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ट्रेल पास अभियान भाग – 2

पिछली कड़ी

पहली जून 1994 को जब अस्कोट-आराकोट अभियान दल मुनस्यारी पहुंचा, दल के अधिकांश सदस्य मेरे पूर्व परिचित मित्र थे. उनके आवास तथा भोजन की उचित व्यवस्था की गई. मैंने लेह-लद्दाख भ्रमण का कार्यक्रम बना लिया था. अन्यथा मैं भी इस अभियान में सम्मिलित हो जाता. स्नेही डॉ. ललित पन्त से ज्ञात हुआ कि अनूप शाह जी आगामी 2-3 माह में ट्रेल पास अभियान की योजना बना रहे हैं. विगत 10-12 वर्षों के अपने ट्रेकिग अनुभवों पर प्रकाश डालते हुए इस अभियान में सम्मिलित होने की इच्छा से मैंने शाहजी को तुरन्त पत्र लिख डाला. जुलाई प्रथम सप्ताह में लद्दाख से वापस लौटने तक शाहजी का कोई उत्तर न आने पर पुनः पत्र लिखकर मैं दो सप्ताह के लिए एक ब्रिटिशनर पार्टी के साथ मिलम-रालम ट्रेकिंग पर चला गया था. 17 सितम्बर को रूपकुण्ड के भ्रमण पर जाने की तैयारी में था. सांय नैनीताल माउन्टिनियरिंग क्लब का एक आवश्यक डाक प्राप्त हुआ, पत्र ट्रेल पास अभियान पर जाने के लिए मुझे 15 सितम्बर को नैनीताल पहुंचने को लिखा गया था. साथ में ऐसे साहसिक अभियान पर जाने के लिए राज्य सरकार के स्पोर्ट्स अनुभाग द्वारा एक माह तक के लिए विशेष अवकाश की सुविधा प्रदान करने सम्बन्धी आदेश की सत्य प्रति भी संलग्न थी. अतः प्रधानाचार्य को इस आशय से अवगत कराकर मैंने 18 सितम्बर को प्रातः नैनीताल के लिए प्रस्थान किया. सायं अल्मोड़ा से टेलीफोन द्वारा पूछने पर ज्ञात हुआ कि पार्टी 20 की अपेक्षा 22 सितम्बर को इस अभियान पर निकलने वाली है.

दूसरे दिन चेतराम शाह ढुलधरिया इण्टर कालेज मल्लीताल स्थित नैनीताल माउन्टिनियरिंग क्लब पहुंचने पर क्लब के कार्यकर्ताओं और सदस्यों से मेरा परिचय हुआ. क्लब के विशेष सचिव सेवा निवृत कर्नल जे.सी. जोशा ने ट्रेल पास सम्बन्धी आवश्यक प्रपत्र तथा मानचित्रों से मुझे अवगत कराया. कर्नल जोशी सेना से सेवा निवृत होने के पश्चात नेहरू माउन्टिनियरिंग इन्स्टीटयूट, उत्तरकाशी में प्रधानाचार्य भी रह चुके हैं. जिससे पर्वतरोहण सम्बन्धी इन्हें अच्छा अनुभव है. मुझे भी इस अभियान दल में शामिल कर आकस्मिक बीमा करा लिया गया और मैंने सदस्यता शुल्क का डेढ़ हजार रूपया भी क्लब में जमा कर दिया.

मेरी पुस्तक ’मध्य हिमालय की भोटिया जनजाति’ के भौगोलिक अध्याय में ट्रेल पास अभियान पर दिये गये संक्षिप्त विवरण को पढ़ने के पश्चात् अपून शाह जी के पिता चन्द्रलाल शाह जी पुस्तक में दिये गये परिशिष्ट जोहार की वंशावली को देखकर बहुत प्रभावित हुए थे और अब ढुलघरिया शाह कुटुम्ब की भी वंशावली तैयार करने हेतु अपनी उत्सुकता प्रकट करने लगे.

