पिथौरागढ़ जिले के मुख्यालय से लगभग पचास किमी की दूरी पर स्थित है डीडीहाट. डीडीहाट एक एतिहासिक नगर है जिस पर अध्ययन जरूरत है.
अब तक मान्य तथ्यों के अनुसार एक समय डीडीहाट सीरा राज्य की राजधानी सिरकोट के समीप बसा है. यह क्षेत्र सीराकोट के रिका मल्ल राजाओं के अधीन रहा.
राजा हरी मल्ल के समय तक डीडीहाट डोटी साम्राज्य के अधीन रहा था. जब रुद्र चंद के बेटे भारती चंद ने डोटी युद्ध जीता तो डीडीहाट को चंद साम्राज्य का हिस्सा बना लिया.
डीडीहाट में डीडी शब्द कुमाऊनी के डांड और हाट शब्द से बना है. डांड का अर्थ एक छोटी चोटी और हाट का अर्थ बाजार से है. कहा जाता है कि सीराकोट के राजा ठंडियों में यहां धूप सेंकने आते थे और यही एक समतल मैदान पर बाजार भी लगता था. चंद राजाओं ने यह बाजार गंगोलीहाट में स्थानातंरित किया.
डीडीहाट से तीन किमी की दूरी पर मलयनाथ का भव्य मंदिर स्थित है. इस मंदिर को सीराकोट का मंदिर भी कहते हैं जिसे स्थानीय भाषा में सिरकोट मंदिर कहते हैं. मलयनाथ को शिव का ही एक अवतार माना गया है.
मंदिर में लगी सूचना के अनुसार इस मंदिर का निर्माण चौदहवीं सदी में किया गया. इस सूचना के अनुसार :
यह मंदिर चंद राजा ने चौदहवीं सदी में बाद बहादुर चंद ने राजकोट में स्थापित किया. उसी समय मलेनाथ प्रकट हुये उस समय यहां की जनसंख्या न के बराबर थी चंद राजा ने यहां की जनता को बसाया और मंदिर के पुजारी पानुजी को नियुक्त किया गया और मंदिर की देखरेख के लिये मणपति डसीला लोगों को नियुक्त किया गया. इस मंदिर के शिला लेख इलाके के लोग चढ़ाते हैं. यहां हर साल असोज की नवरात्रि चतुर्दशी को मेला आयोजित किया जाता है और मंदिर में पुजारी हर रोज भोग लगाते हैं. यह मंदिर डीडीहाट की एक पहाड़ी पर स्थित है और इसकी दूरी डीडीहाट से तीन किमी है. इस मंदिर में एक चंद राजा के समय से पानी का नौला भी है जिस पानी को सदा भोग के और सफाई के लिये प्रयोग में लाया जाता है.
यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1640 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. आज जिसे सीराकोट कहा जाता है उसे राजा कल्याणमल के 1443 के ताम्रपत्र में कालकोट कहा गया है.
मलयनाथ नाथपंथ के गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे. मलयनाथ के मंदिर प्रांगण में एक गोल और बड़ा पत्थर है मान्यता है कि जो व्यक्ति इसे उठा लेता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.
मलयनाथ मंदिर की कुछ तस्वीरें देखिये :
मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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