बरसात के मौसम के साथ ही शुरू हो गया है उत्तराखंड के पहाड़ों और खेतों में रोपाई का उत्सव, लोकपर्व. हुड़किया बौल में हुड़किया खेतों में काम कर रही महिलाओं के लिए हरु हीत, राजुला मालूशाही और अन्य लोकगाथाएं और लोकगीत गाता है. महिलाएं भी साथ में इन पारंपरिक गीतों और गाथाओं को गाती है और साथ ही साथ खेतों में रोपाई भी करती हैं. इस दौरान खेतों का वातावरण ऐसा लगता है मानो कोई उत्सव हो रहा हो. बच्चे इस दौरान खेतों में खेलते नज़र आते हैं. पुरुषों के जिम्मे रोपाई से पहले बैल चला कर खेतों को रोपाई लायक बनाने का काम होता है. किशोर नौजवान खेतों की मेड़ों को ठीक करते नज़र आते हैं और रोपाई के लिए सबसे जरूरी पानी को व्यवस्थित तरीके से खेतों तक पहुंचाते हैं. (Someshwar Ropai Hudkiya Baul)
कई सीढ़ीनुमा खेतों में एक साथ रोपाई चल रही होती है. सभी लोग और महिलायें इस रोपाई के उत्सव को बड़े चाव से जीते हैं. खेतों और अपनी माटी के प्रति इन सब का प्रेम देखने लायक है. एक दिन में सुबह से शाम तक चलने वाले इस हुड़किया बौल, रोपाई उत्सव को देखने और महसूस करने का अलग ही आंनद है.
हमारे उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की सुंदरतम घाटियों में से एक सोमेश्वर घाटी में आजकल चल रही रोपाई और हुड़किया बौल का आनंद लीजिए और महसूस कीजिए इन फोटोग्राफ्स के माध्यम से.
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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nice photographs. small details needed in each photo as caption.