उत्तराखण्ड जन आन्दोलन के कारण नैनीताल के सभी कार्यालय बन्द पड़े थे. उत्तरकाशी नेहरू माउन्टिनियरिंग इनस्टीटयूट से पर्वतरोहण सम्बन्धी आवश्यक उपकरण भी नहीं पहुॅच पाये थे. बैंक से लेन-देन भी नहीं हो पा रहा था. अतः 20 की अपेक्षा अब 25 सितम्बर को प्रस्थान करने का निश्चय किया गया था. परन्तु अधिक विलम्ब करना उचित न समझकर कर्नल जोशी और अनूप शाह ने दौड़-धूप करके धन की व्यवस्था कर ली तथा 23 को प्रस्थान करने की तैयारी होने लगी. दिन भर कभी तल्लीताल तो कभी मल्लीताल फ्लैट पर आन्दोलकारियों के उत्तर-प्रदेश सरकार के विरूद्ध आक्रोश भरा भाषण सुनता रहा. नैनीताल समाचार द्वारा प्रसारित सांय 6 बजे का सान्ध्य बुलेटिन आकर्षण का विशेष केन्द्र बिन्दु था. 22 के सांय में डॉ. पाठक के घर पर रहा. इस जन आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण वे बहुत व्यस्त थे तथा देर रात में घर वापस लौटे. उनका पुत्र सौमित्र भी हमारे साथ उत्सुकता से व्यस्त था.

23 सितम्बर के प्रातः 6 बजे हम तल्लीताल डाट पर पहुंचे, राजकीय इण्टर कालेज मुनस्यारी के भूतपूर्व भौतिक प्रवक्ता किशन लाल शाह जी भी इस अभियान दल में सम्मिलित होने हेतु डाट पर बस की प्रतीक्षा में थे. विगत 12-13 वर्षों के पश्चात पुनर्मिलन से बड़ी प्रसन्नता हुई. साढ़े छः बजे पार्टी की बस पहुंची, फोटोग्राफी की गई और पाठक जी आदि स्नेही लोगों ने अपनी शुभ कामनाओं सहित अभियान दल को विदाई दी.

दस बजे हम अल्मोड़ा पहुंचे. ग्लोरी रेस्टोरेन्ट में दही-पराठे का नास्ता किया गया. एक अन्य सदस्य प्रसिद्ध छायाकार थ्रीश कपूर भी दल में सम्मिलित हो गये. 12 बजे बागेश्वर स्थित कुमाऊं विकास मण्डल के टूरिस्ट होटल से एक किचन टैन्ट उठाकर हमने किंगकॉंग नाम के एक रेस्टोरेन्ट में भोजन किया. दल के कई सदस्यों द्वारा कुछ आवश्यक व्यक्तिगत वस्तुओं की खरीददारी के कारण बागेश्वर में बहुत विलम्ब हो गया और साढ़े पॉंच बजे हम अन्तिम बस स्टेशन सौंग पहुंचे, जहां खच्चर वाले पहले से ही प्रतिक्षा में थे. आठ नेपाली कुली 22 को ही नैनीताल से भेजे जा चुके थे. कुलियों ने आवश्यक सामान उठाया. दो सदस्य अन्य सामान के साथ वहीं रूक गये तथा अन्य 22 सदस्य अंधेरे में ढाई कि.मी. दूर लोहार खेत से कुमाऊॅं विकास मण्डल के टूरिस्ट रेस्ट हाउस में पहुंचे. वहां मैकतौली ग्लेशियर के नन्दा कुण्ड से वापस लौट रहे एक विकलांग सहित कुछ बंगाली पर्यटक भी थे. हमारे दल के सदस्य बी.सी.पाण्डे और खुशाल सिंह ने बढ़ी तत्परता से स्वादिष्ट खिचड़ी बनाकर खिलाई. हम सब तो सो गये और वो रात भर दूसरे दिन के लिए रोटी बनाते रहे.

