कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं की ऐतिहासिक प्रेम कथा “राजुला मालूशाही” की पृष्ठभूमि में गया गाना, जो लवराज द्वारा लिखा गया है, अचानक यूट्यूब में धूम मचा रहा है. कुमाऊं क्षेत्र की छोटी आबादी की लोक कथा को हिंदी संगीत के व्यापक पटल में पहुंचाने का यह प्रयास हर प्रकार के बाद-प्रतिवाद के बाद भी स्वागत योग्य है. संक्षेप में समझते हैं राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कहानी – (Story of Rajula Maalushahi)
नवीं शताब्दी में कत्यूरी राजवंश पहले ही सिमट कर रामगंगा के पूर्वी तट बैराठ नगर (चुखौटिया) पहुंच गया था, उसी वक्त राजा दुल्लाशाह पर एक नया संकट नि:संतान होने का भी आ गया, दुलाशाह अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर बागेश्वर संतान प्राप्ति की कामना के साथ पहुंचे. यहीं भोट प्रांत के प्रसिद्ध व्यापारी सुनपत शौका भी अपनी पत्नी के साथ संतान की कामना के लिए बागेश्वर पहुंचे थे. दोनों के बीच मित्रता हुई और अपनी संतानों के विवाह बंधन में बांध लेने के वचन के साथ दोनों दोस्त यहां से विदा हुए.
दुलाशाह के घर एक सुंदर राजकुमार मालू शाह ने जन्म लिया तो सुनपत के घर बेहद खूबसूरत परी राजुला ने जन्म लिया. यहां वक्त का पहिया कुछ तेज घुमा और मालू शाह के जन्म के थोड़े दिनों बाद दुलाशाह की मृत्यु हो गई, मालूशाह की मां राजुला से विवाह को दिए वचन को मन ही मन अपशकून मान इससे बचना चाहती थी लेकिन सुनपत शौक जवान होती राजुला को देख दूल्लाशाह के संदेश का इंतजार कर रहा था. राजुला बहुत खूबसूरत थी उसकी खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक विख्यात हो रहे थे, जिन्हें सुनकर हूण नरेश रिक्खीपाल ने राजुला का विवाह हूण रिखीपाल से करने का वचन दबाव डालकर ले लिया. लेकिन जवान होती राजुला अपनी मां से दुनिया के खूबसूरत राज्य बैराठ और उसके रंगीले बलशाली राजकुमार मालूशाह की गाथा सुन चुकी थी. मन ही मन उनसे अपने विवाह का संकल्प भी ले चुकी थी.
अपने संकल्प को पूरा करने के लिए राजुला भोट से अकेले ही अपने राजकुमार की तलाश में वैराठ नगर के लिए निकल पड़ी, मुनस्यारी होते हुए वह बागेश्वर पहुंची और अपना दुख कफू पक्षी को बता कर, उसके बताए रास्ते से वैराठ पहुंच गई. बैराठ में राजकुमार मालू शाह को राजुला से मिलने की इच्छा के बाद उनकी मां ने बेहोशी की दवा खिला दी गई थी. अपने ख्वाब में देखे राजकुमार से मिलने के संकल्प को राजुला ने जब बैराठ पहुंचकर साकार किया. तब राजकुमार मालू मूर्छित था, राजुला ने अपने सपनों के राजकुमार को अपने मंगनी की अंगूठी पहनाई फिर हूण प्रदेश आकर रिक्खीपाल की कैद से उसे आजाद करने की चुनौती भी दे लिख डाली. तब राजुला रोते-बिलखते वापस भोट प्रदेश आ गई और थोड़ी ही दिनों में हूण नरेश रिक्खीपाल से ब्याहकर दुर्गम हूण प्रांत तिब्बत पहुंच गई.
(Story of Rajula Maalushahi)
मालूशाह को जब होश आया तो उसने राजुला की प्रेम के बंधन की अंगूठी को देखा और चुनौती भरा वह खत भी पड़ा जिसमें राजुला उसे हूण प्रदेश से आजाद करने की चुनौती दे रही थी. मां राज्य की खुशहाली के लिए यह रिश्ता नहीं चाहती थी. लेकिन ख्वाबों में देखी राजुला के बगैर मालू को अपना जीवन असह्य लग रहा था.
प्रेम की पीड़ा में जलते हुए मालूशाह ने अपने राजकुमार के वस्त्रो का त्याग कर जोगी भेष धारण कर लिया और गुरु गोरखनाथ से आशीर्वाद लेकर तंत्र-मंत्र में विजय की शक्ति प्राप्त कर मालू शाह जोगी भेष में रिक्खीपाल के महल में राजुला की मदद से पहुंच गया लेकिन रिक्खीपाल को मालू पर शक हो गया और फिर उसे जहर देकर कैद कर लिया गया. जब महीनों तक मालू का कोई संदेश प्राप्त नहीं हुआ तब मां अपने भाई मृत्यु सिंह और सिदुवा-बिदुवा के साथ.
गोरखनाथ के आशीर्वाद से हूण प्रदेश पहुंचे और तंत्र-मंत्र से शक्तिशाली हूंण रिक्खीपाल पर हमला कर उसका वध किया. राजुला मालूशाही दोनों को आजाद कर वापस वैराठनगर लाए. जहां धूमधाम से उनका विवाह कर दिया एक ऐसी प्रेम कहानी जो जन्म से पहले वचनों में बदली और ख्वाबों में पली बड़ी “राजुला-मालूशाही” जो पिछले 1200 वर्षों से कुमाऊं के लोक में आज भी जिंदा है एक बेमिसाल प्रेम कहानी है.
(Story of Rajula Maalushahi)
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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