हैडलाइन्स

‘पेगासस’ : एक सफेद पंखों वाला घोड़ा

-मनीष आज़ाद

रिपब्लिक ऑफ सर्विलांस

ग्रीक मिथक में ‘पेगासस’ एक सफेद पंखों वाला घोड़ा है, जो कभी भी कहीं भी जा सकता है. इसी तरह ‘पेगासस’ सॉफ्टवेयर भी कभी भी किसी के भी फोन में प्रवेश कर सकता है. फोन में पेगासस के प्रवेश के बाद आपका फोन आपका नहीं रह जाता. वह पेगासस रूपी घोड़े पर सवारी करने वाले बेलेरोफन (Bellerophon) का हो जाता है. (Pegasus spyware NSO Group)

गार्सिया मार्खेज (García Márquez) ने कहीं कहा है कि  हर व्यक्ति के तीन जीवन होते है-  सार्वजनिक जीवन, निजी जीवन और गुप्त जीवन. अभी तक यह माना जाता था कि गुप्त जीवन के बारे में सिर्फ वह व्यक्ति जानता है, और कोई नहीं. लेकिन आज पेगासस जैसे सॉफ्टवेयर के दौर में यानी ‘निगरानी पूंजीवाद’ (Surveillance capitalism) के दौर में सार्वजनिक जीवन, निजी जीवन और गुप्त जीवन का फर्क खत्म हो चुका है. आपके गुप्त जीवन मे भी आपके ही फोन के माध्यम से सेंध लग चुकी है.

दरअसल पेगासस परिघटना को समझने के लिए हमें पेगासस से थोड़ा परे जाना पड़ेगा.

2001 के बाद जिस ‘डिजिटल क्रांति’ का विस्फोट हुआ, वह मुख्यतः सूचना आधारित है. यानी जितनी ज्यादा सूचना उतनी ज्यादा ताकत. इसलिए कहा जाता है कि पिछली सदी में जो स्थान पेट्रोलियम तेल का था, वही स्थान आज डेटा का है.

किसी व्यक्ति, समूह या समाज के बारे में जितना ज्यादा डेटा यानी सूचनाएं होंगी, उतना ज्यादा उस व्यक्ति, समूह या समाज के भावी व्यवहार का अनुमान लगाया जा सकता है, सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है. (और यदि अनुमान लगाया जा सकता है तो उसे बदला यानी मैनिपुलेट भी किया जा सकता है.)

और फिर इस अनुमान या भविष्यवाणी को संबंधित व्यावसायिक कंपनी को महंगे दामों पर बेच दिया जाएगा. फिर यह कंपनी आपको लक्ष्य करके अपने सामान का प्रचार करते हुए अपने सामान आपको बेच देगी.

इन अथाह सूचनाओं को खरीदने/हासिल करने की क्षमता कुछ ही कंपनियों की होगी, इसलिए जाहिर है हर क्षेत्र में एकाधिकार स्थापित होता जाएगा, जो आज हम हर क्षेत्र में देख रहे हैं.

यानी भविष्य में हमारा व्यवहार क्या होगा, यह हमें नहीं पता, लेकिन डेटा खनन (deta mining) करने वाली गूगल-फेसबुक जैसी विशाल कम्पनियां इसे जानती हैं. यानी हमारा भविष्य अब हमारे हाथ मे नहीं बल्कि इन डिजिटल कंपनियों की मुट्ठी में बंद है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (Machine Learning) के लिए सारा डेटा हम उन्हें विभिन्न सोशल साइट्स और गूगल के माघ्यम से फ्री में उपलब्ध करा रहे हैं, और फिर यही टेक्नोलॉजी विभिन्न तरीको से हमारा सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कत्लेआम कर रहीं हैं.

‘सर्विलांस कैपिटलिज्म’ जैसी बेहद महत्वपूर्ण किताब लिखने वाली ‘शाशना जेबाफ’ (Shoshana Zuboff) इसे धारदार तरीके से यों व्यक्त करती हैं- ‘हम महज वस्तु हैं जिससे गूगल अनुमान फैक्ट्री (Google’s prediction factories) अपने लिए  कच्चा माल निकालती है. हम भविष्य में कैसा व्यवहार करेंगे, इसका पता लगाना ही गूगल उत्पाद है. लेकिन यह उत्पाद हमें नहीं बल्कि दूसरी व्यावसायिक कंपनियों को बेच दिया जाता है. हम दूसरों के लिए महज संसाधन का काम करते हैं.’

यही आज का बिजिनेस मॉडल है और यही ‘सर्विलांस कैपिटलिज्म’ है.

दुनिया की तमाम सरकारों ने इसी बिज़नेस मॉडल से सीख लेते हुए अपने लिए ‘सर्विलांस राजनीतिक मॉडल’ विकसित किया है. यानी जिस पार्टी या नेता के पास उसके विरोधियों और जनता के व्यवहार के बारे में जितनी ज्यादा सूचनाएं होंगी अपनी सत्ता को वह उतना ही ज्यादा सुरक्षित रख पायेगा. भारत और अमेरिका के चुनावों में कैम्ब्रिज अनालिटिका (Cambridge Analytica) ने जिस तरह फेसबुक के डेटा का इस्तेमाल चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया है, वह इसका ज्वलंत उदाहरण है.

यानी बड़ी बिज़नेस कंपनियों और राजनीतिक सत्ताओं का गठजोड़ आज उस स्तर तक पहुँच चुका है कि पूरी दुनिया मे लोकतंत्र स्थाई रूप से ‘हैक’ हो चुका है. यानी आज हिटलर की तरह लोकतंत्र को खत्म करने की जरूरत नहीं है, बल्कि ‘लोकतंत्र’ के माध्यम से ही लोकतंत्र का गला घोंटा जा सकता है.

यानी पेगासस जैसे साफ्टवेयर इस ‘सर्विलांस कैपिटलिज्म’  की ‘नाज़ायज़’ नहीं बल्कि जायज़ औलाद है. (Pegasus spyware NSO Group)

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Sudhir Kumar

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