सिने-अभिनेता इरफान नहीं रहे. विगत दो बरसों से वे लाइलाज बीमारी से जूझ रहे थे. इरफान को सहज अभिनेता होने का श्रेय जाता है. एक खास तरह की संवाद अदायगी और अदाकारी से उन्होंने दर्शकों में अपनी एक अलग पहचान बनाई. छोटे पर्दे से खाक छानते हुए उन्होंने धीरे-धीरे बड़े पर्दे की तरफ मूव किया. (Tribute to Irrfan Khan)
चाणक्य धारावाहिक में उनके भद्रसाल के किरदार को कौन भूल सकता है. उनके मौर्यकालीन गेटअप में सेनापति वाली संवाद अदायगी ने दर्शकों पर अमिट प्रभाव छोड़ा. भद्रसाल का वह करुण विलाप वाला दृश्य, जिसमें वह चौराहे पर आत्मघात कर देता है, कौन भूल सकता है.
साधारण चेहरे-मोहरे वाले इरफान की आँखें बोलती थीं. तिग्मांशु धूलिया की ‘हासिल’ में उन्होंने छात्र नेता रणविजय सिंह का किरदार निभाया. स्टूडेंट लीडर की रंगबाजी को उन्होंने एक स्टाइल बना दिया. उनकी पूर्वी हिंदी की संवाद अदायगी ने खास तौर पर दर्शकों का दिल जीता. (Tribute to Irrfan Khan)
पान सिंह तोमर में उनका बुंदेली अंदाज कहीं भी असहज नहीं लगा. एक डाकू के हालातों को जस्टिफाई करते डायलॉग, ‘डकैत थोड़ेई हैं, बागी हैं, बागी’ पर दर्शकों ने खूब तालियां बजाई.
मकबूल, स्लमडॉग मिलेनियर, नेमसेक, बिल्लू बारबर, चरस, लाइफ ऑफ पई, लंच बॉक्स, ब्लैकमेल, अंग्रेजी मीडियम जैसी फिल्मों में क्रिटिक्स ने उनकी खूब सराहना की. सहज अभिनय के दम पर वे नकारात्मक चरित्रों में भी ऐसी जान डाल देते कि दर्शकों को विलेन से मोह होने लगता था. हर दिल अजीज कलाकार को विनम्र श्रद्धांजलि. (Tribute to Irrfan Khan)
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उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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