(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120 बरस पहले के कुमाऊं-गढ़वाल के बारे में बहुत दिलचस्प विवरण पढ़ने को मिलते हैं. प्रस्तुत है इस किताब से एक क़िस्सा.)
(Winters During British Era)
बहुत समय पहले की बात है, जब अंग्रेजों ने नैनीताल की खूबसूरत वादियों को देखा तो इसे एक प्रशासनिक केंद्र बनाने का फैसला किया. नैनीताल केवल एक पर्यटन स्थल नहीं था, बल्कि गर्मियों में सरकारी कामकाज के लिए एक महत्वपूर्ण जगह बन गया.
हर साल अप्रैल का महीना आते ही, नैनीताल की घाटियाँ जाग उठतीं. पहाड़ों पर बर्फ पिघलती और सरकारी कर्मचारी, अधिकारी और उनके परिवार गर्मियों के लिए नैनीताल पहुँचते. यहाँ गवर्नमेंट सचिवालय, बोर्ड ऑफ रेवेन्यू, पुलिस महानिरीक्षक का कार्यालय, और कई अन्य विभागीय दफ्तर स्थापित किए गए. इन कार्यालयों का मकसद था — गर्मियों के मौसम में बेहतर तरीके से जनता की सेवा करना.
इन दफ्तरों के प्रमुख भवन नैनीताल के विभिन्न हिस्सों में बसे हुए थे.
सचिवालय भवन मल्लीताल के ऊपर, चर्च ऑफ सेंट जॉन के पास बना था.
वहीं कुमाऊँ मंडल के आयुक्त का कार्यालय स्टेशन के निचले छोर पर बसा था.
सबसे खास था जिला न्यायालय भवन, जो नया और भव्य था.
दिनभर अधिकारी फाइलों में खोए रहते और शाम होते ही माल रोड पर चहल-पहल शुरू हो जाती. ठंडी हवाएँ नैनीताल झील को छूतीं और सरकारी अधिकारी अपने परिवारों संग झील की सैर पर निकल जाते. यह समय नैनीताल की जिंदगी का सबसे सुनहरा समय होता.
लेकिन जैसे-जैसे अक्टूबर का महीना नजदीक आता, पहाड़ों पर ठंड बढ़ने लगती. बर्फीली हवाएँ बहने लगतीं और तब नैनीताल के सरकारी दफ्तर हल्द्वानी की ओर रुख करते.
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हल्द्वानी, जो तराई और भाबर क्षेत्र का प्रवेश द्वार था, सर्दियों में कुमाऊँ प्रशासन का मुख्य केंद्र बन जाता. हल्द्वानी की जमीन सपाट थी, यातायात की सुविधा अच्छी थी और तराई-भाबर के गाँवों तक अधिकारियों के लिए पहुँचना आसान था. अधिकारी हल्द्वानी में बैठकर किसानों की समस्याएँ सुनते, जमीनों का हिसाब-किताब करते और जंगलों की देख- रेख का काम करते.
हल्द्वानी का बाजार भी इन महीनों में गुलजार हो जाता. स्थानीय लोग तराई और भाबर की तरफ आ जाते, और प्रशासनिक कामकाज की रफ्तार तेज हो जाती. गाँव के लोग हल्द्वानी पहुँचते, अपनी शिकायतें दर्ज करवाते और सरकारी सहायता लेते.
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इस बदलाव का सबसे बड़ा फायदा यह था कि सर्दियों में पहाड़ों से लोग तराई में आकर रहते थे, जिससे हल्द्वानी में दफ्तरों का होना सबके लिए सुविधाजनक हो जाता. सरकारी कामकाज भी बिना किसी रुकावट के चलता रहा.
इस तरह, नैनीताल और हल्द्वानी के बीच का यह सफर हर साल दोहराया जाता रहा. गर्मियाँ नैनीताल की हसीन वादियों में बिततीं, तो सर्दियाँ हल्द्वानी की हलचल में. यह कहानी केवल सरकारी दफ्तरों की नहीं थी, बल्कि एक ऐसे संतुलन की थी, जो प्रशासनिक व्यवस्था और आम जनता के बीच बना हुआ था.
आज भी, नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ इस कहानी को जीवित रखे हुए हैं. (Winters During British Era)
रुद्रपुर की रहने वाली ईशा तागरा और देहरादून की रहने वाली वर्तिका शर्मा जी. बी. पंत यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंतनगर में कम्युनिटी साइंस की छात्राएं हैं, फ़िलहाल काफल ट्री के लिए रचनात्मक लेखन कर रही हैं.
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