वैदिक काल में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, ज्ञानी और तपस्वी हुए, जिन्होंने अनूठे ढंग से साधना की और अलग-अलग विद्याओं में निपुण हुए. रामायण, महाभारत में हमें एक से बड़े एक योद्धा मिलते हैं. वे ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते थे, खुले आकाश के नीचे प्रकृति के बीच बैठ साधना करते थे. चूंकि तब वातावरण शुद्ध था, उन्हें वहां से भरपूर प्राणवायु मिलती थी. वे एक ही श्वास में प्राण तत्व से सराबोर हो जाते थे. प्रकृति अपनी विलक्षण शक्तियां उन पर लुटाती थी. पानी, अनाज, फल, सब्जियां, घी, दूध-दही तब अपने विशुद्ध रूप में लोगों को ऊर्जा से परिपूर्ण करते थे. यह ऊर्जा उन्हें मुश्किल से मुश्किल शारीरिक और मानसिक कार्य करने की शक्ति देती थी. वे जितना काम करते थे उतना उसमें और दक्ष होते जाते थे. हमें अर्जुन जैसे धनुर्धर और भीम जैसे योद्धा यूं ही नहीं मिल गए. हमें योग सिखाने वाले पतंजलि जैसे महर्षि ऐसे ही नहीं मिल गए. महावीर और बुद्ध तो हमें एक संपूर्ण जीवन-पद्धति ही दे गए, जो आज भी हमें रास्ता दिखा रही है.
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जाहिर है, एक ही जीवन काल में इस उच्च क्वॉलिटी का और इतना सारा काम करने के लिए इन वैदिक कालीन महान विभूतियों को मानसिक एकाग्रता की बहुत जरूरत पड़ी होगी. यह उनका सौभाग्य था कि वैसी एकाग्रता तब वातावरण का ही एक अविभाज्य हिस्सा थी. उन्हें ध्यान के लिए किसी अलग जगह की तलाश नहीं करनी पड़ती थी. जहां बैठ जाओ, वहीं प्रकृति की शक्तियां बिखरी होतीं. बैठते ही ध्यान लग जाता. वैदिक काल में भारत की जनसंख्या करीब 10 लाख थी. आज अकेले दिल्ली की जनसंख्या 1.9 करोड़ है यानी 190 लाख. दिल्ली की जनसंख्या ही तब की भारतीय जनसंख्या से 19 गुना ज्यादा है. जितनी ज्यादा जनसंख्या, उतनी ज्यादा विचार तरंगें और उतना ज्यादा मानसिक व्यवधान.
बात सिर्फ विचार तरंगों की ही नहीं, व्यवधान पैदा करने वाली दूसरी चीजों की भी है. महर्षि वाल्मीकि और कबीर के हाथ में अगर हम मोबाइल थमा देते, तो हो सकता है कि वे दोहे लिखने की बजाय कैंडी क्रश खेल रहे होते. वैदिक काल में लोग महान कार्य कर पाए, क्योंकि तब उनके जीवन में रुकावटें नहीं थीं. जी हां, मोबाइल को अगर आप ठीक से मैनेज नहीं कर सकते, तो वह आपके जीवन की सबसे बड़ी रुकावट बन सकता है, क्योंकि वह आपको कोई भी काम पूरी एकाग्रता से नहीं करने देता. निस्संदेह मोबाइल हमारी बहुत अहम जरूरत बन चुका है. दफ्तर के काम, मीटिंग, खबरें पढ़ना, मैसेजिंग, मनोरंजन, कॉल्स, स्कूल-कॉलेज की क्लास अटैंड करना- जीवन का लगभग हर जरूरी पहलू मोबाइल से जुड़ गया है. किसी काम को श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें जिस स्तर की एकाग्रता चाहिए, मोबाइल उससे हमें महरूम करता है. मोबाइल के लगातार इस्तेमाल से न सिर्फ आंखें थक जाती हैं, बल्कि दिमाग भी पस्त हो जाता है. एक थका हुआ दिमाग नया चिंतन नहीं कर सकता. वह हमें चिड़चिड़ा जरूर बना देता है.
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यह समझें कि दो बातें आपको एकाग्र होकर काम करने से रोकती हैं – लोगों की विचार तरंगे और मोबाइल, जिसे आप चाहकर भी नहीं छोड़ सकते, क्योंकि उससे आपकी रोजी-रोटी जुड़ गई है. इन दोनों व्यवधानों से निजात पाने का एक बहुत कारगर उपाय है- ब्रह्म मुहूर्त में उठना. ब्रह्म मुहूर्त एक ऐसा समय है, जब ज्यादातर लोगों के सोए होने से वातावरण में विचार तरंगें नहीं होतीं. ऐसे शांत माहौल में आप सहज ही एकाग्रचित्त होकर काम कर सकते हैं. यही वह समय भी है, जब आप निश्चिंत होकर मोबाइल को अलग छोड़ सकते हैं, क्योंकि इतनी सुबह आपको कोई याद नहीं करता. यानी आप अगर चाहें, तो सुबह 4 बजे से लेकर 8 बजे तक अपने कई जरूरी काम कर सकते र्हैं, क्योंकि सारे व्यवधान 8 बजे के बाद ही शुरू होते हैं. तब लोगों के जाग जाने के कारण वातावरण में विचार तरंगें भी भरने लगती हैं और दुनियादारी वाले काम भी शुरू हो जाते हैं. लेकिन आप खुद सोचें कि आपको रोज चार घंटे का क्वॉलिटी टाइम मिला, तो आपका जीवन कितनी जल्दी रूपांतरित हो सकता है.
याद रखें कि ब्रह्मांड की प्रज्ञा यानी Cosmic Intelligence ही वह चीज है, जो ब्रह्मांड को चला रही है. रोज ब्रह्म मुहूर्त में उठने से आपमें स्वत: ही ब्रह्मांडीय प्रज्ञा विकसित होने लगती है. यह प्रज्ञा आपको ब्रह्मांड के होने का मकसद समझाती है, आपको दुनिया को चलाने वाली शक्तियों की गति समझ आएगी, आपके सम्मुख सृष्टि के सारे भौतिक रहस्य खुलने लगेंगे. निश्चय ही तब आप भूलवश भी डिप्रेशन का शिकार न होंगे, क्योंकि आप उम्मीद, आकांक्षाओं, जीत और सफलता जैसे इमोशंस के मालिक बन जाएंगे और जिंदगी हूबहू वैसे ही जी पाएंगे, जैसे कि आप जीना चाहते हैं. ब्रह्मांड आपके लिए जिंदगी के जादुई खजाने खोल देगा. आप एक चिर आनंद की अवस्था में प्रवेश कर जाएंगे.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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