है. पवित्र हिमालयी ऊंचाइयों में रं घाटियाँ भी हैं जहां की तमाम अनसुनी-अनकही कहानियां आज भी खोजे जाने की प्रतीक्षा में हैं. धारचूला की व्यास घाटी की तस्वीरें यहां देखिये : धारचूला की व्यांस घाटी
पिथौरागढ़ के प्रवेश द्वार पड़ने वाले इस मंदिर को पिथौरागढ़ में रहने वाला ही नहीं बल्कि पिथौरागढ़ आने वाला हर शख्स जानता है. 1952 में बने गुरना मंदिर का जिक्र अधूरा रहेगा अगर इसके साथ में लगी दुकानों का जिक्र न किया जाय. गुरना मंदिर की प्रसिद्धि के साथ में यहां पर कुछ होटल भी खुले. इन होटलों में विश्व के सबसे लज़ीज आलू के गुटके पहाड़ी रायते के साथ परोसे जाते हैं. गुरना मंदिर के बारे में पढ़िये : पिथौरागढ़ का गुरना माता मंदिर
नैनी-सैनी हवाई अड्डा पिथौरागढ़ में रहने वाले हर छोटे बड़े का एक सपना है. नैनी सैनी हवाई पट्टी का निर्माण कार्य 1991 से लटका हुआ है. पिथौरागढ़ से जल्द शुरू हवाई यात्रा एक ऐसी खबर है जिसे पढते हुये कुछ लोग हवा हो चुके हैं और कुछ हवा होने वाले हैं. इस खबर को पढ़ते हुऐ कई नन्हे-मुन्ने जवान हो चुके, जवानों की आँखे कमजोर हो गईं और बूढों की आँखें नहीं रही. लडकियां औरतें कहलाने लगी, औरतें अम्माएं और न जाने कितनी अम्माओं के गले फूलों का हार चढ़ गया पर खबर जस की तस बनी रही – “पिथौरागढ़ में जल्द शुरू होगी हवाई यात्रा.” 2018 में इसका उद्घाटन तक किया जा चुका है लेकिन आज भी इसका प्लेन पंतनगर हवाई अड्डे में खड़ा है. नैनी-सैनी हवाई अड्डे के बारे में नवीनतम जानकारी यहाँ देखें. बीस दिन भी न चल सकी पिथौरागढ़ हवाई सेवा
न जाने क्यों हमको अपने शहरों और गावों का इतिहास किताबों में क्यों नहीं पढ़ाया जाता है. ले देकर भारत की आजादी में पूरे कुमाऊ क्षेत्र के चार-पांच लोगों का नाम गिनाया जाता है जबकि पिथौरागढ़ जिले से ही अनेक स्वंत्रता सेनानी हुए. पिथौरागढ़ तहसील में आजादी का बिगुल फूंकने के प्रमुख सूत्रधार ग्राम हलपाटी के प्रयागदत्त पंत थे जो 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से ऊर्जामय हो गये. प्रयागदत्त पंत इलाहाबाद विश्वविद्यालय के स्नातक थे. कुमाऊँ केसरी बदरीदत्त पांडे के दिशा निर्देश पर कुली बेगार आंदोलन में सोर के सपूतों ने जमकर हिस्सेदारी की. हालांकि 6 दिसंबर 1847 के एक सरकारी आदेश से बिशाढ़ गांव के लोगों ने कई बार इसके विरोध में मुकदमा लड़ा जिसमें रावल और वाल्दिया पट्टियों के थोकदार और जमींदारों ने पूरा सहयोग किया. पिथौरागढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे प्रो. मृगेश पांडे का एक बड़ा आलेख यहां पढ़िये : स्वतन्त्रता संग्राम में सोर घाटी पिथौरागढ़ की गौरवशाली भूमिका
पिथौरागढ़ की बात हो और दानसिंह मालदार का नाम न आये यह कैसे हो सकता है. दानसिंह मालदार पिथौरागढ़ के वड्डा में जन्में थे. वह अपने समय के अरबपति थे. उनका व्यापार ब्राजील, यूरोप, रुस जैसे देशों तक चलता था. कहा तो यहां तक जाता है कि दानसिंह मालदार के सामने अंग्रेजों भी नजरें झुकाकर ज़बान खोलते थे.दानसिंह मालदार के बारे में विस्तार से जानने के लिये पढ़े सुधीर कुमार का आलेख : उत्तराखण्ड के अरबपति दान सिंह ‘मालदार’ की कहानी
हंसा मनराल भारत की पहली महिला भारोत्तोलक कोच रही हैं. रोमा देवी, कर्णम मल्लेश्वरी, ज्योत्सना दत्ता छाया अनीता चानू आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो हंसा मनराल के प्रशिक्षणार्थी रहे. पिथौरागढ़ के भाटकोट में जन्मी हंसा मनराल का परिवार एक सामान्य परिवार था. अपने चार भाई बहिनों में वह सबसे छोटी थी. प्राथमिक शिक्षा भाटकोट के प्राइमरी स्कूल से पास करने के बाद इंटर की परीक्षा उन्होंने राजकीय बालिका इंटर कालेज ( जी.जी.आई.सी.) पिथौरागढ़ से ही किया. पिथौरागढ़ डिग्री कालेज से ही हंसा मनराल ने बी.ए की परीक्षा पास की. हंसा मनराल के बारे में विस्तार से पढ़िये : भारत की पहली महिला भारोत्तोलक कोच पिथौरागढ़ की हंसा मनराल
चंद्रप्रभा 24 दिसंबर 1941 को उत्तराखण्ड के सीमान्त जिले के दुर्गम कस्बे धारचूला में जन्मीं. चंद्रप्रभा के कृषक पिता जीवन में शिक्षा के महत्त्व को समझते थे. उन्होंने हर हाल में चंद्रप्रभा की शिक्षा को जारी रखा. इंटरमीडिएट कि पढाई के लिए उन्हें नैनीताल भेजा गया. 1978 में ‘निम’ में ही प्रशिक्षक नियुक्त हुईं. 1983 तक उत्तरकाशी में प्रशिक्षक रहने के दौरान ही उन्होंने कई हिमालयी चोटियाँ फतह कीं. चंद्रप्रभा ऐतवाल 1981 में अर्जुन अवार्ड, 1990 में पदमश्री से नवाजी गयीं. चंद्रप्रभा ऐतवाल के बारे में विस्तार से पढ़िये : जिस महिला पर उत्तराखण्ड हमेशा नाज करेगा
भारतीय बाक्सिंग के पितामह कहे जाने वाले कैप्टन हरि सिंह थापा मूल रूप से पिथौरागढ़ के थे. 72 साल की उम्र में भी कैप्टन हरि सिंह थापा को पिथौरागढ़ स्थित अपने गांव नैनी-सैनी में छोटे-छोटे बच्चों को निःशुल्क प्रशिक्षण देते हुये देखा जा सकता था. यह उनकी ही मेहनत का फल था कि देवसिंह मैदान में एक बाक्सिंग रिंग के आकर पूरा ढांचा बना था. उनके सिखाये पिथौरागढ़ के बहुत से लड़कों ने राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय पदक अपने नाम किये. कैप्टन हरि सिंह थापा के विषय में और जानिये : पिथौरागढ़ से भारतीय बाक्सिंग के पितामह
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