सोचने से सब हो सकता है. कुछ भी. अगर हम पूरे विश्वास और भक्ति के साथ सड़क पर पड़े किसी लावारिस पत्थर की पूजा करें, तो उसमें भी ईश्वर उतरकर आ सकता है. सब कुछ हमारे सोचने और यकीन करने पर निर्भर करता है. अगर हम खुद पर यकीन नहीं करेंगे, तो कोई हमारे लिए कुछ नहीं कर सकता, हम पर सिर्फ दया करने के सिवा. मनुष्य सभ्यता बहुत अधिक विकसित हो चुकी, हमने बहुत लंबा इतिहास जी लिया. हमारे पास हैरतअंगेज उपलब्धियों की हजारों कहानियां हैं. लाखों लोग इस संसार में आकर असंभव काम करके जा चुके. वे हमें दिखा चुके कि चाहने पर असंभव से असंभव भी संभव हो सकता है. Self belief is the key to success
आप लोगों ने माउंटेन मैन दशरथ माझी का नाम सुना ही होगा. उन्होंने बिहार के गया शहर के दो ब्लॉकों अत्री और वजीरगंज के बीच सिर्फ हथौड़े और छैनी से काम करके 55 किलोमीटर की दूरी को 110 मीटर लंबी, 9.1 मीटर चौड़ी और 7.7 मीटर गहरी सड़क बनाकर महज 15 किलोमीटर कर दिया. इसके लिए उन्होंने भीषण गर्मी, कंपकंपाती सर्दी या धारासार बरसात की परवाह किए बिना अनवरत 22 साल तक रोज अकेले काम किया. दशरथ माझी की तरह ही और भी न जाने कितने कर्मवीर हैं, जिन्होंने अपने जीवन को संघर्ष की ऐसी दास्तां बना दिया कि पढ़ते-सुनते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं. Self belief is the key to success
देखिए कि महात्मा गांधी ने बिना हथियार उठाए एक देश को आजाद कराने की बात सोची. और ऐसा करके भी दिखाया. दरअसल सोचना पहला कदम है. क्योंकि सोचने के साथ ही तो फैसले का क्षण भी जुड़ा होता है. सोचने को आज हमने पूरी तरह नेगेटिव बना दिया है. हम नकारात्मक बातें सोच-सोचकर डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं.
सारे प्राणी जगत में अगर मनुष्य ने सर्वोच्च स्थान पाया है, तो इसलिए नहीं कि उसके पास सबसे ज्यादा ताकत है, बल्कि इसके लिए कि वह सोच सकता है. वह चांद को देखकर सोच सकता है कि वह एक दिन वहां जाएगा. उसने सोचा और वह वहां गया. जाना बड़ी क्रिया नहीं है. सोचना बड़ी बात है. जाना तो उसी दिन तय हो गया था, जिस दिन उसने सोचा. मैं एक दिन विंबलडन में खेलूंगा और चैंपियनशिप जीतकर अपने देश का नाम रोशन करूंगा – आपको सिर्फ इतना सोचना है. बाकी सब अपने आप होगा.
आपको सोचना है और अपने सोचे हुए पर यकीन करना है. उस पर अडिग रहना है. क्या काम करने के लिए सोचा है, यह बड़ी बात नहीं. वह कुछ भी हो सकता है, क्योंकि मनुष्य परमात्मा की संतान है. जितना ताकतवर परमात्मा है, संतान में भी उतनी ही ताकत छिपी हुई है. कुछ भी सोचा जा सकता है, लेकिन सोचकर उस पर सौ फीसदी यकीन रखना ज्यादा जरूरी है. उसमें कोई समझौता नहीं होना चाहिए. यकीन अगर 99 प्रतिशत भी हुआ, तो सोचा हुआ पूरा नहीं हो पाएगा. वह चाहे कितनी भी आसान बात हो. लेकिन अगर यकीन सौ फीसदी है, तो वह कितना भी असंभव कार्य हो, उसका पूरा होना एक औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं रह जाएगा. Self belief is the key to success
दुनिया में हम जितने भी लोगों को हैरतअंगेज कारनामे करते देख रहे हैं, चकित करनेवाली सफलताएं पाते देख रहे हैं, सब उनके सोचने और उस सोचे हुए पर सौ फीसदी यकीन करने से ही पूरा हो रहा है. सोचने और जो सोचा है, उस पर यकीन करने जैसा कोई दूसरा जादुई कॉम्बिनेशन नहीं. मेडिकल क्षेत्र में दो पद बहुत पॉपुलर हैं – Placebo Effect और Nocebo Effect. इन्हें लेकर दुनियाभर में हजारों अध्ययन हो चुके और सभी में ऐसे नतीजे मिले, जिन्होंने इन प्रभावों को सही बताया है.
प्लेसीबो प्रभाव को जानने के लिए किसी खास रोग से पीड़ित रोगियों के दो ग्रुप बनाए गए. एक ग्रुप को उस रोग की असली दवा दी गई, जबकि दूसरे ग्रुप को दवा बताकर सिर्फ पानी दे दिया गया. रोगियों को बताया गया कि यह एक नई दवा बनाई गई है, जिसका रोगियों को ठीक करने का रेकॉर्ड सौ फीसद है यानी एक भी ऐसा रोगी नहीं, जो इसे खाकर ठीक नहीं हुआ हो. यह बात हर रोगी को इस तरीके से बताई गई कि उन्हें इस बात पर पूरा भरोसा हो जाए कि इस दवा से वे ठीक हो जाएंगे.
अध्ययन में पाया गया कि जिन रोगियों को दवा दी गई थी, वे तो ठीक हो ही गए, जिन्हें दवा बताकर पानी दिया गया था, वे भी सभी ठीक हो गए. वे सभी ठीक इसीलिए हो गए, क्योंकि उन्होंने सौ फीसद यकीन किया कि वे दवा खाकर ठीक हो जाएंगे. नोसीबो प्रभाव के तहत उलटा होता है, इसमें रोगियों को यकीन नहीं होता कि वे दवा से ठीक होने वाले हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें सबसे प्रभावी दवा देने के बावजूद देखा गया कि वे ठीक नहीं हुए हैं. Self belief is the key to success
जीवन में आप किसी भी क्षेत्र में सफलता की चाह रखें और उसके लिए कितना भी प्रयास करें, कितनी भी मेहनत करें, सबसे ज्यादा जरूरी आपका खुद पर भरोसा है कि आप सफलता हासिल कर लेंगे. अगर भरोसा पूरा है, तो उसे दिलवाने वाले सारे कारक यानी मेहनत, किस्मत, अवसर आदि सब अपने आप आपके पक्ष में होने लगते हैं.
-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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