नानकमत्ता में नानकसागर डैम के पार के गॉंव

बाउली साहिब (नानकसागर डैम) की इन दिलकश और मनमोहक तस्वीरों के इस छोर से कभी नाव लेकर आप अगर दूसरे छोर पर उतरें तो आपको समझ में आएगा कि डैम के इस तरफ की जिंदगी और डैम के उस पार की जिंदगी में क्या फर्क है. बाउली साहिब, नानकमत्ता अपने पर्यटन के लिए जाना जाता है. विशालकाय क्षेत्रफल में फैले इस डैम का अंत देखने के लिए अगर आप नजर उठाएँ तो आपको क्षितिज पर पानी और आसमान मिलते हुए नजर आएँगें. नानकमत्ता की तरफ से देखने पर ऐसा लगता है कि जहॉं से डैम शुरू हुआ है बस वहीं जमीन समाप्त हो गई है. विशाल समुद्र सा दिखने वाला नानकसागर डैम भारत देश की दक्षिणी सीमा सा लगता है जहॉं से सीमा समाप्ति के बाद सिर्फ हिंद महासागर नजर आता है और कुछ नहीं. शायद इसी वजह से कुछ लोग मजाक में डैम के उस पार पड़ने वाले क्षेत्र को श्रीलंका कहते हैं. Nanakmatta Dam and nearby Villages

नानकसागर पार कर नाव से उतरते ही पहला गॉंव पड़ता है देवीपुर. यह गॉंव सिक्ख बहुल है और जंगल से सटा हुआ है. आगे बढ़ने पर गॉंव चैतुआखेड़ा आता है. इससे और कुछ आगे निकलने पर ग्राम ऐचिता-बिही पड़ता है. ऐचिता-बिही गॉंव में कुमाऊँनियों के साथ-साथ थारू जनजाति के लोग दशकों से रह रहे हैं. कुमाऊँनियों के निवास क्षेत्र को अमूमन कैनाल कह कर संबोधित किया जाता है. किसी से पूछने पर यदि उत्तर मिले कि कैनाल में हूँ तो समझ जाइयेगा कि वह इंसान किसी कुमाऊँनी के घर में है. पक्के मकानों के साथ-साथ आज भी आपको खपड़ैल से बने घर इन गॉंवों में नजर आ जाएँगें. शाम को ढलते सूरज के साथ ही गौधुलि उड़ाती हुए गायें और भैंसों के कई-कई झुंड वापस अपने घरों की ओर विचरण करते दिख जाएँगे. पूरब और पश्चिम में जंगलों से घिरे ये गॉंव प्राकृतिक संसाधनों में भले ही अमीर हों लेकिन विकास के मामले में आज भी गरीब ही हैं.

लगभग 10-12 साल पहले तक भी नानकमत्ता से इन गॉंवों तक पहुँचने का सिर्फ एक ही साधन था और वह था नाव. नाव के द्वारा ही नानकसागर को पार कर इन गॉंवों तक पहुँचा जा सकता था. मई-जून की भीषण गर्मी में जरूर सागर के सूख जाने पर लोग पैदल इन गॉंवों तक पहुँच जाया करते थे. 2007-08 के लगभग में जंगलों से होती हुई एक सड़क से इन गॉंवों को जोड़ा गया. नानकमत्ता-झनकट-द्यूरी-गांगी गिधौर-जीरोबंधा-थारू गिधौर-सुतलीमठ चौकी से होती हुई ऐचता-बिही को जोड़ने वाली सड़क लगभग 30 किलोमीटर लंबी है. वहीं दूसरी ओर नाव से नानकसागर पार की दूरी लगभग 2 नॉटिकल मील (लगभग 4 किलोमीटर) है. सड़क के हाल ऐसे की एक बार बनी तो दुबारा प्रशासन ने उस ओर नजर भी नहीं उठाई. आज हालात ये हैं कि गड्डों में सड़क है या सड़क में गड्डे पहचान पाना मुश्किल है. कमोबेश यही हाल गॉंव के अंदर की सड़कों का भी है. बहुतायत सड़कें कच्ची ही हैं और जहॉं कभी डामर था भी तो आज सिर्फ गड्डे हैं और बरसात में उनमें भरा पानी सड़क पर चलना दूभर कर देता है. Nanakmatta Dam and nearby Villages

