शिक्षा की बदहाली के प्रतीक बने, हर मौहल्ले में कुकुरमुत्ते सरीखे उगे प्ले स्कूल के आगे पीछे गुजरते आपने नर्सरी राइम खूब सुनी होगी. बा बा ब्लैक सीप की जो चरस मौहल्ले दर मौहल्ले बोई गयी है उसने घरों में ध्वनि प्रदुषण के सिवा कुछ नया नहीं दिया है. Rhymes in Kumaoni
एक बार आधुनिक स्पीकर में फिर मास्टर-मास्टरनी की कर्कश आवाज में गायी जाने वाली इन राइम में कमी है तो मधुरता की. प्ले स्कूल द्वारा प्रमोट इस राइम कल्चर में मां बाप को भी बड़ा छुटकारा दिया है.
बच्चों के हाथ में मोबाइल पकड़ा दो और उसमें नर्सरी राइम के नाम पर कोई भी कार्टून लगा दो घंटों की छुटी पक्की है. बच्चों के मानसिक विकास पर इसके क्या प्रभाव होंगे उसकी किसे फिकर है. Rhymes in Kumaoni
इन प्ले स्कूलों से गुजरते हुए पुराने जमाने के स्कूलों की खूब याद आती है. जहां हमारे बुजुर्गों ने उपलब्ध बिना किसी ताम-झाम के एक से एक बाल-रूचि के अनुरूप रचनाओं को जन्म दिया था.
स्कूलों में गिनती हो या पहाड़ा उनको एक विशेष धुन में सिखाया जाता था ताकि बच्चों की रूचि भी बनी रहे और उनको ज्ञान भी मिले. एक ख़ास किस्म की धुन में गाये जाने वाले आज भी पुराने लोगों के दिलों में नोस्टाल्जिया पैदा करते हैं. Rhymes in Kumaoni
अब अ आ का अक्षर ज्ञान सिखाने के लिए सुनाये जाने वाले इस गीत को ही पढ़िये :
अ आ बच्चू का,
इ ई खिमुली दी,
उ ऊ नथू बू,
ए ऐ पात में दै,
ओ औ काख में भौ,
अं अः सांचि कह.
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कफाल ट्री के विवरणों में अनोखी सुगंध है। पहाड़ों की मनभावन उठान,जंगलों की खुशबू, हतप्रभ कर देने वाले झरने और बलखाती कलकल करती नदियां सब किसी गैर-पहाड़ी व्यक्ति के लिए स्वर्ग है।लगता है कितनी सुहानी होगी जिन्दगी। लेकिन क्या ऐसा है?
Being a Kumaoni I am not aware of many traditions of Kumaon. Kafaltree made me and my family aware about all these traditions. Cheers for Kafaltree ?