उत्तराखंड वीरों की भूमि रही है. यहां के युवाओं में फ़ौज में भर्ती होने का जुनून रहता है. उत्तराखंड में लाखों की संख्या में युवा भारतीय सेना में हैं. लगभग सभी जिलों से युवा सेना में शामिल हैं. सेना के सभी पदों पर उत्तराखंड के लोग बहुत से लोग अलग-अलग सेनाओं में मिलेंगे.
कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के सर्वाधिक रणबांकुरों ने दुश्मन को देश की सरहद से बाहर खदेड़ते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर किया. उत्तराखंड के 75 रणबांकुरे कारगिल युद्ध में शहीद हुए.
पिथौरागढ़ जिला एक ऐसा जिला है जहां के लोगों ने हमेशा भारतीय सेना में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है. पिथौरागढ के लांस नायक जमन सिंह, हवलदार गिरीश सिन्ह सामंत, राइफलमैन जौहार सिंह धामी आदि वीरों की शहादत को कौन भूल सकता है.
भारत की आजादी के बाद विभाजन को लेकर भारत पाकिस्तान में जंग छिड़ गयी थी. इस जंग में भी पिथौरागढ़ के बहुत से वीरों ने भाग लिया. माधो सिंह, पूर्णानंद, जसी चंद, गोविन्द सिंह आदि 1947-48 के भारत पाक युद्ध में शहीद हुये थे. इस युद्ध में पिथौरागढ़ से शहीद होने वाले वीरों की संख्या 68 है.
कौन भूल सकता है 1962 में चीन के धोखे को. 1962 के युद्ध में एक हजार से भी अधिक भारतीय सैनिक शहीद हुये. पिथौरागढ़ जिले से इस युद्ध के दौरान 71 जवान शहीद हुये थे.
चीन के हमले के तीन बरस बाद ही पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया. इस भयावह युद्ध में भारत ने अपने लगभग तीन हज़ार जवान खोये. यह युद्ध भारत जीत गया. भारत की जीत को मजबूत करते हुये पिथौरागढ़ जिले के 59 युवाओं ने अपने प्राण त्याग दिये. 1965 के युद्ध सियालकोट नामक जगह के पास ‘महाराजा के’ नामक स्थान पर शहीद भारतीयों की याद में पिथौरागढ़ में ‘महाराजा के पार्क’ बनाया गया था. इस युद्ध में भारतीयों ने 55 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बना दिया और 33 को मार गिराया. आज भी यह पार्क पिथौरागढ़-झूलाघाट मार्ग पर स्थित है.
1971 में एक बार फिर भारत पाक के बीच जंग छिड़ गयी. इस युद्ध के परिणामस्वरूप ही बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बना. भारतीय सेना के अदम्य शौर्य और साहस ने पाकिस्तानी फौज को नाकों तले चने चबवा दिये. इस युद्ध में लगभग साढ़े तीन हज़ार भारतीय सैनिक शहीद होने का अनुमान है. पिथौरागढ़ जिले से युद्ध में शहीद वीरों की संख्या 76 है.
कारगिल युद्ध में भारत के लगभग पांच सौ जवान शहीद हुये. उत्तराखंड से 75 वीर शहीद हुये थे. इनमें चार शहीद पिथौरागढ़ जिले के थे.
भारत में शायद ही कोई ऐसा आतंकवाद विरोधी गतिविधियों से संबंधित आपरेशन रहा होगा जिसमें पिथौरागढ़ के युवा शामिल नहीं हुये होंगे. फिर वह आपरेशन पवन युद्ध हो, आपरेशन मेघदूत हो या आपरेशन हिफाजत, पिथौरागढ़ के सैनिकों की उपस्थिति सभी जगह देखी जा सकती है.
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