क्या कभी आपने खुद से यह सवाल पूछा है कि आप यूं दौड़ क्यों रहे हैं? आपका मकसद क्या है? आप क्या पाना चाहते हैं? कहां पहुंचना चाहते हैं? आपको यह कैसे समझाया जाए कि अगर आप पैसे, पावर और रुतबे जैसी चीजों के पीछे भाग रहे हैं, तो आपको कई जन्मों तक यूं भागते ही रहना पड़ सकता है. क्योंकि इनका कोई अंत नहीं. अगर आप एक बार अमेरिका का राष्ट्रपति बन जाते हैं, तो फिर दूसरी बार भी बनना चाहते हैं.
(Mind Fit 44 Column)
वैसे आप अगर खुशी-खुशी भाग रहे होते, तो भी कोई बात न थी, क्योंकि आदमी के भागने का मूल उद्देश्य तो खुशी पाना ही होता है. अगर आप खुश हैं और भाग रहे हैं या आप भाग रहे हैं और खुश हैं, तो भी दोनों ही स्थितियां अच्छी मानी जाएंगी. लेकिन अगर आप भागे भी जा रहे हैं और दुखी भी हैं, तब जरूर आपको रोककर समझाने की कोशिश की जानी चाहिए. तब सबसे पहले तो आपसे यही सवाल पूछा जाना चाहिए कि भई, भाग क्यों रहे हो? जहां जाना है, जहां पहुंचना है, वहां आराम से पैदल चलते हुए नहीं पहुंच सकते क्या? अगर यात्रा का भी थोड़ा आनंद ले लोगे, थोड़ा सूर्योदय और सूर्यास्त के मनोरम दृश्यों को आंखों में भरते हुए चलोगे, राह के दोनों ओर फैली प्रकृति को अपनी आत्मा में जज्ब करते चलोगे, तो इससे जीवन का जायका थोड़ा और बढ़ने ही वाला है, कम नहीं होने वाला. क्या यह जरूरी है कि किसी सुंदर चीज को पाने के लिए हम किसी दूसरी सुंदर चीज से महरूम रहें?
निस्संदेह सफलता अपने में एक खूबसूरत शै है, उसे हमारे जीवन में होना ही चाहिए, लेकिन उसके होने के लिए दूसरी सुंदर चीजों का जीवन में न होना क्यों अनिवार्य हो. क्या कहीं आप इस गलतफहमी का शिकार तो नहीं कि सफलता के लिए कोई न कोई कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. आजकल लोग तनाव को भी जीवन का एक सहज हिस्सा मानकर निरंतर डिप्रेशन और घबराहट में जीवन जी रहे हैं. एक ऐसी स्थिति भी तो संभव है, जहां आप हर पल गहरे आनंद से भरे हुए रह सकते हैं. इसके लिए आपको सबसे पहले तो जीवन जैसा है, उसे उसी रूप में पूरी तरह स्वीकार करना होगा.
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अपने जीवन की मौजूदा स्थितियों को पूरे मन से स्वीकार करते ही आपके मन में कोई प्रतिरोध नहीं बचेगा. संघर्ष, चिंता, घबराहट जैसे सभी भाव अपने आप तिरोहित हो जाएंगे. वे रहते ही तब तक हैं, जब तक कि हम मौजूदा स्थितियों का प्रतिरोध करते हैं. स्थितियों को स्वीकार करते ही सभी किस्म के दबाव और तनाव दूर चले जाते हैं. आप खुद में तुरंत एक ताजगी, एक स्फूर्ति और गजब की सकारात्मक ऊर्जा महसूस करने लगते हैं. मन की यही वह स्थिति होती है, जो आपको सफलता दिलाने में निर्णायक भूमिका अदा करती है. आपने अनुभव किया होगा कि सकारात्मक ऊर्जा से भरे, मुस्कराकर बात करने वाले, संयम और आत्मनिर्भर लोग हमेशा आपको नकारात्मक बात करने वाले, तनाव और घबराहट से भरे और दूसरों पर निर्भर रहने वाले लोगों की तुलना में ज्यादा पसंद आते हैं. सच यह है कि आप ही नहीं, बाकी लोग भी ऐसे ही लोगों को पसंद करते हैं. इसीलिए अगर आप चाहते हैं कि दूसरे आपको पसंद करें, तो आप दूसरों में खुद जिन बातों – सकारात्मक ऊर्जा, मुस्कान से खिला हुआ चेहरा, आत्मविश्वास से लबरेज व्यक्तित्व और आत्मनिर्भर सोच को पसंद करते हैं, उन्हें खुद में भी पैदा करना होगा.
जीवन में सफलता की ओर आपकी यात्रा शुरू ही तब होती है, जबकि आप अपने मौजूदा जीवन को पूरे मन से, खुशी से स्वीकार कर लेते हैं. ऐसा करने पर ही आपके दिमाग में वह शांति पैदा होती है, जिसमें आप चीजों को साफ-साफ देख पाते हो कि जीवन को समृद्ध बनाने के लिए आपको क्या-क्या काम करने हैं, जीवन में क्या-क्या बदलाव लाने हैं, स्वस्थ शरीर के लिए, नौकरी में निरंतर तरक्की के लिए, परिवार में पत्नी और बच्चों की खुशी के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं. आप इस पर मनन करते हैं कि जिन बदलावों को आप चाहते हैं, उनके लिए आपको नियमित जीवन में क्या-क्या करना होगा.
आप छोटे-छोटे लक्ष्य बनाते हैं और उन्हें प्राप्त करते जाते हैं. आपका खुद पर यकीन बढ़ता जाता है. आपको समझ आने लगता है कि बदलाव लाने की प्रक्रिया में दिमाग क्या-क्या मुश्किलें पैदा करने की कोशिश करता है. आपमें आए बदलावों को देखकर आपके परिवार के लोग भी खुश होते हैं. उन्हें आपसे जो सकारात्मकता मिलती है, वह उन्हें भी सकारात्मक बनाती है और वे भी परिवार की खुशहाली में अपना योगदान देना शुरू कर देते हैं. इस तरह आपके जीवन में सकारात्मकता का एक चक्र शुरू हो जाता है, जो आपको निरंतर बेहतर स्वरूप की ओर ले जाता है.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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