Featured

गंगोलीहाट का लाल चमयाड़ हो या अल्मोड़े का थापचिनी खूब स्वाद होता है पहाड़ी चावल

पहाड़ में खरीफ की मुख्य फसल होती धान जो उपरांउ व तलाऊँ यानि सेरे में बोई जाती. खूब मेहनत मांगती. छोटे खेत मेंड़ में बंधते. पानी से लबालब. बल्या बेर यानि छांट-छांट कर सुखा कर रखे बीजों से पौंध उगती. मिट्टी कीचड़ में धंसे कई कई जोड़ी पैर लाइन वार धान की पौध लगाते. दिनमानभर के काम से बदन थक जाता. फिर बाली आने तक काम ही काम. Rice Varieties in Uttarakhand

कभी धान की पत्तियों में छींटे पड़ जाते तो कभी बाल आने के बखत सफ़ेद बाल आ जाती. धान बुसैला हो जाता, आधा भरा, आधा खाली .कभी कुरमुला पकड़ता. चट्ट धूप में कटने तक निस्वास,

साथ सुपी धान छै भूलि कसी काटूं  धाना. मेर कमर पीड़ा भूलि कसी काटूं धाना

आहार के साथ पहाड़ के सोलह संस्कारों में चावल का किसी न किसी रूप में प्रयोग होता. श्राद्ध कर्म में गोलोकवासी के निमित्त पिंड भी इसी से बनते. रोजाना  भात तो खूब खाया ही जाता.

धोती पहन पकाने व हर किसी का छुआ न खाने का जतन भी इससे जुडा. फिर चावल से खिचड़ी, जौला भी बना तो सिंगल, पुवा व साया जैसे पकवान भी. हर पर्व त्योहार में खीर तो भुने धान ऊखल में कूट सूपे से फटके चूड़े भी. चावल पीस रोटी भी बनी तो छोलिया रोटी भी. चीला, साया या सै, सिरोल, खाजा, खजिया, खिल. सब पहाड़ में उगे धान को ऊखल में कूट निकले चावल से बनता. सिंगल, सै, पुवे तो बासी  और  भी स्वाद लगते वहीं चूड़े, खजिया व सिरोले लम्बे समय तक टिकते.

पहाड़ में उगने वाले धान की 48 किस्मे एटकिंसन (1882) ने बताईं तो नेगी और पंत (1992) ने 120. अब हरित क्रांति के बाद पहाड़ वाले भी मैदानी चावल का भोग लगा रहे. बासमती चावल से गन्धाक्षत हो रहा. पहले साल धान को कूट छिटक बने चावल पिठ्या पर लगाते थे.

सोर में बोये इस धान से पार्थिव भी बनते, चूड़े तथा साया भी. जमाल से भी पकवान और चूड़े बनते. चनौदा के सेला से पार्थिव पूजा होती. लोहाघाट का कत्यूर तो बासमती को टक्कर देता. गंगोलीहाट का लाल चमयाड़, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ का थापचिनी भी खूब स्वाद देता तो गरुड़ -बागेश्वर व बलुआकोट में चाइना फोर. गंगोली का खजिया व लोहाघाट का बडपासो भून कर चबेने के काम आता.

राजुली बेचने के लिए अच्छा माना जाता क्योंकि ये कूटने पे टूटता नहीं. तिलक, तिलकचंदन, अंजन, आनंदी, कामोद, स्वापत, राजभोग, रहमनवा, साही, बिंदुली, निमोई, परफ्रिया कुमाऊं में बोये जाते तो गढ़वाल में अंजनी, उखाड़ा, केरी, कठजेरी, बाकुली, बौनो, चुनी, चिलमिल, बाकुलीसेति, लोबियाल, गंजोलिया, झुमका, झल्दू, रिखो, रिकु, रिक्वा, मखमल, सुकंडी, उगालु व हंसराज मुख्य थे. देहरादून में माजरा की बासमती भी खूब नाम कमाती  थी. धान में अक्सर पुतला लगता तो जिस पात्र में संग्रहण करते उसके ऊपर एक थाली में पानी रख दिया जाता जिससे पुतले उसी में गिर जाएं.

गढ़वाल में धान को भूट कर कूटते हैं जिससे चूड़े और बुखणे बनते हैं. मोटे चावलों को भिगा कर इसे दरदरा पीस लेते हैं जिसे पीटटा कहा जाता है. इसमें गुड़ का घोल मिलाया जाता है फिर तेल में पका कर आरसे बनते हैं जो खूब स्वाद होते हैं. रवाईं जौनपुर में पिसे हुए चावल के सीडे मसूर, गहत, उड़द और अफीम से भर पकाये जाते. Rice Varieties in Uttarakhand

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

21 hours ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

5 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

5 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

5 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

5 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

5 days ago