छात्र जीवन में मेरा एक सहपाठी था, जिसके पिता किसान थे और शहरी मानदंडों के हिसाब से गरीब. वह सहपाठी गांव के स्कूल से बारहवीं करने के बाद कॉलेज में आया था और कॉलेज की आबोहवा से बहुत प्रभावित हो गया था. उसके लिए यह एक नई दुनिया थी, जहां वह बहुत सारे अपने से बेहतर और अच्छे घरों से आने वाले लड़कों-लड़कियों के साथ दोस्ती कर सकता था. वह उनके सामने अपनी बातों, अपने पहनावे और हाव-भाव के जरिए यह दिखाने की कोशिश करता था कि वह पारिवारिक पृष्ठभूमि और संपन्नता के मामले में उनके बराबर ही है, कमतर नहीं. इस दिखावे के कारण वह हमेशा तनाव में रहता था, क्योंकि सत्य को कब तक छिपाकर रखा जा सकता है. वह जब अपने कमरे से तैयार होकर निकलता, तो यह सुनिश्चित करता कि पैंट-शर्ट प्रेस की हुई हों, वे कहीं से मैले या फटे हुए न हों. यहां तक कि वह अपने मोजों का भी ध्यान रखता कि वे फटे हुए न हों, क्या मालूम कहीं निकालने पड़ जाएं, तो सचाई सामने आ जाए. वह अपनी जेब में हमेशा साफ-सुथरा रूमाल रखता. बाजार में वह सस्ती दुकानों में नहीं जाता, अपने से ज्यादा गरीब छात्रों के साथ नहीं घूमता, पर्स में हमेशा बड़े नोट रखता. मैं देखता कि सुबह उठने से लेकर रात सोने तक उसे बस एक ही बात सालती रहती कि उसके दोस्तों को उसकी गरीबी की भनक न लग जाए. चूंकि वह मेरा रिश्तेदार था और उसकी पारिवारिक स्थिति को भलीभांति जानता था, इसलिए मेरे सामने वह कोई दिखावा नहीं करता था. कॉलेज जाने से पहले वह तैयार होकर मेरे सामने खड़ा हो जाता और कुरेद-कुरेदकर मुझ से पूछता कि वह कैसा लग रहा है, उसे देखकर कोई यह तो नहीं सोचेगा ना कि वह गरीब घर का है. मुझे याद नहीं आता कि कभी कोई ऐसा भी वक्त रहा कि मैंने उसे तनाव में नहीं देखा. Mind Fit 4 Column by Sundar Chand Thakur
यह तनाव उसका खुद का पैदा किया हुआ था. हम सत्य को जितना छिपाने की कोशिश करते हैं, खुद के लिए उतना ही तनाव पैदा करते हैं. सत्य सूर्य की तरह है, जिसे लंबे समय तक बादलों के पीछे छिपाया नहीं जा सकता. एक न एक दिन वह बादलों को चीरकर बाहर आ ही जाएगा. अगर हम जो चीज जैसी है, उसे वैसा ही रखें, उसे वैसा ही दिखाएं, तो इसका सबसे पहला प्रभाव हम पर यह पड़ता है कि हमारे तनाव खत्म हो जाते हैं. जीवन में पारदर्शिता इसीलिए जरूरी है, क्योंकि वह हमें एक तनावरहित जीवन देती है. पारदर्शिता का अर्थ है कि हम भीतर से जैसे हैं, बाहर से भी वैसे ही बने रहें. पारदर्शिता कभी दूसरों को दिखाने के लिए नहीं होती, बल्कि अपने ही लाभ के लिए होती है और लाभ भी कोई छोटा-मोटा नहीं, पूरे जीवन को एक सकारात्मक दिशा में ले जाने वाला नायाब लाभ. क्योंकि पारदर्शी नहीं होने पर हमारी सारी ऊर्जा सत्य को यानी अपने असली रूप को छिपाने, नकली व झूठे रूप को बनाए रखने में खर्च हो जाती है. जब हम अंदर और बाहर- दोनों तलों पर एक हो जाते हैं, तो यह ऊर्जा मुक्त होकर हमारे दूसरे कार्यों के लिए उपलब्ध हो जाती है और जीवन के मूल्य को सतत बढ़ाती रहती है. Mind Fit 4 Column by Sundar Chand Thakur
आध्यात्मिक विकास का एक पहलू यह है कि हम अंदर और बाहर के तलों पर एक होने लगते हैं. बाहरी संसार और भीतरी संसार दोनों आपस में मिलने लगते हैं. हमारे भीतर जो प्रेम भरा होता है, वही प्रेम हमें बाहर भी दिखाई देने लगता है. अपने भीतर हमें जिस दिव्य आत्मा का दर्शन होता है, बाहर दूसरे लोगों में भी हमें वही दिव्य आत्मा दिखाई देने लगती है. सारे द्वैत धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं. ऐसा होना ही होता है, क्योंकि परमात्मा एक ही है. हर जीव, निर्जीव में एक ही परमात्मा है. जब वह एक है और सब कुछ उसी का बनाया हुआ है, तब हमें कुछ भी एक-दूसरे से अलग क्यों लगे. अध्यात्म के ऊपरी तलों तक पहुंचते हुए हम द्वैत से अद्वैत की ओर गति करने लगते हैं. धीरे-धीरे हमारे साथ-साथ यह संसार भी पारदर्शी होने लगता है. यहां कुछ भी छिपाने को नहीं रह जाता. सारे रहस्य उघड़कर सामने खुल जाते हैं. यह पारदर्शिता जन्म-जन्मांतर के पार, चेतन-अवचेतन, सार-निस्सार, सब कुछ अपने आगोश में ले लेती है. Mind Fit 4 Column by Sundar Chand Thakur
–सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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