Lalit Mohan Rayal

ऋषिकेश मुखर्जी की ‘गोलमाल’ यानी बेहद ऊंचे दर्जे का ह्यूमर

ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित गोलमाल (1979) हिंदी सिनेमा की सफलतम फिल्मों में से एक है. शिष्ट हास्य को परदे पर उकेरना…

5 years ago

बहुत बड़ी और क्लासिक फिल्म है ‘छोटी सी बात’

वर्ष 1975 हिंदी सिने-इतिहास में खास तौर पर याद किए जाने लायक साल है. इस वर्ष शोले, दीवार, धर्मात्मा, जमीर,…

5 years ago

समूचा हिंदुस्तान नजर आता है ‘बावर्ची’ फिल्म में

बावर्ची (1972) विघटित होते पारिवारिक मूल्यों की पुनर्स्थापना को लेकर आई एक नए मिजाज की फिल्म थी. तब के दौर…

5 years ago

लड़के फल नहीं खाएंगे, तो कौन खाएगा

[पूर्वकथन: ललित मोहन रयाल की यह सीरीज खासी लोकप्रिय रही है और इसे हमारे पाठकों ने न केवल पसंद किया…

5 years ago

मेहमान बनने का शौक

उसे जान-पहचान में मेहमान बनने का बहुत शौक था. वह इतना भी जरूरी नहीं समझता था कि जान-पहचान बहुत गहरी…

5 years ago

बचपन के बहाने

हमारे कनिष्ठ पुत्र चिरंजीव नचिकेता, ढाई बरस के हैं. वे रोज रात को सोने से पहले जिद करते हैं. उनकी…

5 years ago

फोर्ब्स सूची में आने के लिए सियार सिंगी की तलाश

गाँव-देहात में तब बैंक नहीं खुले थे. साहूकार सूद पर रुपए चलाते थे. सूद की एक तय सीमा रहती थी.…

5 years ago

रंगरूटी में निखरती हनुमंत की जवानी

हनुमंत सिंह के बड़े भाई फौज में थे. उन दिनों वे किसी अफसर के 'खास आदमी' थे. कहने का तात्पर्य…

5 years ago

फेल होने पर भागने का एक ट्रेंड

परीक्षाफल का दिन नजदीक आते ही डर और आशंका का माहौल बनने लगता था. तब रिजल्ट निकलता भी बहुत खौफनाक…

5 years ago

घोर कलजुग इसी को कहते हैं

उन दिनों समाज में नैतिकता का जोरदार आग्रह रहता था. हर किसी पर घनघोर नैतिकता छाई रहती थी. लड़के, अपने…

5 years ago