24 सितम्बर के प्रातः 4.30 बजे चाय की सीटी लगी और दो-दो उबले अण्डे तथा रोटी नास्ते के रूप में सबको दी गई. तीन सदस्य एक कुली को साथ लेकर आगे बढ़ गये थे तथा पांच बजे मुंह अंधेरे में ही सभी सदस्यों ने प्रस्थान कर लिया. प्रातः कालीन चांदीन रात, उषाकाल की ठण्डी-ठण्डी वायु प्रवाह और घने जंगलों के मध्य हल्की सी चढ़ाई में टेड़े-मेढ़ पथरीले अश्वमार्ग पर डा. रघुवीर चन्द और किशन लाल शाह जी के साथ बातें करते हुए हम 9 बजे धाकुरी शिखर से दो किलो मीटर पूर्व एक खुले चौरस मैदान में पहुंचे. जहॉं अग्रिम दल ने चाय-दलिया बनाकर तैयार किया था. नास्ता लेने के पश्चात् साढ़े ग्यारह बजे हम धाकुरी रेस्ट हाउस पहुंचे. लोहार खेत से धाकुरी दस किमी दूर और समुदतल से 8737 फिट ऊॅचाई पर स्थित है. सन् 1992 में मैकतौली हित शिखर पर चढ़ते समय अल्मोड़ा अभियान दल के चार सदस्यों रतन सिंह, दीपक नेगी, त्रिभुवन सिंह कोंरणा और जगदीश सिंह बिष्ट का दुर्घटना में निधन हो गया था. उनकी स्मृति में यहां ग्रेटाइट के पत्थर पर नाम अंकित किया गया है. हमारे अभियानद दल के लिए एक रेस्टोरेन्ट में भोजन की व्यवस्था की गई थी. सौंग से खच्चर वाले भी पहुंच गये थे. भोजन के बाद धीरे-धीरे नीचे उतरने लगे, अब हम सरयूघाटी छोड़कर पिण्डर घाटी में प्रवेश कर रहे थे. नीचे उम्ला गांव के एक युवक ने ककड़ी खिलाई. उम्ला से एक मार्ग करमी के लिए है. पिण्डारी खण्ड के बुग्यालों से भेड़-बकरी वाले अब नीचे गरम घाटियों की ओर आ रहे थे. डा. चन्द और अनूप शाह जी फोटोग्राफी में वयस्त थे. मैं अकेले आगे बढ़ते हुए चार बजे खाती गॉव पहुंचा. वहॉ च्यूरियाधार निवासी उमेद सिंह मरतोलिया मिला, जो अल्मोड़ा के लामचूर अभियान दल के सदस्यों को पहुंचाकर वापस लौट रहा था. उसकी इच्छा हमारे साथ ट्रेल पास अभियान में आने की थी. परन्तु इस क्षेत्र के सम्बन्ध में विशेष जानकारी न होने के कारण शाह जी ने उसे साथ ले जाना उपयुक्त नहीं समझा.

सन् 1830 में जार्ज विलियम ट्रेल के साथ मार्गदर्शक के रूप में गये सूपी गांव निवासी मलूक सिंह की छठी पीढ़ी में उत्पन्न राम सिंह के साथ ट्रेल पास सम्बन्धी अनेक बातें हुई. परन्तु सभी लोग मनगढ़न्त बातें कहते हुए इस अभियान की कठिनाई और असम्भावना पर ही अधिक सन्देह प्रकट करते रहे. वास्तविकता का ज्ञान किसी को नहीं था. खाती गांव पिण्डर घाटी में धाकुरी से 8 किमी दूर 7370 फिट की ऊॅंचाई पर स्थित है. यहॉं से मैकतौली और सुन्दर बूंगा जाने के लिए लोहे के पुल द्वारा पिण्डर नदी को पार करना पड़ता है. पीले, गुलाबी और लाल रंग की बालियों से लहलहाते चौलाम की फसल से मल्ला दानपुर का यह क्षेत्र बहुत ही आकर्षक लग रहा था. चौलाम की नकदी फसल इस क्षेत्र के लोगों के आय का मुख्य स्रोत है. यहां के अधिकतर लोग भेड़ पालक हैं.

( जारी )

पुरवासी के सोलहवें अंक में डॉ एस. एस. पांगती का लिखा लेख ‘ ट्रेल पास अभियान ‘

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Girish Lohani

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