गॉंव के लिए सबसे बड़ा बाजार नानकमत्ता ही है और नानकमत्ता तक आने के लिए कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है. आप अपने निजी वाहन से ही नानकमत्ता आ सकते हैं या नाव के द्वारा सागर पार कर के. गॉंव वाले बताते हैं कि एक टैम्पो जरूर चलता है गॉंव से नानकमत्ता के लिए लेकिन हमेशा उसके भरोसे भी नहीं रहा जा सकता. गॉंव में एक सरकारी स्कूल है जो फिलहाल हाईस्कूल तक है और काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. मास्टरों का भी अकाल है. 2-3 प्राइवेट स्कूल हैं लेकिन उनकी दशा भी बहुत अच्छी नहीं है. प्राथमिक चिकित्सा के नाम पर एक खंडहर सा भवन जरूर है लेकिन डॉक्टर तो छोड़िये उसमें कोई कम्पाउण्डर तक नहीं है. यदि कोई आपातकालीन स्थिति आन पड़े तो इलाज के लिए नानकमत्ता या खटीमा ही दौड़ना पड़ता है. जमीनी जल स्तर अच्छा होने की वजह से गॉंवों में पानी की समस्या नहीं है लेकिन बिजली का आना-जाना लगा रहता है और गलती से आँधी तूफान की चपेट में आकर कोई बड़ा फॉल्ट आ गया तो समझो हफ्ते भर के लिए बत्ती गुल.

आपने पहाड़ों से पलायन सुना होगा लेकिन डैम पार के गॉंव तराई में पलायन का एक नायाब उदाहरण हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और परिवहन जैसी बुनियादी जरूरतों के अभाव में सैकड़ों परिवार पलायित होकर नानकमत्ता व आसपास के क्षेत्रों में बस गए हैं. कई परिवार तो अपने बच्चों की शिक्षा के चलते नानकमत्ता में ही किराये के घरों में रह रहे हैं. पहाड़ों में आपने खेती को नुकसान पहुँचाने वाले जानवरों के बारे में बहुत सुना होगा लेकिन वही समस्या डैम पार जंगल के किनारे बसे गॉंव भी झेल रहे हैं जहॉं बंदर, लंगूर, नीलगाय आदि खड़ी फसल को बर्बाद कर जाते हैं. जंगल के अंदर बसे दो गॉंवों ‘ठेरा’ और ‘गोठ’ में तो लोगों को हाथी और भालुओं की समस्या से तक जूझना पड़ता है. इन गॉंवों के कई लोगों की मौत हाथियों द्वारा किये गए हमले की वजह से हो चुकी है.

बरसातों में लगभग बाढ़ की स्थिति से जूझने वाले नानकसागर पार के ये गॉंव आज भी बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, सड़क और परिवहन की बाट जोह रहे हैं. नानकमत्ता के अलग विधानसभा और नगरपालिका बनने के बावजूद ऐचिता-बिही जैसे गॉंव आज भी खुद को काफी पिछड़ा हुआ पाते हैं. नानकमत्ता और डैम पार के इन गॉंवों के बीच सिर्फ नानकसागर का फासला है लेकिन तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो नानकमत्ता अच्छा-खासा विकसित कस्बा है और डैम पार के गॉंवों की हालत किसी आदिवासी क्षेत्र से कम नहीं है. नानकमत्ता से देखने पर नानकसागर डैम से अधिक सुंदर कुछ नजर नहीं आता लेकिन नानकसागर पार करते ही तथाकथित विकास की सारी कलइयाँ खुल जाती हैं. Nanakmatta Dam and nearby Villages

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नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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