कहते हैं कि जब हम जवान होते हैं, तो वेल्थ के लिए अपनी हेल्थ दांव पर लगाने को तैयार रहते हैं. लेकिन जब हम बूढ़े होने लगते हैं और जिंदगी को समझ लेते हैं कि उसके लिए क्या जरूरी है, क्या नहीं, तब हम एक दिन की हेल्थ के लिए अपनी सारी वेल्थ भी दांव पर लगाने को तैयार हो जाते हैं. हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि कैसे हम उम्र के साथ-साथ अपनी फिटनेस को भी बनाए रखें. यह किसी से छिपा नहीं कि दुनिया में जितने भी टॉप परफॉरमर्स हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ, कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष और हॉलिवुड- बॉलिवुड के कितने ही सितारे, वे सभी अपने-अपने क्षेत्रों में लाजवाब काम कर ही इसलिए पाते हैं, क्योंकि वे शारीरिक स्तर पर खुद को हर हाल में फिट रखते हैं.
(Mind Fit 17 Column)
इस ओर शायद किसी का ध्यान नहीं गया होगा, लेकिन महात्मा गांधी अकेले ब्रिटिश साम्राज्य से इसीलिए लोहा ले सके, क्योंकि वह शारीरिक रूप से भी सुपर फिट थे. उनकी फिटनेस की एक मिसाल उनकी डांडी यात्रा थी. 12 मार्च 1930 को उन्होंने नमक सत्याग्रह के तहत रोज 16 किलोमीटर चलते हुए साबरमती आश्रम से तब नवसारी कहलाने वाले डांडी तक 24 दिनों में 384 किलोमीटर की यात्रा की. गांधी जी तब 55 साल के थे. अगर आप इस यात्रा का विडियो देखें, तो गांधी जी की तेज गति देखकर हैरान होंगे. उनके साथ कदम मिलाकर चलने में नौजवानों के भी छक्के छूट गए थे.
लेकिन जीवन में कुछ बड़ा पाने के लिए महज शारीरिक फिटनेस से काम नहीं चलता. वह तो अनिवार्य है ही. ज्यादा जरूरी है कि हम जैसे अभी हैं, उससे बेहतर बनने की कोशिश करें. अपनी खराब आदतों को छोड़ अच्छी आदतें डालें. हमारी उत्पादकता, रचनात्मकता, समृद्धि, हमारी खुशी और मानवता पर हमारी छाप तब कई गुना ज्यादा प्रखर हो जाती है, जब हम अपनी खराब आदतों को अच्छी आदतों से बदल देते हैं. जब आदतों की बात आती है, तो सबसे पहले मैं सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठने की बात कहता हूं. सुबह जल्दी उठना हमारे जीवन को रूपांतरित कर देता है.
कृपया मुझे यह न कहना कि आप और सब कर सकते हैं, लेकिन सुबह पांच बजे नहीं उठ सकते. आपको मैं फिर भी एक घंटे की रियायत दे रहा हूं,क्योंकि मैं खुद चार बजे उठ जाता हूं. दुनिया की टॉप कंपनियों के सीईओ अपनी आंखों में दुनिया को बदलने का ख्वाब लिए रोज चार बजे उठ जाते हैं. अब मुझे यह न कहना कि आपके परिवार में इतनी जल्दी कोई नहीं उठता, इसलिए आप भी नहीं उठ सकते. याद रखें कि जिंदगी की जंग जीतने के लिए जरूरी है कि पहले आप रोज बिस्तर त्यागने की जंग जीतें. माइंड ओवर मैटर तो जब होगा तब होगा, सुबह की शुरुआत माइंड ओवर मैट्रेस से करें.
मैं आपकी मदद के लिए आपको साइंस के बारे में बता सकता हूं कि साइंस का क्या मानना है. इंसान के तौर पर प्रकृति का हमें मिला सबसे बड़ा उपहार न्यूरोप्लास्टिसिटी है. यानी नई स्थितियों के मुताबिक खुद को बदलने, खुद को पहले से बेहतर बनाने की हमारे मस्तिष्क की क्षमता. यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की एक स्टडी के मुताबिक अगर हम कोई काम लगातार 66 दिनों तक करें, तो वह हमारी पक्की आदत बन जाता है यानी उसे हम फिर बिना परेशानी के ताउम्र करते रह सकते हैं.
इस बात को न भूलें कि इस पृथ्वी पर मनुष्य प्रजाति प्रोग्रेस करने, आगे बढ़ने के लिए है. वह मंगल पर राज करेगी. आने वाले समय में वह ब्रह्मांड में कहां-कहां तक पहुंचेगी. हम पहले ही पत्थर रगड़ कर आग जलाने के पाषाण युग से मंगल ग्रह तक उपग्रह भेजने वाले उत्तर-आधुनिक युग तक पहुंच चुके हैं. ऐसा हमने अपनी पुरानी आदतों को तोड़कर ही किया है. एक डाकू भी मन से चाहता है, तो साधु बन जाता है. ब्रह्मांड ने मनुष्य को नित परिष्कृत होने की काबिलियत दी है, लेकिन वह काबिलियत आपके काम तभी आएगी, जब आप खुद को वाकई बदलना चाहेंगे. आप अगर सोते भी रहेंगे, तो दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
(Mind Fit 17 Column)
जी हां, जाने कितने लोग पूरा जीवन सोए-सोए गुजारकर चले जाते हैं. अगर आप यही कहते रहें कि ‘नहीं, मैं सुबह जल्दी नहीं उठ सकता’, तो आप वाकई नहीं उठ पाएंगे. लेकिन अगर आप ठान लें- ‘नहीं, कल से मैं हर हाल पर सुबह 5 बज उठूंगा’, तो आप सचमुच उठने भी लगेंगे. अगर आप कुछ दिन लगातार ऐसा कर लें, तो सुबह जल्दी उठना जीवनभर के लिए आपकी एक आदत बन जाएगा और इस आदत से आपका जीवन बदल जाएगा.
सुबह उठना ही क्यों, आप जीवन में जो चाहें, वह कर सकते हैं, लेकिन पहले चाहें तो सही!
आंखों में असफलता की नहीं कभी आह होगी
जो सीने में बदलने की चमत्कार भरी चाह होगी
(Mind Fit 17 Column)
-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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डांडी यात्रा 12 मार्च 1930 को शुरु हुई थी ना कि 1924 में।