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मुनस्यारी से मदकोट के रास्ते में पड़ने वाले एक स्कूल के बहाने

पिथौरागढ़ की मुनस्यारी (Munsyari) तहसील के सुदूर दरकोट नामक स्थान पर पिछले बाईस वर्षों से एक स्कूल चल रहा है. इस स्कूल का नाम है मार थोमा (Mar Thoma) ग्राम ज्योति मिशन विद्यालय. मुनस्यारी-मदकोट मार्ग पर स्थित इस दुर्गम स्थान पर चलने वाला यह स्कूल आसपास के अनेक गाँवों के बच्चों को स्तरीय शिक्षा प्रदान कर रहा है.

मार थोमा ग्राम ज्योति मिशन विद्यालय की स्थापना वर्ष 1997 में हुई थी. यह एक मिशनरी स्कूल है यानी इसका संचालन ईसाई मिशनरियों द्वारा किया जाता है. ऐसे स्कूल अमूमन सेंट फलां फलां के नाम से चलते हैं. मिसाल के तौर पर नैनीताल के सेंट मैरी कॉन्वेंट या सेंट जोसेफ स्कूल का नाम लिया जा सकता है.

जिन मार थोमा के नाम पर यह स्कूल बनाया गया है, आज उनका जन्मदिन है. आइये जानते हैं कौन थे ये महापुरुष.

पहली शताब्दी में यहूदी समुदाय को बाइबिल के बारे में बताने के लिए थॉमस द अपोसल का आगमन हुआ था. कुछ स्थानीय लोग इसके बाद नाजरेथ के ईसा के अनुयायी हो गए और उन्हें नसरानी कहा गया. उनके चर्च को मलंकारी चर्च कहा गया.
ये लोग एक विशिष्ट हिब्रू-सीरियाई परम्परा के ईसाई धर्म को मानते थे जिसमें अनेक यहूदी और भारतीय परम्पराएं समावेशित थीं.

केरल के इस मलंकारा चर्च से सम्बद्ध और संत थॉमस के अनुयायी ईसाइयों के लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए पहले स्थानीय मेट्रोपोलिटन बिशप थे मार थोमा प्रथम. इन्हें वालिया मार थोमा यानी मार थोमा महान भी कहा जाता है.

वे मालाबार के अविभाजित ईसाई समुदाय के अंतिम आर्चडीकन थे. उन्हें यह सम्मान कुल तीस साल की आयु में वर्ष 1653 में प्राप्त हो गया था.

उनकी मृत्यु के बाद यह समुदाय मलंकारा सीरियाई चर्च से अलग हो गया और मार थोमा सीरियन चर्च ऑफ़ मालाबार कहलाया. इसके प्रमुखों को मार थोमा ही कहा गया.

उन्नीसवीं सदी में शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले इस समुदाय के प्रमुख टाइटस प्रथम मार थोमा थे. उनका जन्म 20 फरवरी 1843 को हुआ था. उनकी प्रेरणा से केरल के मलयाली मूल का यह छोटा सा समाज देश के दूरस्थ दूर स्थित इलाकों में शिक्षा के प्रसार में आज भी संलग्न है.

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